पुण्यतिथि विशेष
अदम्य साहसिक थे स्वतंत्रता सेनानी युगेश्वर प्रसाद ठाकुर उर्फ भुल्लर ठाकुर,स्वतंत्रता सेनानी भुल्लर बाबू का स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान
अमित कुमार
इतिहास के पन्नों में खो गए प्रसिद्ध क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री भुल्लर बाबू
दुनिया को हम क्या बतलाएँ,कि वो महान विभूति कैसे थे।औरों के दुख में रो देते थे, युगेश्वर बाबू ऐसे थे।
वैशाली के महान विभूति और क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री युगेश्वर प्रसाद ठाकुर उर्फ़ भुल्लर ठाकुर देश के लिए जान की बाज़ी लगा देने वाले, सबकुछ न्योछावर कर तन मन एवं धन से देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाने वाले भुल्लर बाबू का जन्म वैशाली जिले के अंतर्गत पटेढ़ी बेलसर प्रखंड के अधीन मानपुरा गांव में एक किसान परिवार में -जून-1900—को हुआ । गांव के ही विद्यालय में इनकी पढ़ाई हुई। स्वभाव से अपनी ही धुन में खोये रहने के कारण साथियों ने इन्हें भूल्लर कहना शुरू किया । कालान्तर में यही नाम प्रचलित हो गया। 17 वर्ष की अवस्था तक अपने गाँव में ही रहे। अपने संगी साथियों के बीच मितभाषी और मितव्ययी के रूप में जाने जाते थे । 1917 से 1921 तक ये गांधी दर्शन से प्रभावित रहे । उस समय मुजफ्फरपुर का हाजीपुर क्षेत्र बिहार के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र था ।1920 में ग़ांधी जी के हाजीपुर आने के बाद यहा के युवाओं में आजादी के प्रति ललक काफी बढ़ी, बिहार के प्रथम सत्याग्रही पण्डित जयनन्दन झा ने हाजीपुर में गांधी आश्रम की स्थापना की और 7 दिसंबर 1920 में महात्मा गांधी चंपारण जाने के क्रम में यहा आये थे। जिस वजह से इस स्थान का नाम गांधी आश्रम के नाम से प्रचलित हुआ ।यह गांधी आश्रम देश के नरम और गरमदल के क्रांतिकारी आंदोलन का ग़ढ़ था.
गांधी के हर आह्वान में अपने समकालीन संगी साथियों के साथ जुट जाना ,कार्य को अंजाम तक ले जाना ही इनका उद्देश्य होता था। इनके समकालीनों में बैकुंठ शुक्ला, अक्षयवट राय, बसावन सिंह, सुदर्शन सिंह, बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री स्व ललितेश्वर प्रसाद शाही एवम गुलज़ार पटेल के नाम उल्लेखनीय हैं ।
गांधी की अंतरदृष्टि ने इसे समझने में भूल नहीं की । हाजीपुर उन दिनों देश के क्रांतिकारी आंदोलन का गढ़ था ,उस वक्त क्रांतिकारी योगेंद शुक्ल, किशोरी बाबू ,बसावन बाबू,भुल्लर बाबू का नाम प्रमुख था। 1918-1919 ई के आस पास भुल्लर बाबू का मैट्रिक का एग्जाम था जो वो क्रांतिकारी गतिविधियों के वजह से छूट गया जिससे उनका परिवार भी उनसे खफा रहता था और 1926 ई में इनकी गतिविधियों के संदर्भ में इनपर मुकदमा हुआ और इन्हें गिरफ्तार कर पटना बांकीपुर जेल में रखा गया जहाँ से भुल्लर बाबू लगभग 7 दिन बाद ही जेल की दीवार फांद कर फरार हो गए।
