‘इंडिया’ गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन की बढ़ती मांग
देवानंद सिंह
भारत में राजनीतिक गठबंधनों की स्थिरता और भविष्य हमेशा से एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा रहा है, क्योंकि गठबंधन में संतुलन बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। ऐसा ही कुछ इंडिया गठबंधन में भी देखने को मिल रहा है। फिलहाल, इसका नेतृत्व कांग्रेस के पास है, लेकिन अब गठबंधन की अगुआई पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने करने की इच्छा जताई है, इतना हैं नहीं, ममता के समर्थन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू यादव का बयान भी आया है, जिसके बाद गठबंधन के नेतृत्व परिवर्तन को लेकर बहस तेज हो गई है, हालांकि लालू यादव से पहले समाजवादी पार्टी, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) इस मुद्दे पर ममता बनर्जी का समर्थन कर चुकी हैं।
सवाल इसीलिए भी है, क्योंकि लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के रिश्ते पिछले काफी समय से अच्छे हैं। बिहार और झारखंड में दोनों दलों के बीच अब तक अच्छा तालमेल दिखा है। खुद लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव के कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ व्यक्तिगत रिश्ते अच्छे माने जाते हैं। शायद यही वजह है कि इंडिया गठबंधन के नेतृत्व के लिए ममता बनर्जी का समर्थन करने के लालू यादव के बयान ने कई विश्लेषकों को चौंकाया है।
तेजस्वी यादव ने भी अपने पिता का समर्थन किया है और कहा कि ममता बनर्जी के नेतृत्व को लेकर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कोई भी फैसला सबकी (गठबंधन में शामिल सभी दलों) सहमति से होना चाहिए। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं से इनकार किया है। माना जा रहा है कि ऐसा करके वो भी कांग्रेस को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करता नहीं देखना चाहते हैं। ऐसे में, यह सवाल भी उठता है कि
‘इंडिया’ गठबंंधन में शामिल कुछ पार्टियां कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल क्यों उठा रही हैं ?
दरअसल, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) और तृणमूल कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन से विपक्ष के हौसले बुलंद थे। उसे लग रहा था कि अब वो विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हरा देगा, लेकिन राज्यों के चुनाव में खास कर हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार के बाद बाकी विपक्षी दलों को लग रहा है कि इससे ‘इंडिया’ गठबंधन कमजोर हुआ है। कांग्रेस की वजह से उनकी कहानी आगे नहीं बढ़ रही है। इंडिया गठबंधन के नेतृत्व पर दावेदारी विपक्ष की इसी खीज की अगली कड़ी है।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस को हाल के विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा। हरियाणा में इसे 90 सीटों में से सिर्फ 37 सीटें मिलीं।उधर, जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों में सिर्फ उसे छह सीटें मिली हैं और वो नेशनल कॉन्फ्रेंस की जूनियर पार्टनर बन कर रह गई। वहीं, महाराष्ट्र में वो महाविकास अघाड़ी गठबंधन में सबसे ज़्यादा 103 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन सिर्फ 16 सीटें जीत पाई।
हालांकि ये भी सच्चाई है कि जो पार्टियां ‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर सवाल उठा रही हैं, उनका भी प्रभाव एक-दो राज्यों से अधिक नहीं है। चाहे वो ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस हो या लालू यादव की आरजेडी या फिर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी या फिर शरद पवार की एनसीपी, जबकि कांग्रेस की मौजूदगी अब भी पूरे देश में है।
विश्लेषकों का मानना कि सेक्युलरिज्म जैसे अहम मुद्दे को लेकर कांग्रेस के रवैए ने भी सहयोगी दलों को नाराज़ किया है। ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल शिवसेना (उद्धव ठाकरे) ने छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय लेते हुए अख़बार में जो विज्ञापन दिया और कांग्रेस चुप रही, उससे भी इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियां उससे नाराज़ हैं। महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया, लेकिन कांग्रेस ने कुछ नहीं कहा।
यह भी सच है कि कांग्रेस अभी तक ये तय नहीं कर पाई है कि आख़िर हिंदुत्व के मुद्दे पर उसका क्या रुख़ है। वो ‘हार्ड हिंदुत्व’ के पक्ष में है या ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ के या सेक्युलरिज्म के पक्ष में। चुनाव आते ही राहुल गांधी मंदिर-मंदिर तिलक लगा कर घूमना शुरू कर देते हैं। इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टी को कांग्रेस का ये रवैया अखरता है, इसको लेकर भज कांग्रेस को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, जिससे मतदाताओं में स्पष्ट संदेश जाए।
जहां तक नेतृत्व परिवर्तन का सवाल है, ममता बनर्जी का नेतृत्व क्षेत्रीय दलों को लुभा सकता है। वे महसूस कर सकते हैं कि एक मजबूत प्रादेशिक नेता ही पूरे विपक्ष को एकजुट कर सकता है। खासकर, वह दल जो कांग्रेस से असंतुष्ट हैं, वो ममता को एक नए विकल्प के रूप में देख सकते हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस के पास अभी भी कुछ प्रमुख राज्य हैं, जहां कांग्रेस का प्रभाव बना हुआ है। फिर भी, कांग्रेस के लिए अपनी स्थिति को बनाए रखना आसान नहीं होगा।
अगर, ममता बनर्जी को ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व मिलता है, तो इससे कई नाटकीय बदलाव भी हो सकते हैं। सबसे पहले, कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि यह उसकी राष्ट्रीय राजनीति में सशक्त भूमिका को कमजोर करेगा। इससे कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता निराश हो सकते हैं, जो लंबे समय से पार्टी के नेतृत्व में बदलाव की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन यह भी हो सकता है कि कांग्रेस नए नेतृत्व के तहत फिर से अपनी पहचान बना सके।
दूसरी ओर, ममता के नेतृत्व में विपक्षी दलों को एक नई दिशा मिल सकती है। ममता के पास अपने राज्य पश्चिम बंगाल में राजनीतिक स्थिरता का अनुभव है और उनकी छवि एक मजबूत और प्रभावशाली नेता की बन चुकी है। हालांकि, ममता के नेतृत्व को स्वीकार करना कांग्रेस और अन्य दलों के लिए कठिन हो सकता है, क्योंकि इससे उनके राजनीतिक हितों पर असर पड़ सकता है।
अगर, ममता के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन चलता है तो यह राष्ट्रीय राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। इसके परिणामस्वरूप, भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी मोर्चा बन सकता है, जो भाजपा के सत्ता के दावे को चुनौती देने में सक्षम होगा, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब सभी विपक्षी दल एकजुट होकर कार्य करें और कांग्रेस को नेतृत्व परिवर्तन स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाए।
कुल मिलाकर,’इंडिया’ गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन का सवाल भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। ममता बनर्जी का नेतृत्व हासिल करने की ख्वाहिश और राष्ट्रीय जनता दल का समर्थन इस मुद्दे को और जटिल बना देते हैं। कांग्रेस की नेतृत्व क्षमता और उसके भीतर की समस्याएं गठबंधन के भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं। अगर विपक्षी दल इस नेतृत्व विवाद को शांतिपूर्वक हल करने में सफल होते हैं, तो वे भाजपा के खिलाफ एक प्रभावी रणनीति बना सकते हैं। लेकिन अगर यह विवाद बढ़ता है, तो इससे गठबंधन की एकता पर खतरा पैदा हो सकता है। अब यह देखना होगा कि अगले कुछ महीनों में यह गठबंधन कैसे अपनी दिशा तय करता है और नेतृत्व विवाद का समाधान किस रूप में निकलता है।