जल्दबाजी में सत्ता हस्तांतरण कितना उचित ?
देवानंद सिंह
जेल से बाहर आने के बाद जिस तरह हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, उसके बाद सियासी गलियारों में कई तरह के सवाल तैरने लगे हैं। एक तरफ उनके मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने के बाद विधानसभा चुनावों में सकारात्मक असर देखने के कयास लगाए जा रहे हैं और दूसरी तरफ यह सवाल भी तेजी से उठ रहा है कि हेमंत सोरेन को जेल से बाहर आने के बाद मुख्यमंत्री बनने की इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी। चुनाव तक उन्हें चंपाई सोरेन को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहने देना चाहिए था, क्योंकि इसका विधानसभा चुनावों में उन क्षेत्रों में असर पड़ने की संभावना है, जिन क्षेत्रों में चंपाई सोरेन का अच्छा-खासा वर्चस्व है। दरअसल, झारखंड राज्य पांच प्रशासनिक क्षेत्रों में बंटा है, जिसमें दक्षिण छोटानागपुर, उत्तर छोटानागपुर, संथाल परगना, पलामू और कोल्हान प्रशासनिक क्षेत्र शामिल हैं।
कोल्हान क्षेत्र के अंतर्गत कुल 14 विधानसभा सीटें हैं। यहां ऐसी 7-8 सीटें हैं, जिन पर चंपाई सोरेन का अच्छा ख़ासा प्रभाव है। ऐसे में, अगर वो पार्टी के प्रति थोड़ी भी नाराज़गी सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर करेंगे तो इसका असर चुनाव पर पड़ना निश्चित है। चंपाई सोरेन के प्रति लोगों की सहानुभूति न बढ़े, इसके लिए उनके ख़िलाफ़ मीडिया में नैरेटिव चलाया गया कि चंपाई सोरेन के पारिवारिक सदस्य टेंडर सेटिंग जैसी चीज़ों में संलिप्त थे, जिसके कारण पार्टी की छवि ख़राब हो रही थी, लेकिन जिस राजनीतिक सुचिता का हवाला देकर इस फ़ैसले के बचाव की कोशिश की जा रही है, यह भी सच है कि वो ख़ुद सोरेन परिवार में नहीं बची, इसलिए यह तर्क लोगों के गले उतर पाएगा, ऐसा नहीं लगता है।
अगर, चंपाई सोरेन चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहते और हेमंत सोरेन कैंपेनिंग संभालते, संगठन को मज़बूत करते तो इससे उनकी पार्टी को अच्छा फ़ायदा होता। यहां ऐसा लगता है कि हेमंत सोरेन को यह डर रहा होगा कि चंपाई सोरेन के मुख्यमंत्री रहते ही महागठबंधन अगर चुनाव लड़ता और जीत जाता तो चंपाई सोरेन भी अपनी दावेदारी पेश कर सकते थे? फिलहाल, मुख्यमंत्री बनाए जाने पर हेमंत सोरेन के समर्थकों और कार्यकर्ताओं में खुशी और उत्साह का माहौल है, लेकिन एक खेमा चुनाव के चंद महीने पहले चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री के पद से हटाने के फ़ैसले पर भी सवाल उठा रहा है।
उसका मानना है कि हेमंत सोरेन पहले से ही सर्वमान्य नेता हैं, ऐसे में अगर वो चुनाव के बाद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते तो क्या बिगड़ जाता? हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों का मानना है कि जब साल 2019 में हेमंत सोरेन के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया, जनादेश उनके चेहरे पर आया, वे ही प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए तो उनके दोबारा कमान संभालने से किसी को क्यों दिक़्कत होनी चाहिए? लेकिन यह भी बताया जा रहा है कि चंपाई सोरेन ख़ुद अपने इस्तीफ़े के लिए तैयार नहीं थे। बीते दो जुलाई को मुख्यमंत्री आवास पर बुलाई गई विधायक दल की बैठक में चंपई सोरेन थोड़े भावुक हो गए थे। उनका कहना था कि चुनाव से दो महीने पहले इस्तीफ़ा देने से लोगों के बीच ग़लत संदेश जाएगा। चंपाई सोरेन मीटिंग ख़त्म होने से पहले ही उठकर चले गए थे, हालांकि उन्होंने जाने से पहले विधायकों को आश्वस्त किया कि वो इस्तीफ़ा दे देंगे। बस राजभवन पहुंचने का तय समय उनके साथ साझा कर दिया जाए। कुल मिलाकर, सत्ता का इतना सहज हस्तांतरण तो दूसरे किसी राज्य में पहले कभी देखा ही नहीं गया।
चंपाई सोरेन के हालिया लिए कुछ फ़ैसलों ने भी हेमंत सोरेन को असुरक्षित महसूस करवाया। चुनाव से पहले चंपाई सोरेन लगातार लोक लुभावन घोषणाएं कर रहे थे, उन्होंने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कर दीं, नौकरियों के मामले में भी घोषणाएं की गईं। भले ही, ये सारी घोषणाएं हेमंत सोरेन की सहमति से की गईं, लेकिन चुनाव में महत्वपूर्ण ये हो जाता है कि किसके कार्यकाल या किसके नेतृत्व में फ़ैसले लिए गए, इसलिए हेमंत सोरेन नहीं चाहते थे कि चुनाव के दौरान चंपाई सोरेन एक बड़े फ़ैक्टर के रूप में उभरे। उन्हें चंपाई सोरेन के लोकप्रिय होने का एक ख़तरा हो सकता था। हेमंत सोरेन के सामने गुटबाज़ी का भी ख़तरा मंडरा रहा था। सीता सोरेन के प्रकरण के बाद वो नहीं चाहते थे कि उनके ख़िलाफ़ एक और गुट तैयार हो, उन्हें डर था कि चुनाव के बाद कहीं चंपई सोरेन के नेतृत्व में कोई प्रेशर ग्रुप न खड़ा हो जाए, इसीलिए लगता है कि हेमंत सोरेन का ये फ़ैसला असुरक्षा की भावना से प्रभावित है, इस लिहाज से आगामी विधानसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण होंगे।
अगर, वर्तमान परिस्थितियों के लिहाज से आगामी विधानसभा चुनाव में बेहतर परिणाम आएगा तो निश्चित ही हेमंत सोरेन द्वारा जेल से आने के बाद मुख्यमंत्री पद लेने में की गई जल्दबाजी को अच्छा माना जाएगा, बेहतर परिणाम नहीं आने की स्थिति में उनके इस कदम की आलोचना होगी, इसीलिए विधानसभा चुनावों के परिणामों को देखना दिलचस्प होगा।