महेंद्र सिंह राठौड़
आजीविका के लिए उन्होंने विदेश का रास्ता चुना लेकिन गलत लोगों ने उन्हें ऐसी राह दिखाई कि वे डिटेंशन सेंटर या जेल पहुंच गए। गनीमत यह रही कि सब कुछ लुटाकर वे किसी तरह घर तक पहुंचने में सफल रहे जिनको कभी घर पहुंचने की उम्मीद भी नहीं थी। यातनाओं में ही विदेशी धरती पर मर जाने का खौफ का मंजर उनके जहन में अब भी है। घर तो सकुशल पहुंच गए लेकिन वह भयावह मंजर जहन से जाता नहीं।बाहर नौकरी कर अच्छी जिंदगी का उनका सपना मर गया, यहीं नौकरी या छोटा मोटा काम करके इज्जत की जिंदगी परिजनों के साथ बसर करने की हसरत ही रह गई है। देश में हजारों लोग गलत दस्तावेजों के आधार पर विदेश पहुंच जाते हैं जिनमें से ज्यादातर गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर होते हैं। कुछ ही लोग किसी तरह कुछ साल गुजार पैसा कमाकर सकुशल घर पहुंचने में सफल रहते हैं। ऐसे लोग विदेश घूमने नहीं बल्कि नौकरी और काम की तलाश में जाते हैं लेकिन एजंट गैर कानूनी तरीके से उन्हें ऐसी जगह पहुंचा देते हैं जहां से वापसी बहुत मुश्किल से होती है।गैर कानूनी तरीके से अमेरिका और मेक्सिको पहुंचे सैकड़ों भारतीयों को पिछले दिनों वहां की सरकारों ने विशेष विमान से जबरी भेज दिया। इनमें से 200 से ज्यादा लोग हरियाणा और पंजाब के थे। 21 से 35 वर्ष के इन युवकों की दर्दभरी दास्तन सुनकर या पढ़कर कोई दूसरा बाहर जाने से पहले हजार बार सोचेगा। जंगलों और दुर्गम रास्तों से एक से दूसरे देश की सीमा चोरी छिपे पार करना और छिपकर रहा। फिर अगले पड़ाव के लिए चल देना। इन्हें पहले बताया नहीं गया था कि उन्हें ऐसा करना होगा। उन्हें तो लाखों रुपए देने के बदले सीधे अमेरिका में उतारने और काम दिलाने की गारंटी दी गई थी। इन्हे्ं क्या पता था कि वे ऐसी अंधेरी सुरंग में पहुंच जाएंगे जिसक सिरा उन्हें दूर दूर तक नजर नहीं आएगा।कोरोना महामारी के चलते वहां की सरकारों का फैसला एक मायने में उचित ही कहा जाएगा, वरना लंबे समय तक यातना केंद्रों में रख सकती थी। उन पर अवैध तरीके से देश में घुसपैठ या अन्य गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जा सका था। किसी भी देश में गलत दस्तावेजों के आधार पर रहना गंभीर अपराध है, इसे वे भी जानते थे लेकिन यह उन्हें बताया नहीं गया था। उनकी आंखोंे में विदेशी धरती पर नौकरी कर पैसा कमा खुद अच्छी जिंदगी गुजारने और परिजनों की मदद करने का था।रियाणा में जिला करनाल के गांव शांबली का कुलजीत सिंह12वीं तक पढ़ा है। खेती की जमीन तीन एकड़ है, परिवार का गुजर बसर मुश्किल से होता है। यहां नौकरी के लिए कोशिश की लेकिन मिली नहीं। पिता जगजीत सिंह की मुलाकात किसी शिवकुमार नामक व्यक्ति से हुई। उन्होंने बेटे के बारे में बताया तो उसने कहा, क्या मुश्किल है। उसे बाहर भेजो देखो घर की हालत कैसे बदलती है। वह यह काम आसानी से करा देगा। कई लड़कों को वह भेज चुका है, कुलजीत भी चला जाएगा। उसके लिए पुर्तगाल ठीक रहेगा, उसे वहां काम मिल जाएगा। उन्होंने परिवार में बात की तो बेटा तैयार हो गया, भला बाहर नौकरी का मौका इतनी आसानी से किसे मिलता है। यहां घर बैठे काम हो रहा है। तीन लाख में सौदा पक्का हो गया लेकिन इतना पैसा जगजीत सिंह के पास नहीं था। तीन एकड़ में से कुछ जमीन उन्होंने 12 लाख में बेच दी।
