खेल चमकने का… धीरेंद्र कुमार
मुझे याद है 06 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद लालकृष्ण आडवाणी की पहली आमसभा बिहार के गया जिले में हुई थी. आमसभा से पहले आडवाणी जी ने गया शहर में ही स्थित प्राचीन विष्णुपद मंदिर दर्शन करने की इच्छा जाहिर की. जिला प्रशासन (डीएम राजबाला वर्मा) ने सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देकर उन्हें मंदिर दर्शन करने से रोक दिया था.
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5 जनवरी 2022 को प्रधानमंत्री पंजाब के फिरोजपुर में रैली करने जा रहे थे. उनको फिरोजपुर के हुसैनीवाला में शहीद स्मारक भी जाना था. खराब मौसम की वहज से हेलिकॉप्टर छोड़ सड़क मार्ग से जाना तय हुआ. मंजिल तक पहुंचते उसके पहले ही सड़क पर हंगामा बरपा और पीएम बैरन लौट आए.
शोर क्यों है?
पंजाब की घटना में राज्य सरकार ने माना है कि सड़क मार्ग से पीएम के जाने के लिए डीजीपी ने रूट क्लियरेंस दिया था. दूसरी बात हमेशा पीएम के लिए एक वैकल्पिक रास्ता तैयार रखा जाता है. और सबसे बड़ी बात अगर रास्ता अचानक बदला तो इसकी जानकारी एसपीजी और डीजीपी रैंक के अधिकारियों के पास ही थी. अचानक प्रदर्शनकारी कैसे इकट्ठा हुए? कौन उन्हें जानकारी दे रहा था? फ्लाईओवर पर अचानक भीड़ का इकट्ठा होना, बड़ी गाड़ियों को फ्लाईओवर पर ला सड़क जाम करना. खुफिया असफलता को चिन्हित करता है. भीड़ के नजदीक आने की सूचना police प्रशासन को नहीं मिलना, पंजाब पुलिस की योग्यता पर प्रश्न है. फ्लाईओवर पर फंसे व्यक्ति के लिए निकलने का रास्ता ना के बराबर होता है. प्रधानमंत्री सुरक्षित लौट आए, राहत की खबर है.
सुरक्षा व्यवस्था में चूक..
जानकार इसे प्रधानमंत्री की सुरक्षा में भारी चूक मान रहे हैं. प्रधानमंत्री की सुरक्षा दो हिस्सों में बंटी हुई है. पहली जिम्मेदारी एसपीजी और केंद्रीय एजेंसी के पास है. पूर्व एसपीजी अधिकारी पी.के मिश्रा और उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी रहे ए.के जैन के अनुसार, जब भी प्रधानमंत्री किसी राज्य के दौरे पर होते हैं तब बिना राज्य प्रशासन के द्वारा रूट क्लियरंस दिए उनका मूवमेंट नहीं होता. एसपीजी उनके चारों तरफ निजी घेरा के लिए ही जिम्मेदार है. सड़क पर आम लोगों के मूवमेंट को रोकना राज्य पुलिस की जिम्मेदारी है. ध्यान देने वाली बात है कि प्रोटोकॉल के अनुसार पीएम के साथ राज्य के सीएम, चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी तीनों को होना चाहिए था. लेकिन इसे संयोग समझिए या कुछ और तीनो में से कोई पीएम के साथ नहीं थे. हालांकि, डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी की गाड़ी पीएम के काफिले का हिस्सा जरूर थी. फिलहाल राजनीति की सख्त जमीन पर जिम्मेदारी की टोपी केंद्र और राज्य के बीच उछाली जा रही है. इसमें कोई शक नहीं कि जिम्मेदारी केंद्रीय गृहमंत्रालय को भी लेनी होगी.
खेल क्या हो सकता है.
गौरतलब है कि आतंकवाद झेल चुका पंजाब संवेदनशील राज्य है. किसान आंदोलन की आड़ में एक बार फिर फिरकापरस्त ताकतें सक्रिय होने की फिराक में है. देश विरोधी ताकतें किसानों को मोहरा बनाने की कोशिश में है. मिल रही जानकारी के मुताबिक पीएम जब फ्लाईओवर पर फंसे थे तब, आसपास के एक धर्म विशेष के स्थलों से माइक से इस बात का ऐलान किया जा रहा था कि पीएम फंसा हुआ है ज्यादा से ज्यादा संख्या में घर से निकलो और घेर लो. कल्पना कीजिए अगर पीएम समय रहते नहीं लौटते और प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती जाती तो क्या होता. हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि एक प्रधानमंत्री, एक पूर्व प्रधानमंत्री और पंजाब के ही एक पूर्व मुख्यमंत्री की हत्या विदेशी ताकतों ने स्थानिय नागरिकों के कांधे पर सवार होकर किया था.
राजनीति ने खोजा नया रास्ता.
वरिय पत्रकार सुनील पांडेय जी का कहना है कि ‘हाल के दिनों में जिस तरह से केंद्र और राज्य के बीच का टकराव देखने को मिल रहा है चिंता का विषय है. क्षेत्रीय नेता किसी के नियंत्रण में नहीं है. अपने हित के लिए संविधान को ताक पर रखना आम बात है. संवैधानिक मर्यादा को पहले पश्चिम बंगाल ने तार तार किया और अब पंजाब में यह देखने को मिल रहा है. संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति की सुरक्षा राष्ट्रीय मसला है.’
पंजाब इस समय कई मामलों में नाजुक दौर से गुजर रहा है. मुख्यमंत्री को अपने ही दल के नेता से दिक्कत है. सत्ताधारी दल के नेता दुश्मन देश का गुणगान सरेआम करते हैं. राज्य की आंतरिक राजनीति उथल पुथल स्थिति में है.
