अंकों की होड़ में बच्चों को न डालें
जय प्रकाश राय
इन दिनों 10वीं एवं 12वीं की परिणाम सामने आ रहे हैं। सीबीएसई, आईसीएससी बोर्ड के अलावे विभिन्न राज्यों के बोर्ड के परिणाम आ रहे हैं। इन परिणामों में 99 प्रतिशत तक अंक पाने की होड़ मची हुई है। विभिन्न विद्यार्थियों की सक्सेस स्टोरी अखबारंों की सुर्खियां बनने लगती हैं। ऐसे में उन विद्यार्थियों पर काफी दबाव रहता है जिनके अंक कम आते हैं। हाल ही बोकारो की एक भाजपा नेत्री के बेटे ने कम अंक आने के कारण आत्महत्या कर ली। ऐसे कई विद्यार्थी हैं जो इस दबाव में टूट जाते हैं और अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। ऐसे में 2015 में यूपीएससी परीक्षा क्लीयर करने वाले आईएएस नितिन सांगवान ने अपने 12वीं की माक्र्स शीट सोसल मीडिया में पोस्ट की. ये कोई टॉपर की मार्कशीट नहीं थी। न ही इसमें किसी विषय में प्राप्त अंकों के आगे 100 लिखा था। बल्कि मार्कशीट पर केमिस्ट्री विषय में अभ्यर्थी को मात्र 24 मार्क्स मिले दिख रहे हैं। नितिन सांगवान ने ट्वीट कर इन्हीं 24 मार्क्स की तरफ स्टूडेंट्स का ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा – 12वीं कक्षा में केमिस्ट्री में मुझे 24 मार्क्स मिले थे। ये पासिंग मार्क्स से सिर्फ एक अंक ज्यादा था। लेकिन इन मार्क्स से यह तय नहीं हुआ कि मुझे अपने जीवन से क्या चाहिए। बच्चों पर मार्क्स का प्रेशर मत बनाइए। जिंदगी बोर्ड एग्जाम से कहीं ज्यादा है। रिजल्ट को आत्मनिरीक्षण का मौका समझें, न कि क्रिटजिज्म का। नितिन सांगवान ने कहा कि जब मैंने दोस्तों और परिवार के लोगों को मार्क्स को लेकर चिंतित देखा। तो लगा कि मेरी हालत तो इससे ज्यादा खराब थी। यहीं से आइडिया आया कि मार्कशीट शेयर कर लोगों को बताया जाए कि जब मैं जीवन में इतना कर सकता हूं। तो वो भी काफी कुछ कर सकते हैं।
नितिन सांगवान ने ऐसे समय में समाज की आंखें खोलने का काम किया है जब हम अंकों की होड़ में लगे हुए हैं। हर कोई जानता है कि 10वीं एवं 12वीं की परीक्षा काफी महत्वपूर्ण होती है लेकिन यही अंत नहीं होता। अच्छे कालेजों में दाखिला का दबाव भी छात्रों पर अभिभावकों की ओर से डाला जाता है। सोसल मीडिया के इस दौर में यह दबाव काफी बढता जा रहा है। समाज का काफी दवाब अब ऐसे मामलों में होने लगा है और अभिभावक इसी अंधी दौड़ में अपने बच्चों पर ऐसा दबाव डालने लगते हैं जिसके आगे वे टूट जाते हैं। आईएएस नितिन सांगवान ने कहा – 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं निश्चित तौर पर करियर का माइलस्टोन होती हैं। लेकिन, सिर्फ यही एग्जाम आपका भविष्य तय नहीं करते। मार्कशीट ट्वीट करके यही बताना चाहता था। हमें समझना होगा कि सफलता डिग्री या मार्कशीट पर निर्भर नहीं करती। और वैसे भी एजुकेशन का मूल उद्देश्य मार्क्स पाना बिल्कुल भी नहीं है।
जमशेदपुर की ही बात करें तो यहां 12वीं के बाद विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा के लिये बाहर भेजने की ऐसी परिपाटीचल पड़ी है जिस कारण यह धारणा होती जा रही है कि जमशेदपुर में रहकर बेहतर कैरियर नहीं है। लेकिन जमशेदपुर के लगातार दो उपायुक्त ऐसे हैं जिन्होंने स्थानीय करीम सिटी कालेज से ही अपना स्नातक किया। उसके बाद अपनी मेहनत और लगन की बदौलत उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आज वे इस मुकाम पर हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण सामने हैं। अभिभावकों को यह बात समझनी होगी और अपने बच्चों पर अंक का दबाव डालने के बजाय उनको बेहतर शिक्षा के लिये प्रेरित करना होगा। उनमें आत्म विश्वास भरने की जरुरत है न कि उनको हत्तोत्साहित करने की। सामान्य तौर पर यह देखा जाता है कि परिणाम निकलने के दिन ही बच्चों को उलाहना दी जाने लगती है कि हम तो 97 प्रतिशत की अपेक्षा कर रहे थे, तुमको 95 प्रतिशत ही मिला। यह देखा जाना जरुरी है कि यह दिन उसकी कामयाबी का है। आज के दिन तो कम से कम उसे उत्साहित किया ही जाना चाहिये।
लेखक चमकता आईना हिंदी दैनिक के संपादक हैं