देवानंद सिंह
भारतीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका सत्ता की जवाबदेही सुनिश्चित करने और लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए अत्यंत आवश्यक मानी जाती है। किंतु जब राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य अभियानों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विपक्ष के बयान अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत विरोधी प्रचार के हथियार बन जाएं, तब यह स्थिति चिंताजनक हो जाती है। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पवन खेड़ा द्वारा दिए गए बयान और उस पर पाकिस्तानी मीडिया जिस तरह के सवाल खड़े कर रहा है, वह अत्यंत चिंताजनक है।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में जिस तरह आतंकी हमले में 26 लोगों को मारा गया, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर नामक सैन्य कार्रवाई के जरिए इनका बदला लिया गया। इस ऑपरेशन का उद्देश्य पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में स्थित आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना था। भारत सरकार का दावा था कि यह एक लक्षित और सीमित सैन्य कार्रवाई थी, जिसमें नागरिक क्षेत्रों को निशाना नहीं बनाया गया। ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी ड्रोन से हुए हमले का भारतीय वायुसेना द्वारा दिया गया जवाब और उसके वीडियो प्रमाण भी सार्वजनिक किए गए। इन सबके बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर का एक बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत ने ऑपरेशन की शुरुआत में पाकिस्तान को सूचित किया था कि हमला केवल आतंकी ठिकानों पर होगा, सेना पर नहीं।
विदेश मंत्री के इसी कथन को कांग्रेस ने निशाने पर ले लिया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि यह सूचना देकर भारत ने आतंकियों को भागने का मौका दिया, जिसके कारण उन्हें बचाया जा सका। राहुल गांधी ने यहां तक कहा कि इससे भारतीय वायुसेना को नुकसान उठाना पड़ा और उन्होंने जयशंकर से यह स्पष्ट करने की मांग की कि भारत को कितने विमान गंवाने पड़े, हालांकि विदेश मंत्रालय और पीआईबी की फैक्ट चेक यूनिट ने राहुल गांधी के इस बयान को तथ्यों का गलत प्रस्तुतीकरण करार दिया। उनका कहना था कि पाकिस्तान को यह सूचना ऑपरेशन की शुरुआत के बाद दी गई थी, और वह भी इसलिए कि भारत एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है और उसके हमले केवल आतंकी ठिकानों तक सीमित हैं, न कि पाकिस्तान की सेना पर।
राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा उठाए गए सवालों को पाकिस्तानी मीडिया ने हाथों-हाथ लिया। कई पाकिस्तानी समाचार चैनलों ने इन बयानों को प्रमुखता से दिखाते हुए यह चित्र प्रस्तुत किया कि भारत की अपनी राजनीति में भी सैन्य कार्रवाई को लेकर असहमति है। उन्होंने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान ने कई भारतीय ड्रोन गिराए, हालांकि इसकी पुष्टि करने वाला कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया। इसके अलावा, पाकिस्तानी मीडिया ने ऑपरेशन सिंदूर को नागरिकों पर हमला करार देने की कोशिश की, जबकि भारतीय सेना ने स्पष्ट किया कि उनके हमले केवल आतंकी ठिकानों तक सीमित थे। यह घटना बताती है कि भारत में घरेलू स्तर पर की गई असावधान टिप्पणियां कैसे सीमाओं के पार जाकर भारत विरोधी नैरेटिव का हिस्सा बन जाती हैं। यह सही है कि लोकतंत्र में सरकार की आलोचना विपक्ष का अधिकार है, बल्कि यह उसकी जिम्मेदारी भी है। किंतु सैन्य अभियानों और सुरक्षा रणनीतियों के मामलों में यह आलोचना अत्यंत संवेदनशील कही जा सकती है। किसी भी सैन्य ऑपरेशन के पीछे रणनीतिक, कूटनीतिक और खुफिया सूचनाओं का समन्वय होता है, जिन्हें सार्वजनिक रूप से साझा करना हमेशा संभव नहीं होता है।
राहुल गांधी द्वारा पूछा गया यह सवाल कि कितने विमान गंवाने पड़े, एक तो आधारहीन है, और दूसरा यह सवाल सार्वजनिक मंच पर नहीं बल्कि संसद की बंद बैठक या रक्षा मामलों की स्थायी समिति में उठाया जाना चाहिए था। जब विपक्ष इस तरह के प्रश्नों को मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए उठाता है, तो वह अनजाने में दुश्मन देशों को भारत के भीतर ‘राजनीतिक फूट’ के संकेत देता है। पाकिस्तान जैसा देश, जो लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करता रहा है, ऐसे बयानों का इस्तेमाल करके अपने नैरेटिव को मजबूत करता है, इससे भारतीय कूटनीति को नुकसान हो सकता है। जब देश के भीतर ही राजनीतिक नेता सैन्य कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं, तो इससे सेना के जवानों में निराशा और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
जब विदेश मंत्री कहते हैं कि पाकिस्तान को ऑपरेशन की शुरुआत में सूचित किया गया, और विपक्ष इसे ऑपरेशन से पहले की सूचना करार देता है, तो इससे आम जनमानस में भ्रम की स्थिति बनती है, जिसका फायदा शत्रु उठाते हैं। भारत एक जिम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति और वैश्विक सुरक्षा भागीदार बनने की दिशा में अग्रसर है। यदि , ऐसे संवेदनशील मसलों पर देश के भीतर ही असहमति की छवि प्रस्तुत की जाती है, तो इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचता है।
विश्लेषक कहते हैं कि परमाणु संपन्न देशों के बीच इस तरह की सूचना का आदान-प्रदान एक ज़िम्मेदार कार्रवाई है, इसीलिए पाकिस्तान को सूचना देना यह दिखाता है कि भारत की मंशा केवल आतंकी ठिकानों को नष्ट करने की थी, न कि युद्ध छेड़ने की। विश्लेषकों के अनुसार, इस तरह की रणनीति 1999 के कारगिल युद्ध और 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद विकसित भारत की प्रोएक्टिव डिटरेंस नीति का हिस्सा मानी जा सकती है, जहां भारत हमला करता है, लेकिन एक सीमित और पारदर्शी ढंग से, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह लगे कि भारत एक्टिव रेस्पॉन्स दे रहा है, न कि अग्रसक आक्रांता बन रहा है।
ऐसे में, राहुल गांधी और कांग्रेस का यह दावा कि भारत ने पाकिस्तान को सूचित कर आतंकियों को भागने दिया, केवल एक अनुमान पर आधारित है, जिसका कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। वही बयान अगर सही मंच पर, उचित भाषा में, और तथ्यों के साथ सामने रखा जाता, तो उसका महत्व भी अधिक होता और राष्ट्रीय हित भी सुरक्षित रहते।
आज जब भारत एक जटिल भू-राजनीतिक परिवेश में है, चीन से सीमा तनाव, पाकिस्तान से आतंकवाद, और विश्व मंच पर भूमिका की अपेक्षा, तब विपक्ष को सरकार की आलोचना के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति भी जवाबदेह होना होगा। राजनीति में वैचारिक मतभेद आवश्यक हैं, परंतु राष्ट्र की सुरक्षा पर एकता और संयम की अपेक्षा रहती है। ऑपरेशन सिंदूर पर हुए विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विपक्ष की जिम्मेदारी केवल सवाल उठाने की नहीं, बल्कि उन सवालों को राष्ट्रीय हित के दायरे में रखते हुए उठाने की भी है।