डंकी वीजा
फर्जी दस्तावेजों के आधार पर विदेश भेजने को डंकी फ्लाइट के तौर पर भी जाना जाता है। इस विधि से सीधे उस देश में नहीं बल्कि कई रूटों के जरिए भेजा जाता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका तक पहुचंने के लिए कोलंबिया, पनामा, कोस्टारिका, निकारगुआ, ग्वाटेमाला और मेक्सिको और गंतव्य तक। इसमें हजारों तरह के खतरे उठाने पड़ते हैं। कहीं समुद्र के रास्ते, कहीं जंगलों के बीच, कहीं नदी-नालों को पार करना पड़ता है। इसी डंकी वीजा के बदले एजंट लाखों रुपए वसूलते हैं। बहुत बार वे बता भी देते हैं कि कुछ खतरे तो उठाने पड़ेंगे लेकिन उनकी जान को किसी तरह का खतरा नहीं होगा। कुछ तो सकुशल पहुंचाने के नाम पर अतिरिक्त पैसा भी वसूल कर लेते हैं। पकड़े जाने के बाद उन्हें छु़ड़ाने की एवज में मोटी रकम एंठते हैं। इसे फिरौती के तौर पर देखा जाना चाहिए। एजंटों की जिम्मेवारी येन केन प्रकारेण अमूक देश तक पहुंचाने की है उसके बाद क्या होता है इसे वे देखते भी नहीं है।
एसआइटी गठित
हरियाणा में गैर कानूनी तरीके से विदेश भेजने के मामलों को सरकार ने काफी गंभीरता से लिया है। इसके चलते सरकार ने मानव तस्करी और अवैध वसूली जैसी धाराएं जोड़ने को मंजूरी दी है। ऐसे मामलों की जांच के लिए आई स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में विशेष जांच समिति (एसआइटी) गठित की गई है जो पूरे राज्य में ऐसे सभी मामलों की विस्तृत जांच करेगी। गृहमंत्री अनिल विज ने कहा है कि जांच समिति के पास व्यापक अधिकार रहेंगे। करनाल रेंज की आईजी भारती अरोड़ा के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति गठित की गई है। उनके अलावा छह आइपीएस अधिकारी रहेंगे। इनमें मोहित हांडा, नाजनीन भसीन, राहुल शर्मा, हिमांशु गर्ग, लोकेंद्र सिंह और शशांक कुमार हैं। ज्यादातर मामले कुरुक्षेत्र, अंबाला, करनाल, पानीपत और कैथल क्षेत्रों से जुड़े हैं। एसआइटी 323 मामलों की व्यापक स्तर पर जांच कर रही है। अभी तक कार्रवाई में 112 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इनके कब्जे से करीब पचास लाख रुपए की बरामदगी भी हुई है। राज्य में वर्ष 2018-19 के दौरान 154 ऐसे मामले थे। इनमें 47 लोगों की गिरफ्तारी और एक लाख रुपए से की बरामदगी हुई। प्रभावितंों में ज्यादातर ग्रामीण इलाकों के है। भारती अरोड़ा मानती है कि ऐसे मामले केवल गैर कानूनी तरीके से विदेश भेजने तक सीमित नहीं है। ये मानव तस्करी जैसा है जो बहुत गंभीर अपराध है। सरकार ने ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया। मानव तस्करी के साथ अवैध वसूली की धारा भी आरोपियों पर लगाई जाएगी ताकि उन्हें कड़ा दंड मिल सके।
शिव कुमार ने सभी दस्तावेज भी तैयार कर दिए। सब कुछ ठीक ठाक ही था। घरवाले बेटे के पुर्तगाल पहुंचने और
काम शुरू करने की खबर का इंतजार करते रहे वह नहीं आई। उन्हें पता चला कि कुलजीत पुर्तगाल नहीं बल्कि मलेशिया में है। वहां की सरकार ने उसे अवैध तौर पर देश में घुसने के आरोप में पकड़ लिया है। एजंट उसे छुड़ाने की एवज में जगजीत सिंह से पैसे वसूलता रहा। कुल मिलाकर उसने 4 लाख 19 हजार रुपए ले लिए। इनमें तीस हजार रुपए उसके बैंक खाते में जमा कराए बाकी राशि नकद दी गई थी।
