मांडर विधानसभा उपचुनाव : बंधु तिर्की के सामने भाजपा ने टेके घुटने
देवानंद सिंह
बीजेपी जिस उम्मीद के साथ मांडर विधानसभा चुनाव में उतरी थी, बंधु तिर्की ने विधायक की सदस्यता जाने के बाद भी उस पर पानी फेर दिया। वह एक बार फिर यहां बाजीगर बनकर उभरे हैं, वह इसलिए क्योंकि उन्होंयने अपने दम पर जिस तरह से अपनी बेटी शिल्पीक नेहा तिर्की को जीतवाया है, उसने साबित कर दिया है कि अभी भी यह बंधु तिर्की का गढ़ है। यानि उनके सामने अभी भी कोई टिक नहीं सकता है। बता दें कि 2019 में झारखंड विधानसभा चुनाव होने के बाद मांडर में चौथा उपचुनाव हुआ था। यह हैरानी की बात है कि चौथे बार में भी बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। हालांकि यह कहा जा रहा था कि मांडर विधानसभा चुनाव महागठबंधन व भाजपा के बीच था। अगर, सियासी तौर पर देखा जाए तो सही मायने में यह चुनाव बंधु तिर्की व भाजपा के बीच था, जिसमें बंधु तिर्की ने भाजपा को धूल चटा दी। भाजपा की यह स्थिति तब हुई, जब उसने चुनाव प्रचार मैदान में कई दिग्गोजों को उतारा था, जिनमें पार्टी विधायक दल के नेता बाबू लाल मंराडी, प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और अन्नपूर्णा देवी मुख्य रूप शामिल रहीं, लेकिन बंधु तिर्की की रणनीति के आगे इन दिग्गजों की नहीं चल पाई। भले ही, कांग्रेस चुनाव लड़ रही थी, लेकिन मैदान अकेले बंधु तिर्की ने संभाला था। केवल एक दिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन प्रचार के लिए पहुंचे थे। हालांकि, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, मंत्री बादल पत्रलेख, बन्नान गुत्ताअ, रामेश्वर उरांव सहित कई अन्य नेता चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे, लेकिन इस जीत का अगर, किसी को श्रेय दिया जाए तो वह केवल और केवल बंधु तिर्की को दिया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंयने चुनाव प्रचार के दौरान खूब पसीना बहाया।
बता दें कि झारखंड में 2019 में विधासभा चुनाव होने के बाद सबसे पहले दुमका और बेरमो में उपचुनाव हुआ था। इन दोनों ही सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद मधुपुर उपचुनाव हुआ। मजे की बात यह रही है कि यहां भी भाजपा की एक नहीं चली। ठीक यही स्थिति मांडर विधानसभा उपचुनाव में भी हुई है। पूरे परिपेक्ष्य में देखा जाए तो जिस रणनीति के तहत भाजपा चुनाव मैदान में उतरी, वह हार बार फेल ही साबित हुई। दुमका और बेरमो विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा ने एक ही मुद्दा रखा परिवारवाद का। जिस तरह के परिणाम सामने आए, उससे साफ जाहिर हुआ के जनता ने भाजपा के परिवारवाद वाले मुद्दे को पूरी तरह नकार दिया। यही स्थिति मधुपुर उपचुनाव में भी देखने को मिली। मांडर में भी भाजपा ने परिवारवाद के मुद्दे को जोरशोर से उठाया, लेकिन परिणाम हम सबके सामने है। चौथी बार इसी मुद्दे पर भाजपा को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा। परिणाम को देखकर ऐसा लगता है कि आदिवासी वोटरों में भाजपा का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो रहा है, शायद इसलिए ही भाजपा ने द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित किया है।
मांडर विधानसभा में पौने दो लाख जनजातीय मतदाता हैं। जाहिर है कि इन मतदाताओं को झुकाव जिस तरफ भी होगा, जीत उसी की होगी। चुनाव परिणाम आने के बाद यह बिल्कुल साफ है कि जनजातीय मतदाताओं का रूझान एक तरफ नहीं रहा। इनका वोट बंटा और अन्य के मतों को अपने पक्ष में कर बंधु ने कमल खिलने से पहले ही मुरझा दिया।