प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम कोनार परियोजना
अमन/ अनुप्रिया
कड़वा सच
नहर बह गया यह प्रमाणित करता है कि नहर का निर्माण हुआ था , इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि इसकी पुनरावृत्ति नही हो सके । सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ के नेताओं का यह बयान है परंतु किसी ने यह नहीं कहा कि प्रशासनिक लापरवाही की वजह से कोनार सिंचाई परियोजना इसके लिए जिम्मेदार है ? कोनार सिंचाई परियोजना की यह घटना रघुवर सरकार को बदनाम करने की सुनियोजित सरियांत तो नहीं ?
चुनाव के ठीक पहले इस तरह की घटना की जांच इस ओर भी ध्यान जाना चाहिए ।
अफसरों का यह कहना की बांध को चूहे ने कुतर दी हास्यास्पद नहीं बल्कि मानसिक दिवालियापन का घोतक है । यहां यह बात भी लाजमी है कि इतनी बड़ी घटना में अगर प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदार हैं तो विभाग के मंत्री (राजनेता) भी कम जिम्मेदार नहीं । जिन्होंने पूर्व में एक अधिकारिक द्वारा दी गई सूचना को नजर अंदाज किया ।
मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा किये गए उद्घाटन के 13 घंटे बाद ही नहर बर्बाद हो गया । किसान जो कोनार सिंचाई परियोजना को लेकर इतने खुश थे कि उनके खेतों में अब पानी मिलेगा उन किसानों के सपना कुछ ही पलों में मिट्टी में मिल गए । इतना ही नहीं बल्कि उनके खेत में पानी जमा होने के कारण फसल नष्ट हो गए ।
मजेदार बात तो यह है कि जिस नहर का निर्माण होने में 41 साल लगे और उसी नहर को बर्बाद होने में मात्र 13 घंटे ।
इन सब चीजों का जिम्मेदार कौन है ? विपक्ष सिर्फ निशाना साधना पर तुले हैं । विपक्ष का कहना है कि लूट – खसोद शार्ट का निर्माण है यह नहर । पर सवाल यह उठता है कि जब सप्लाई में अनुमिलता बढ़ती जा रही थी तब विपक्षी कहां थे ? क्या पशुपालन घोटाले की तरह इस नहर में भी विपक्ष को अधिकारियों ने मुंह बंद करने के लिए रकम पहुंचाया था ?
अधिकारियों ने पहले चूहों को जिम्मेदार ठहराया और अब 4 इंजीनियरों को दोषी पाया , पर सवाल यह उठता है कि 41 साल की मेहनत सिर्फ इन 4 इंजीनियरों की वजह से बर्बाद हो गई ?
4 इंजीनियर को दोषी पाकर सस्पेंड कर देना मात्र खानापूर्ति है इस पर बर्खास्तगी का भी पहल हो तो ज्यादा बेहतर होगा ।
चुनाव से ठीक पहले इन अधिकारियों के कारण सरकार की छीछालेदर हो गई ।
अधिकारियों द्वारा बचाव के लिए जो तर्क दिए जा रहे हैं उस तर्क में ही जांच की स्थिर किया जाए तो बहुत बड़ा खुलासा होगा ?
बहरहाल 41 साल से बन रहे कोनार सिंचाई परियोजना की जांच में जुटे अधिकारियों ने 4 इंजीनियरों को दोषी पाते हुए निलंबित कर दिया , निलंबन मात्र से बड़े अधिकारी और मंत्री बेदाग साबित नहीं हो सकते हैं जब तक की इस पूरे मामले पर पटाक्षेप नहीं हो जाएगा । क्योंकि जिस बांध का निर्माण 41 साल में सरकार ने दो हजार करोड़ रुपए खर्च किए और मात्र 13 घंटे के बाद वह नष्ट हो गया । इसकी जवाबदेही मात्र 4 इंजीनियर पर नहीं बल्कि विभाग के आला अधिकारियों पर भी मुकम्मल जांच होनी चाहिए ।