जगजीत कहते हैं, वहां कुलजीत को डेंगू हो गया था। हम लोग बिल्कुल टूट से गए थे। अब बात नौकरी की नहीं बेटे की सकुशल घर वापसी की थी। लगभग एक महीने के बाद किसी तरह बेटा घर पहुंच गया यही हमारे लिए बड़ी बात है। जगजीत ने थाने में मामला दर्ज करा दिया है जिसकी जांच चल रही है। पैसों की वापसी की उन्हें ज्यादा उम्मीद नहीं लगती। उनका कहना है कि फिर किसी कुलजीत के साथ ऐसा न हो फिर बाहर जाकर नौकरी कर अच्छी जिंदगी जीतने का सपना न टूटे इसलिए ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
करनाल के राहुल यादव स्नातक है। यहां नौकरी नहीं मिल रही थी अमेरिका में काम और अच्छा पैसा मिलने का भरोसा मिला तो तैयार हो गए। पर इसके लिए लाखों रुपए का बंदोबस्त कैसे हो। यह पैसा कैसे जुटाया गया यह उनके परिजन ही जानते हैं। इस उम्मीद के साथ कि बेटा किसी तरह अमेरिका पहुंच जाए, वहां काम कर अच्छा पैसा कमाने लगेगा तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। ट्रेवल एजंटों ने राहुल और उसके साथियों को 10 से 20 लाख रुपए में अमेरिका तक पहुंचाने की बात तय की थी। उन्हें सपने में भी गुमान नहीं था कि उनके बुरे दिन शुरू हो गए हैं। जिन ट्रेवल एजंटों को वे जाने से पहले भद्र पुरुष मान रहे थे उन्हें बाद में शैतान नजर आने लगे।
अमेरिका में प्रवेश से पहले उन्हें मेक्सिकों की पुलिस ने पकड़ लिया। वे मेक्सिको तक कैसे पहुंचे, कैसे-कैसे खतरे उठाए, इसे वे कभी भुला नहीं पाएंगे। कई बार जान जाते जाते बची। उन्हें पता चल चुका था कि वे गैर कानूनी तरीके से अमेरिका में पहुंचेंगे जबकि तय शर्तों में इसका कहीं उल्लेख नहीं था।
राहुल कहते हैं, लाखों रुपए खर्च करके और मुसीबतें उठाकर हम किसी आरामदायक घर में नहीं बल्कि डिटेंशन सेंटर (नजरबंदी शिविर) में पहुंच गए। जहां भेड़ बकरियों की तरह हमें ठूंस दिया गया। वहां भारतीयों के अलावा अन्य देशों के लोग भी थे। ये भी हमारी ही तरह गैर कानूनी तरीके से देश में घुसने के आरोपी थी।
रवि यादव के मुताबिक, वहां कैदियों से भी बदतर जिंदगी थी। अपराध बोध का अहसास होता था। कभी लगता हम कोई बड़ा गुनाह कर बैठे हैं जिसकी कितनी सजा होगी यह हमें नहीं मालूम। शिविरों में न रहने की व्यवस्था और न खाने पीने की। पुलिस की सख्ती के आगे कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था। रात दिन अपने को विदेश जाकर नौकरी करने और ट्रेवल एजंटों को कोसते जिन्होंने हमें ऐसे दुर्दिन दिखा दिए। अब कोई चारा नहीं था, अमेरिका में काम, पैसे और अच्छी जिंदगी की बातें पीछे छूट गई। अब अपने देश पहुंचने के ही लाले थे। कोई उम्मीद नजर नहीं आती थी। करीब पांच माह तक हम लोगों ने कैदियों जैसी जिंदगी गुजारी। वह भयावह सपने जैसा नहीं बल्कि हकीकत थी। जिसे हम लोगों ने भोगा। हम लोगों को डुप्लीकेट वीजा पर भारत से रवाना किया गया था इसका पता हमें बाद में हुआ।
