आपका रुठ जाना मुनासिब नहीं
रोज़ हमको सताना मुनासिब नहीं
राष्ट्र संवाद संवाददाता
बिजलियां जब तड़कती हैं लगता है डर
बारिशों में बुलाना मुनासिब नहीं
उनकी नाराज़गी पर मनाते हैं हम
सर झुका गिड़गिड़ाना मुनासिब नहीं
प्यार है इसलिए हैं परेशान हम
सबकी चौखट पे जाना मुनासिब नहीं
तुम हो लाखों में इक जिसपे मरते हैं हम
हर कहीं दिल लगाना मुनासिब नहीं
प्यार पे तोहमतें ना लगाए जहां
इसलिए सच बताना मुनासिब नहीं
खिलखिलाती न मुरझाएं कलियां कहीं
खेलकर दिल से जाना मुनासिब नहीं
एक राजा रहे एक रानी हो बस
हर जगह गुल खिलाना मुनासिब नहीं
फैसला था तुम्हारा गये छोड़कर
अब हमें फिर से पाना मुनासिब नहीं
~ शिखा दीप्ति दीक्षित