अनुदान के बिना विकास को रफ्तार देना संभव ही नहीं
देवानंद सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शनिवार को हुई नीति आयोग की बैठक का इंडिया गठबंधन ने बहिष्कार का एलान किया था, लेकिन राज्यहित में झारखंड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने अधिकारियों के साथ इस बैठक में हिस्सा लेने का मन बनाया था, जेएमएम भी इंडिया गठबंधन हिस्सा है, इस बात को लेकर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक चर्चा होने लगी कि आने वाले दिनों में निश्चित ही झारखंड की सियासत नई करवट लेने वाली है, जो आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भी एक महत्वपूर्ण सुगबुगाहट मानी जाने लगी उसके बाद अचानक परिदृश्य बदला और नीति आयोग के बैठक में मुख्यमंत्री हेमंत शामिल नहीं हुए, हालांकि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी नीति आयोग की बैठक में शामिल होने दिल्ली पहुंची और बैठक के बीच से निकालकर सियासत गर्म कर गई पहले तो लोगों ने समझा कि कहीं इंडिया गठबंधन की डोर टू कमजोर नहीं पड़ रही है।
जिस तरह हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद केंद्र सरकार द्वारा झारखंड को केंद्रीय योजनाओं के लिए मिलने वाले अनुदान में लगातार कमी की जा रही है, वह राज्य के विकास को रफ्तार देने के लिहाज से चिंताजनक है और केंद्र से मिलने वाले अनुदान के बिना विकास को रफ्तार देना संभव ही नहीं है।
अगर, आंकड़ों पर गौर करें तो 2019-20 के वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार की ओर से 12 हजार करोड़ केंद्रीय अनुदान के मद में दिया गया था। साल दर अब घटकर 2023-24 में 9100 करोड़ ही रह गई है, जो अच्छा संकेत भी नहीं है और इसमें राजनीतिक दुर्भावना भी झलकती है, इसीलिए मुख्यमंत्री के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह अपने राज्य झारखंड के लोगों के लिए और धनराशि मांगें, इसीलिए मुख्यमंत्री इस बैठक में झारखंड के मुख्य सचिव एल ख्यांगते और वित्त सचिव प्रशांत कुमार के साथ शामिल होकर अपनी बातों को दमदार तरीके से रखते तो राज्य का भला हो सकता था