गौर करने वाली बात है कि पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब पंजाब के नियंत्रण में नहीं है. यह किसान नेता राकेश टिकैत की जेब में जा फंसा है. राकेश टिकैत ने खुलकर राजनीति में आने का ऐलान भी कर दिया. ऐसे में पंजाबी नेताओं के पास अपने किसान समर्थकों को रोके रखना उनकी मजबूरी है. वहीं सीएम चन्नी को यह भी साबित करना है कि वे राजनीति में नवजोत सिंह सिद्धू से बड़ा खेल कर सकते हैं. तीसरा पंजाब की राजनीति में तेजी से बढ़ रहे ‘आप’ को कंट्रोल करना सत्ता की मजबूरी है.
एक तीर से कई निशाना.
मोदी विरोधी तमाम नाम में पंजाब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी का नाम अचानक टॉप पर आ गया. केंद्रीय नेतृत्व के सामने चन्नी का कद मजबूत हुआ. केजरीवाल सीन से गायब और बीजेपी सीन के अंदर. जरा पंजाब की राजनीतिक जमीन को देखिए. बीजेपी पंजाब में चौथे नंबर की पार्टी है. लेकिन इस घटना ने ‘आप’ को किनारे कर अब बीजेपी को केंद्र में ला दिया. भाजपा आजतक वहां 25 से अधिक सीट पर चुनाव नहीं लड़ी है. फिलहाल इसके पास मात्र दो विधायक हैं. इस घटना के बाद बीजेपी भी वहां अपनी जमीन मजबूत करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएगी. पीएम के खिलाफ जो किसानों का जो आक्रोश था उसे प्रधानमंत्री पंजाब के सीएम को मोहरा बना झेल गए.
कांग्रेस बता रही है कि सभा स्थल पर मुश्किल से 500 लोगों की भीड़ थी. प्रधानमंत्री ने सुऱक्षा का बहाना बनाकर लौट गये. अगर ऐसा था तो कांग्रेस ने एक बड़ी गलती कर दी. यह मौका था मोदी के लोकप्रियता को आईना दिखाने का. अब जो हुआ उसका सीधा फाएदा मोदी को मिलेगा. कांग्रेस भले पंजाब रिटेन कर ले, भाजपा अब दूसरे प्रदेशों में सहानुभूति बटोरेगी.
अब कुछ चलंत बातें…
एक दुष्प्रचार किया जा रहा है कि पीएम के आने के 48 घंटा पहले ही रास्ता पर एसपीजी का कब्जा हो जाता है. दरअसल एसपीजी मुख्यस्थल को अपने नियंत्रण में लेती है ना कि 100 किलोमीटर लंबे रास्ते को. रास्ता राज्य प्रशासन के कब्जा में होता है. दौरा के वक्त इसे एक तरह से राज्यप्रशासन सील कर देती है.
क्या पीएम डर गए? नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता. मुझे याद है कि पटना गांधी मैदान में बम धमाके के बीच नरेंद्र मोदी रैली करते रहे. उनका मानना था कि अगर रैली नहीं हुई तो स्थिति अराजक हो सकती है. यह तर्क विमर्ष का विषय हो सकता है. गौर करने वाली बात है कि तब वो पीएम नहीं थे. उनपर देश की जिम्मेदारी नहीं थी. तब वो अपनी राजनीति जमाने की कसरत कर रहे थे.
कहा जा रहा है कि पीएम बिना सूचना दिए पाकिस्तान चले गए थे लेकिन अपने ही देश में डर गये? सही बात है. अल्प सूचना पर पाकिस्तान जा कर दुश्मन देश को चौकाना एक रणनीति का हिस्सा हो सकता है. राजनीतिक माइलेज के लिए कोई कुछ भी कहे. निश्चित तौर पर भारत के सीनियर अधिकारियों को पीएम के अचानक पाकिस्तान दौरे की पूर्व सूचना रही होगी. यही गोपनियता नेता को मजबूत बनाता है. कहा जा रहा है कि 1967 में ओडिशा में एक रैली को संबोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भीड़ ने पत्थर दे मारा था. उनकी नाक टूट गई थी. इंदिरा फिर भी भाषण देती रहीं. इंदिरा जी चुनावी रैली को संबोधित कर रही थीं. चुनावी रैली में ऐसी घटनाओं से नेता को सहानुभूति मिलती है. मोदी की सभा भी अगर चुनावी सभा होती तो यकीन मानिए खून की धारा फूटने पर भी मोदी नहीं रुकते. मोदी विरोधी भी इस बात को जानते हैं कि मुद्दा को भावनात्मक रूप से जोड़ने की कला में मोदी 20 नहीं बल्कि 21 है. फिर 05 जनवरी को पंजाब से क्यों वापस आए. इसका वास्तिविक जवाब तो पीएम ही देंगे. लेकिन मेरी समझ से इसके पीछे जो महत्पूर्ण वजहें होंगी
1) अगर टकराव होता है कि किसान बदनाम होगा और अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब होगी.
2) भीड़ का अलगाववादी नाजायज फाएदा उठा सकते थे.
3) वास्तव में सभा स्थल पर भीड़ कम होने की वजह और मौसम की खराबी पीएम को लौटने के लिए प्रेरित किया.
4) बिना सभा किए महफिल यहीं से लूटा जा सकता था, सो पीएम ने किया.
5) पंजाब की राजनीति में अब कांग्रेस के सामने बीजेपी खड़ी हो गई और उत्तर प्रदेश में सेफ पैसेज मिल गया.
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