जमशेदपुर अक्षेस के विशेष पदाधिकारी उर्फ अंतर्यामी बाबा के मानगो बस स्टैंड का काला सच
गौरव ‘हिन्दुस्तानी’
जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के अंतर्गत हुए लापरवाही और घोटालों की तह में जितना उतरा जाए उतना ही लापरवाही और घोटालों की परत खुलती नज़र आ रही है।सूत्रों के हवाले से मिले तथ्य के अनुसार जमशेदपुर अ.क्षे.स के अंतर्गत जे.पी. बस स्टैंड के भवन एक में कुल 22 दुकानें अवस्थित थी, जिसकी बंदोबस्ती विभिन्न दरों पर किरायेदारों को दी गयी थी, लेकिन ज.अक्षेस ने कई वर्षों से लेकर 2018-19 तक के किराए की कुल वसूली में 49 लाख से भी अधिक की राशि कम वसूली गयी। यहाँ तक कि दुकान के किराए वसूली का रजिस्टर तक सही से नहीं संभाला गया जमशेदपुर अक्षेस द्वारा, जिस वजह से 22 दुकानों से वसूल की गयी राशि का सही आकलन तक नहीं किया जा सकता। अब ये कारनामा महानता, लापरवाही या घोटाले के दायरे में आएगी ये तो जाँच कमेटी ही बताएगी?
राजस्व हानि का बीड़ा जिस तरह जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति ने उठाई है उसकी बात ही निराली है। दुकान संख्या 5 को खुली डाक द्वारा उच्चतम बोली 5, 43,000 में नवम्बर 2015 को संचालन हेतु आवंटित किया गया था, किन्तु लेने वाले व्यक्ति की व्यक्तिगत कारणों की वजह से दुकान संचालन नहीं कर पाने के कारण जमा राशि वापस करने का अनुरोध किया गया था जिसे मार्च 2016 में तब तक की उपयुक्त राशि काट कर वापस करते हुए बंदोबस्ती समाप्त कर दी गयी थी, लेकिन अगले 26 महीने तक उक्त दुकान को खाली रखा गया और दूसरी ऊंची बोली वाले व्यक्ति से कोई संपर्क नहीं किया गया और मई 2018 में पुनः खुली डाक द्वारा 1 लाख 65 हज़ार सालाना के किराए पर आवंटित की गई। अब सवाल ये उठता है कि आखिर ज.अक्षेस ने 26 महीने तक आखिर दुकान को खाली क्यों रखा? और दूसरी ऊंची बोली वाले व्यक्ति से संपर्क क्यों नहीं किया ? इसका जवाब आखिर जमशेदपुर अक्षेस के पास क्या है ?ये तो जाँच रिपोर्ट से ही पता चलेगी
जिस तरह से सभी बन्दोबस्तीधारी से लॉकडाउन के दौरान भी बंदोबस्ती किराया अक्षेस के द्वारा मांगा जा रहा है, उसी तरह से भुइयांडीह बस स्टैंड पार्किंग का भी इस लॉक डाउन के दौरान बंदोबस्ती किराए की माँग अक्षेस के द्वारा करना चाहिये परंतु अदृश्य शक्ति के दबाव में यह मामला फाइल में दबा है सूत्र से पता चला है कि पार्किंग की खुली डाक में जो संवेदक अधिकतम बोली लगाकर लिया था, वो किसी कारणवश एक महीने में ही पार्किंग कार्य सरेंडर कर दिया । फलस्वरूप दूसरे अधिकतम बोली लगाने वाले को पार्किंग कार्य का जिम्मा बिना किसी जमानत राशि के दे दिया गया और ना ही कोई एकरारनामा किया गया ।जबकि निविदा के शर्तो के अनुसार जमानत राशि और रजिस्टर्ड एकरारनामा करना था। क्या पार्किंग कार्य भी अब विभागीय होने लगा? लेकिन इस वजह से सरकार को राजस्व में करोड़ो का नुकसान उठाना पड़ा
जमशेदपुर अक्षेस के अंतर्गत निमार्ण कार्य में भी अनियमितता इस कदर है कि कहीं निर्धारित मात्रा से अधिक और कहीं कम कार्य को कार्यन्वित किया गया। सूत्रों के हवाले से पता चला है कि अधिकता की प्रतिशतता 9% से 187% के बीच है, जिसमें 46000 राशि के अधिक कार्यों को कार्यान्वयन का भुगतान किया गया। वहीं निर्धारित मात्रा से कम कार्यों की कार्यन्वित की गयी कार्य की कमी प्रतिशतता 13% से 53% के बीच है, जिसकी वजह से कार्य की गुणवत्ता में कमी भी हुई और इस तरह का कार्य अवमानक भी है। बात यहीं ख़त्म नहीं होती है, जमशेदपुर अक्षेस में सामग्री की ढुलाई के कार्य से भी घोटाले की बू आ रही है। निर्माण कार्यों के लिए उपयुक्त में आने वाली सामग्री की ढुलाई के लिए जो भाड़ा प्रावधान में था उससे अधिक भाड़ा का भुगतान किया गया, जिसकी वजह से 35000 से ज्यादा राशि का अधिक व्यय हुआ है। निर्धारित भाड़ा को ताक पर रख कर ज्यादा भुगतान करने की क्या जरूरत पड़ी या विचारणीय और जाँच का विषय है, क्योंकि निर्धारित भाड़ा सरकारी दर के हिसाब से ही होगा, तो इसमें बदलाव आखिरकार क्यों किया गया।
क्रमशः “बस स्टैंड की और भी चौकाने वाली कहानियाँ”