झारखंड : जल्द ही साफ हो जाएगी सियासी ‘पिक्चर’
देवानंद सिंह
झारखंड में पिछले कई दिनों से चली आ रही राजनीतिक अनिश्चितता जेएमएम-कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल के राज्यपाल रमेश बैस से मिलने के बाद जल्द साफ होने की उम्मीद दिखाई देने लगी। हालांकि, राज्यपाल ने तो केवल आश्वासन ही दिया था, लेकिन राज्यपाल के शुक्रवार को दिल्ली रवानगी के बाद भले ही सियासी तौर पर इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि अब राज्य में ज्यादा दिनों तक राजनीतिक अस्थिरता नहीं रह सकती है। बशर्ते, बीजेपी की तरफ से राज्य में महाराष्ट्र जैसा प्रयोग करने की पूरी कोशिश की जा रही होगी, लेकिन हेमंत सोरेन पक्ष भी फिलहाल जेएमएम-कांग्रेस विधायकों को जोड़े रखने में सफल होता दिखाई दे रहा है, इसीलिए विधानसभा में दिल्ली की तर्ज पर विश्वासमत हासिल करने को लेकर आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं।
दरअसल, गुरुवार को जेएमएम-कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को जो ज्ञापन सौंपा, उसमें कहा गया कि मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 192 (1) के तहत जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9-ए के तहत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया गया है, इससे राज्य में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने के लिए राजनीतिक द्वेष को प्रोत्साहन मिल रहा है, इसलिए वो राजभवन से स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह कर रहे हैं। ज्ञापन में ये भी कहा गया था कि अगर, विधानसभा की सदस्यता के लिए मुख्यमंत्री की अयोग्यता सामने भी आती है तो सरकार पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी-निर्दलीय गठबंधन को अभी भी राज्य विधानसभा में प्रचंड बहुमत प्राप्त है, इसीलिए उन्हें सरकार बनाने दी जाए ,
हालांकि राज्यपाल मुख्यमंत्री की विधानसभा सदस्यता के संबंध में कानूनी सलाहकारों से सलाह ले रहे हैं।
दरअसल, हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री रहते हुए रांची के अनगड़ा में अपने नाम पत्थर खदान लीज पर ली थी। बीजेपी ने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ का पद) और जन प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का मामला बताते हुए राज्यपाल के पास शिकायत की थी। राज्यपाल ने इस पर चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था। आयोग ने शिकायतकर्ता और हेमंत सोरेन को नोटिस जारी कर इस मामले में उनसे जवाब मांगा और दोनों का पक्ष सुनने के बाद राजभवन को मंतव्य भेजकर हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की थी। चुनाव आयोग का ये मंतव्य राजभवन के पास है और आधिकारिक तौर पर इस बारे में राजभवन ने कुछ नहीं कहा है, लेकिन राज्यपाल की सक्रियता के बाद इस समस्या का समाधान निकलेगा ही।
हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता समाप्त होने की स्थिति में भी राज्य में सरकार तो बनेगी ही। जिस तरह राज्यपाल की दिल्ली रवानगी हुई है, उससे साफ है कि स्थिति साफ होने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। अगर, राज्यपाल विधानसभा में गठबंधन सरकार से बहुमत सिद्ध करने के लिए कहते हैं तो वह बहुमत सिद्ध कर देगी। कुल मिलाकर इस पर प्रकरण में जेएमएम-कांग्रेस के विधायकों की एकजुटता बीजेपी के लिए अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि जिस तरह के हालात दिखाई दे रहे हैं, उसमें झारखंड बिहार की तर्ज पर ही महाराष्ट्र नहीं बनने जा रहा है। बीजेपी ने बिहार में भी महाराष्ट्र जैसी स्थितियां पैदा करने की कोशिश की, लेकिन वहां उसे मुंह की खानी पड़ी। नीतीश कुमार की जेडीयू से स्वयं बीजेपी से किनारा कर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना ली। झारखंड में भी इसी तरह की कोशिश हो रही थी, लेकिन जेएमएम-कांग्रेस के विधायकों की एकजुटता की वजह से यहां भी बीजेपी का प्रयोग कारगर नहीं हो पा रहा है। इसमें दिल्ली का भी उदाहरण जुड़ गया है, लेकिन वहां भी आम आदमी पार्टी ने सदन में बहुमत सिद्ध कर दिया। लिहाजा, यहां सवाल केंद्र की कार्यशैली पर भी उठते हैं कि आखिर वह चाहती क्या है ? उसे जो भी कदम उठाने चाहिए तत्काल उठाने चाहिए। यह पूरी साफ है कि उसे झारखंड में उलटफेर करने में कोई सफलता नहीं मिलने वाली है।
शुक्रवार को प्रोजेक्ट भवन में सुखाड़ पर हाई लेवल बैठक हुई। सीएम हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई बैठक में कृषि मंत्री बादल पत्रलेख और आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने अधिकारियों के साथ सुखाड़ और समस्याओं से निपटने के लिए रोडमैप तैयार किया।
उसके बाद मंत्री बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख रायपुर गये हैं। चार्टर्ड विमान से रायपुर जाने के क्रम में रांची एयरपोर्ट पर कहा कि 5 सितंबर को यूपीए के सभी विधायक रांची लौट आएंगे। शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने कहा कि राज्यपाल का दिल्ली आना जाना तो काम है, इससे हम पर कोई असर नहीं। जो भी राज्यपाल का निर्णय आएगा, उसके बाद हम लोग विचार करेंगे। उन्होंने कहा सभी विधायक घूमने गए हैं, कल सभी वापस आ जाएंगे। हमारे पास संख्या बल है, सरकार तो चलती ही रहेगी। गठबंधन सरकार के मात्रियों की तरफ से आ रहे इस तरह के बयानों में इस तरह का आत्मविश्वास झलकना सियासी तौर पर काफी महत्वपूर्ण है।