कर्पूरी ठाकुर को मिला भारत रत्न, परिवार ने कहा- पूरे बिहार के लिए यह ऐतिहासिक क्षण
पटना: जननायक कर्पूरी ठाकुर के परिवार, उनके अनुयायी और पूरे बिहार के लिए आज का दिन बेहद खास है, क्योंकि आज उनको देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया है. मृत्यु के 36 साल बाद उनको केंद्र सरकार ने भारत रत्न देने का फैसला लिया है. जननायक को भारत रत्न मिलने से बिहारवासी फूले नहीं समा रहे हैं. 23 जनवरी की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ही उनको सर्वोच्च सम्मान दिए जाने की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की थी. इस मौके पर कर्पूरी ठाकुर की पोती नमिता कुमारी ने कहा कि यह सिर्फ हमारे परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार के लिए ऐतिहासिक क्षण है.
“बहुत अच्छा महसूस हो रहा है. इस भाव को शब्दों में बया कर पाना मुश्किल है. यह सिर्फ परिवार के लिए ही नहीं बल्कि पूरे बिहार के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है. मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहती हूं. उन्होंने बिहार के लोगों के लिए बहुत बड़ा काम किया है.”- नमिता कुमारी, कर्पूरी ठाकुर की पोती
नीतीश समेत एनडीए नेताओं की मौजूदगी: भारत रत्न सम्मान समारोह के दौरान कर्पूरी ठाकुर के बेटे और जेडीयू सांसद रामनाथ ठाकुर और उनके परिवार के सदस्य मौजूद थे. इसके अलावे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, मंत्री प्रेम कुमार, जेडीयू सांसद ललन सिंह और राज्यसभा सांसद संजय झा समेत अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद थी.
5 विभूतियों को मिला भारत रत्न सम्मान : कर्पूरी ठाकुर के अलावा पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव और डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न से सम्मानित किया गया . कुल 4 विभूतियों को मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया है.
सामाजिक न्याय के प्रणेता हैं जननायक: 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितोझिया गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने देश की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी है. बिहार में सामाजिक न्याय की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने का श्रेय कर्पूरी ठाकुर को जाता है. वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे, उससे पहले उन्हें उपमुख्यमंत्री बनने का भी मौका मिला था. कर्पूरी ठाकुर के पिताजी का नाम गोकुल ठाकुर और माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था. इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे और बाल काटने का काम करते थे.
बेटे को दी ईमानदारी की सीख: जननायक कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी का जिक्र आज भी होता है. जब वह पहली बार उपमुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने अपने पुत्र रामनाथ ठाकुर को पत्र लिखतार पत्र में कहा था कि तुम किसी से प्रभावित मत होना. कोई लोग लालच दे तो उसके बहकावे में मत आना, इससे मेरी बदनामी होगी.
परिवारवाद के विरोधी थे कर्पूरी ठाकुर: जननायक कर्पूरी ठाकुर जब तक जीवित रहे, तब तक उनके परिवार से कोई भी व्यक्ति राजनीति में नहीं आया. एक बार कर्पूरी ठाकुर को चाहने वाले लोगों ने रामनाथ ठाकुर को टिकट देने की बात कही थी, तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा था कि ठीक है रामनाथ को चुनाव लड़ा दो लेकिन मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा, तब जाकर लोगों को पीछे हटना पड़ा था
64 साल की उम्र में उनका निधन: 17 फरवरी 1988 को कर्पूरी ठाकुर बीमार पड़ गए और इलाज के लिए पीएमसीएच ले जाने के क्रम में राजधानी पटना में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद उनके शव यात्रा में पटना की सड़कों पर जितनी भीड़ उमड़ी थी, आज तक वैसी भीड़ कभी नहीं देखी गई. 64 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. आज उनके निधन के 36 साल के बाद केंद्र की सरकार उन्हें भारत रत्न से सम्मानित कर रही है.
भारत रत्न मिलने से बिहारवासी गौरवान्वित: सरकार के फैसले से कर्पूरी ठाकुर को चाहने और मानने वाले लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. पूरा बिहार फूले नहीं समा रहा है. आज की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर इसलिए भी प्रासंगिक है कि भ्रष्टाचार परिवारवाद और धन संग्रह राजनीतिक दलों और राजनेताओं का हथियार बन चुका है लेकिन कर्पूरी ठाकुर इन सब चीजों से दूर रहे.