झारखंड का निर्माण नहीं, बिहार का बंटवारा हुआ था , वृहत्तर झारखंड का सपना आज भी अधूरा : आनंद मोहन
पूर्व सांसद आनंद मोहन व् लवली आनद ने अपने निजी झारखण्ड दौरे के बीच राष्ट्र संवाद से बात करते हुए कहा की ” सर्वप्रथम हम आप सबको नव वर्ष की मंगल कामनाएं देते हैं। नया साल झारखंड सहित आप सबकी जिंदगी में सुख ,शांति और समृद्धि लाए, यह कामना है। यह झारखंड का निर्माण नहीं, बिहार का बंटवारा था।
जिन्होंने “वृहत्तर झारखंड” का सपना देखा था, वह कुछ और था।जिसमें बिहार के साथ – साथ उड़ीसा , बंगाल और छत्तीसगढ़ के बड़े भू भाग भी शामिल थे।
श्री आनद मोहन ने कहा की ” पहली बार “बिहार पीपुल्स पार्टी” ने कहा था कि बंटवारा समस्या का समाधान नहीं है। मेरी सरकार आई तो यहां के मूलवासी आदिवासियों को हम टुकड़े में नहीं , पूरा बिहार देंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री के मामले में सभी जाति – धर्म को जब प्रतिनिधित्व मिला तो गलती से एक बार भी आदिवासी को क्यों नहीं ?
एक पार्टी जो यहां तो खुद को ताकतबार समझती थी, पर संयुक्त बिहार में वोट के मामले में लालू जी हार जाती थी , ने सिर्फ़ राज करने के उद्देश्य से बिहार का बंटवारा कर दिया।
श्री आनद मोहन ने कहा की “कमोबेस यही कहानी यूपी के बंटवारे और उत्तराखण्ड के निर्माण की भी है।
जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदाओं में सबसे अमीर राज्य अपनी स्थापना के ढ़ाई दशकों बाद भी एक अति सुंदर और अत्यंत समृद्ध प्रदेश क्यों नहीं बन पाया! यह सवाल आज भी मुंह चिढ़ाता खड़ा है।
वे कौन लोग हैं जो झारखंड के हितों का गला घोंट रहा है! उसके संसाधनों को लूट कर अपनी तिजौरियां भर रहा है?
मेरी राय में इसे अपनी जागीर समझ जो काम पहले बिहार के कुछ सत्ताधारी नेता कर रहे थे, उस भूमिका में आज देश के चंद उद्योगपति हैं।
अगर झारखंड वासियों को अपने मुस्तकबिल के वास्ते खड़ा होना है तो इन लूटेरों के खिलाफ़ एकजुट लड़ाई – लड़नी ही होगी।
जातीयता से कोई एमएलए – एमपी बन सकता है,समाज नहीं बन सकता ।उसी तरह धार्मिक उन्माद से संभव है, केंद्र और राज्यों में सरकारें बन जाएं, पर देश नहीं बन सकता।
मैं जाति युद्ध को रोटी युद्ध और धर्म युद्ध को रोजी युद्ध में बदलने के संकल्प के साथ झारखंड आया हूं
और झारखंड सहित देश के युवाओं और मूल वासियों को भरोसा दिलाता हूं कि उनके हितों के निर्णायक संघर्ष में साथ हूं।
मंदिर निर्माण का हार्दिक स्वागत है।लेकिन मैं बड़ी विनम्रता से कहना चाहूंगा कि मंदिर को मंदिर ही रहने दें, इसे किसी पार्टी का दफ़्तर न बनाएं।
धर्म और अध्यात्म मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है, संसद और विधानसभाओं तक जाने की सीढ़ी नहीं।