हम लोग मुश्किल में थे तो हमारे परिजन किसी तरह हमारी वापसी की दुआएं मांग रहे थे। वे अपने तौर पर कोशिश कर रहे थे और हम भी चाहते थे कि किसी तरह से यहां से मुक्त हो जाएं। हमारे कई साथी तो मानने लगे थे कि शायद वे यहीं मर जाएंगे। इन शिविरों में लंबे समय तक वे नहीं जी सकेंगे। कहते हैं कि खाने में उन्हें गाय का मांस ( बीफ) दिया जाता तो भूख गायब हो जाती थी। ऐसे में भूखे रहने के अलावा दूसरा चारा नहीं था। शारीरिक और मानसिक तौर पर हम सभी टूट चुके थे। सभी को गांव, घर, परिजन और देश याद आते लेकिन वह तो सपने जैसा ही था। करीब पांच माह इन शिविरों में गुजारे जो हमारे लिए पांच साल जैसे रहे।
हरियाणा के सुखविंदर सिंह पोलीटेक्निक डिग्री होल्डर है। अमेरिका आने के लिए उन्होंने एजंटों को 18 लाख रुपए दिए। यह पैसा बड़ी मुश्किल से जुटाया गया। पहले पढ़ाई पर पैसा खर्च हुआ और अब बाहर नौकरी करने के लिए लाखों रुपए लगे लेकिन मिला क्या कुछ भी तो नहीं। सब कुछ बर्बाद होने जैसा है, इसकी भरपाई कौन करेगा। कितने सपने थे, अमेरिका में जाकर यह करेंगे वह करेंगे। पैसा कमाएंगे और आराम से रहेंगे। फिर घरवालों की मदद करेंगे जिन्होंने न जाने किन किन लोगों से
ऊंचे ब्याज पर पैसा जुटाया था। परिजनों को हमारी वजह से मुसीबतें उठानी पड़ी है।
नौकरी की तलाश में जाली दस्तावेजों के आधार पर गैर कानूनी तरीके से विदेशों में जाने वाले की संख्या हजारों में है। ट्रेवल एजंसी वाले कहते हैं कि उनके संपर्क शीर्ष स्तर तक है। उनकी पहुंच सीधे दूतावास तक है। ऐसा ही हवाला देकर वे ग्रामीण और भोले भाले युवकों को अपना शिकार बनाते हैं। बड़ी आव्रजन एजंसी वाले ग्रामीण स्तर पर अपने एजंट तैनात करती है जो कमीशन के आधार पर ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसाते है। पैसों के बदले वे सभी काम अपने पर ले लेते हैं। वीजा से लेकर विदेश पहुंचान की गारंटी तक देते हैं। विदेश जाने और वहां की चकाचौ्ंध जैसी जिंदगी गुजराने के लालच में युवा आ जाते हैं। कुछ ही समय में पैसा कमा सारी भरपाई कर लेने का भ्रम भी उन्हें रहता है।
मेक्सिको से जबरी भेजे गए युवकों में कुछ तो इंजीनियर तक है जिन्हें यहां काम नहीं मिला तो बाहर जाने की सोची थी। इनमें से कुछ तो अब ंिजंदगी में कभी भी देश के बाहर जाने की सोचेंगे भी नहीं क्योंकि जो उन पर गुजरी है वह उन्हें हमेशा याद रहेगा। उनकी राय में विदेश जाकर नौकरी करना कोई गलत बात नहीं लेकिन इसके लिए सही दस्तावेजों से कानूनी तौर पर जाना चाहिए। सरकार का ट्रेवल एजंसियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर ऐसा होता तो हमारे जैसों को क्यों सुनसान जंगलों से गुजरना पड़ता। क्यों रात के अंधेरे में खतरनाक रास्तों से चलकर चोरी से सीमा पार करनी पड़ती। इसके लिए हमसे ज्यादा ट्रेवल एजंट दोषी है। वे बड़े लोग हैं, उनकी पहुंच ऊपर है, उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता। हम जैसे लोग पूरी तरह से बर्बाद हो जाते हैं।
हरियाणा सरकार ने गैर कानूनी तौर पर विदेश भेजने वालों शिकंजा कस दिया है। ऐसा करने वालों पर अब मानव तस्करी की धारा भी जोड़ी जाएगी। राज्य में दो साल के दौरान कोई तीन सौ से ज्यादा ऐसे मामले लंबित हैं जिनकी व्यापक स्तर पर जांच चल रही है।