देवानंद सिंह
पिछले दिनों भारत के लिए दो बड़ी कूटनीतिक सफलताएं सामने आई हैं—पहली, 2008 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण, और दूसरी पंजाब नैशनल बैंक (PNB) घोटाले के मुख्य आरोपी मेहुल चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी की। ये दोनों घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि भारत अब वैश्विक मंच पर न सिर्फ अपनी उपस्थिति को मजबूती से दर्ज करा रहा है, बल्कि आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े मामलों में भी अपनी प्राथमिकताओं को विश्व समुदाय के सामने प्रभावी ढंग से रख पा रहा है। विशेष रूप से मेहुल चोकसी की गिरफ्तारी, जो वर्षों से प्रत्यर्पण की प्रक्रिया को कानूनी पेचीदगियों में उलझाकर टालता रहा, जो भारत की न्यायिक और कूटनीतिक इच्छाशक्ति की परीक्षा मानी जा रही थी।
मेहुल चोकसी और उसके भांजे नीरव मोदी द्वारा किया गया 13,500 करोड़ रुपये का लोन घोटाला भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक अपराध माना जाता है। यह केवल वित्तीय धोखाधड़ी नहीं थी, बल्कि देश की बैंकिंग प्रणाली में व्याप्त खामियों, अंदरूनी भ्रष्टाचार और नियामकीय ढिलाई का भी खतरनाक उदाहरण थी। जब जनवरी 2018 में इस घोटाले का खुलासा हुआ, तब तक दोनों आरोपी देश छोड़कर भाग चुके थे और भारत की सुरक्षा एजेंसियों को केवल इंटरपोल नोटिस और कानूनी प्रक्रियाओं के सहारे उनका पीछा करना पड़ा।
भारत ने न केवल इंटरपोल के माध्यम से रेड कॉर्नर नोटिस जारी कराए, बल्कि विभिन्न देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियों के अंतर्गत कूटनीतिक प्रयास भी तेज कर दिए। नीरव मोदी फिलहाल लंदन की जेल में है और उसका प्रत्यर्पण लंबी कानूनी प्रक्रिया में उलझा हुआ है, जबकि चोकसी, एंटीगुआ की नागरिकता लेकर खुद को कानूनी सुरक्षा कवच में समेटने की कोशिश करता रहा। बता दें कि मई 2021 में डोमिनिका में चोकसी की गिरफ्तारी भारत के लिए एक सुनहरा मौका था। माना जा रहा था कि उसे जल्द ही भारत लाया जा सकेगा, लेकिन चोकसी और उसके वकीलों ने इस बार भी अंतरराष्ट्रीय कानूनों की बारीकियों का लाभ उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि चोकसी को एंटीगुआ से जबरन अगवा करके डोमिनिका लाया गया, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। साथ ही, चोकसी ने खुद को एंटीगुआ का नागरिक बताते हुए यह भी दलील दी कि चूंकि एंटीगुआ और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है, अतः उसे भारत नहीं भेजा जा सकता।
इस पूरे विवाद का असर यह हुआ कि न केवल भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचा, बल्कि इंटरपोल ने भी बाद में अपना रेड कॉर्नर नोटिस वापस ले लिया। इस घटना ने चोकसी को एक बार फिर समय दे दिया और भारत को प्रत्यर्पण के एक और प्रयास में असफलता हाथ लगी। बेल्जियम में हालिया गिरफ्तारी भारत के लिए राहत की खबर जरूर है, लेकिन इससे चोकसी को भारत लाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। बेल्जियम के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है, जो कानूनी प्रक्रिया की राह को सैद्धांतिक रूप से आसान बनाती है, लेकिन यूरोपीय देशों में प्रत्यर्पण की प्रक्रिया बेहद सख्त और न्यायिक संतुलन पर आधारित होती है। वहां की अदालतें तभी किसी आरोपी को प्रत्यर्पित करने की अनुमति देती हैं, जब उन्हें यह सुनिश्चित हो जाए कि आरोपी को उसके देश में निष्पक्ष और मानवीय न्याय मिलेगा।
चोकसी के वकील पहले ही यह संकेत दे चुके हैं कि वे बेल्जियम की अदालत में भी वही तर्क दोहराएंगे, जो उन्होंने डोमिनिका में दिए थे। इस बार भी वे मानवाधिकार हनन, न्यायिक निष्पक्षता की कमी और राजनीतिक प्रतिशोध जैसे आरोप लगा सकते हैं। ऐसे में भारत को न केवल मजबूत साक्ष्य पेश करने होंगे, बल्कि यह भी साबित करना होगा कि चोकसी को भारत में निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया का पूर्ण अवसर मिलेगा। हाल के वर्षों में भारत ने वैश्विक मंचों पर अपने प्रभाव को बढ़ाया है। चाहे वह जी-20 की अध्यक्षता हो, ब्रिक्स में सक्रिय भागीदारी या क्वाड जैसे रणनीतिक समूहों में निर्णायक भूमिका, भारत अब वैश्विक नीतिगत चर्चाओं का एक जरूरी हिस्सा बन चुका है। इसका असर भारत की न्यायिक मांगों और प्रत्यर्पण जैसे मामलों में भी देखने को मिल रहा है।
तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के मामले में अमेरिका की सहमति, और अब बेल्जियम द्वारा चोकसी की गिरफ्तारी, इस बढ़ते प्रभाव के प्रमाण हैं, लेकिन इन सफलताओं को अंतिम परिणति तक पहुंचना ही असली कसौटी है। इसके लिए भारत को बेल्जियम सरकार से उच्च-स्तरीय संपर्क साधना होगा, और यह सुनिश्चित करना होगा कि चोकसी को भारतीय न्यायपालिका के समक्ष लाया जा सके।
भारत को यह समझने की आवश्यकता है कि आर्थिक अपराध भी अब अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और कानूनी बहसों का हिस्सा बन चुके हैं। केवल कानूनी दलीलों से काम नहीं चलेगा, बल्कि व्यापक कूटनीतिक दबाव, अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्रबंधन और मानवीय दृष्टिकोण की पारदर्शिता भी जरूरी होगी। बेल्जियम जैसे देश, जहां मानवाधिकारों और न्यायिक स्वतंत्रता की गहरी जड़ें हैं, वहां किसी भी तरह की चूक भारत की स्थिति को कमजोर कर सकती है। इसलिए, भारत को चोकसी के पिछले आरोपों और डोमिनिका की घटना से सबक लेते हुए बेहद सावधानीपूर्वक अपनी रणनीति बनानी होगी। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय न्याय व्यवस्था में विश्वास बहाल करने वाले सभी साक्ष्य और प्रक्रियाएं अपनानी होंगी।
कुल मिलाकर, मेहुल चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी भारत के बढ़ते वैश्विक दबदबे और आर्थिक अपराधों के प्रति उसकी शून्य सहिष्णुता नीति का संकेत है। यह एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि है, लेकिन अंतिम सफलता तभी मानी जाएगी जब चोकसी भारतीय अदालत में न्याय के कठघरे में खड़ा होगा। इसके लिए भारत को कानूनी, कूटनीतिक और नैतिक तीनों मोर्चों पर बेहद सतर्क और दृढ़ रहना होगा। यह सिर्फ एक आर्थिक अपराधी को सजा दिलाने का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत की न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसके राजनीतिक प्रभाव की परीक्षा भी है।