लगभग दो सालों के बाद कुछ अंग्रेजी सिपाहियों ने इनके घर पर धावा बोला और लगभग 1929 ई में इन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया। कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही इनके पैरों में रस्सी बाँध कर घसीटते हुए लालगंज के रास्ते पटना जेल ले गए लेकिन सबूत के अभाव में भुल्लर बाबू को रिहा कर दिया गया।इस वाकए की थोड़ी जानकारी भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री ललितेश्वर प्रसाद शाही जी के किताब “बनते बिहार का साक्षी” पेज नंबर 70 पर अंकित हैं।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में इनकी स्थानीय स्तर पर बहुत अहम भूमिका रही। उस समय तुर्की गोरौल स्टेशन की रेल पटरी उखाड़ने, थाना-पोस्ट ऑफिस के दस्तावेज जलाने में अहम भूमिका रही। उसी आरोप मे भुल्लर बाबू को अंग्रेजी पुलिस ने बड़ी ही निर्दयता से घसीटते हुए जेल ले गईं थी। लेकिन भुल्लर बाबू ने हिम्मत ना हारी और डट कर मुकाबला किया । इसी पराक्रम को लेकर भारत सरकार ने इनको 1972 में ताम्रपत्र से भी सम्मानित किया ।
भुल्लर बाबू जैसे वीरों ने भारतीय स्वाधीनता के लिए अपने घर परिवार ,मां बाप और भाई बहन तक की परवाह नहीं की और भारत मां की आजादी के लिए जान की बाजी लगा दी। इन वीरों ने इस संग्राम में न जाने कितने कोड़े और लाठियां खाईं ,जुल्म और यातनाएं सहीं । ये वीर निश्चित रुप से कृतसंकल्पित थे , कि हमें देश के लिए जीना और मर जाना है ,और इन्होंने वे सभी काम किए जो एक देश के लिए समर्पित क्रांतिकारी करते हैं । भुल्लर बाबू में मानवीय तत्व कूट-कूट कर भरा था । शायद ही कभी उनके व्यवहार से किसी के मन में चोट लगी हो। वे अपने पंचायत में दूसरों की भावनाओं का विशेष ध्यान रखते थे । यही कारण था कि इस लम्बे जीवन में उनके दोस्त और प्रशंसक बहुत थे, शत्रु कोई नहीं ।
17 वर्ष के भुल्लर की युवा मानसिकता को गांधी ने खूब प्रभावित किया। गांधी के प्रति उनका समर्पण ,उनकी श्रद्धा ने अंग्रेजों की लाठियाँ झेलने ,जेल की कठोर यातनाएं झेलने के धैर्य और साहस प्रदान किया। गांधी जी के आह्वान पर वे अपने माता पिता ,भाई बहन के प्रेम को एक तरफ रखकर असहयोग आंदोलन से लेकर 1942 की क्रांति तक न जाने कितनी बार जेल गए । जेल उनके लिये अस्थायी निवास हो गया था । 1942 में जब अंग्रेजो भारत छोड़ो का आंदोलन हुआ तो अंग्रेजो की सख्ती ने इन युवाओं के मन में आक्रोश भर दिया और दुगुने उत्साह के साथ वैशाली का यह वीर सपूत एक क्रांतिकारी सेनानी के रूप में जाना जाने लगा । गांधी के आह्वान पर मर मिटने वाले भुल्लर ठाकुर को 1942 में अंग्रेजो का रास्ता रोक देने के कारण उन्हें घोड़ों में बांधकर दौड़ाया गया था । इतनी अमानवीय यातना उनके समकालीन सहकर्मियों को भी नसीब नहीं हुई। इस तरह की पीड़ा झेलना वह भी देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए,उच्चतम मानसिक स्थिति का ही परिचायक है। वेशक,स्व भुल्लर का त्याग अलग किस्म का था । 1971 में जब उन्हें पेंशन दिया जाने लगा तो उसकी अधिकांश राशि गरीब विद्यार्थियों की फीस देने,जरूरत मंद व्यक्ति को दान देने में ही चला जाता था,उन्होंने अथक परिश्रम कर अपने गांव मानपुरा में मध्य विद्यालय की स्थापना करवाने में अहम भूमिका निभाई ताकि उस गांव के लड़के लड़किया मिडिल स्कूल की पढ़ाई अपने गांव में ही करे।कहा जाता है कि इस हेतु पेंशन से जमा की गई राशि स्कूल में दान कर दिया करते थे । समाज को जितना सम्भव हो सका, दिया लेकिन बदले में कुछ लिया नहीं ।
स्वभाव से फकीर भुल्लर ने इस प्रकार देश की सेवा की 15 अगस्त और 26 जनवरी के अवसर पर तिरंगा झंडा के साथ प्रभात फेरी करना।गाँव के सभी बच्चों को लेकर स्वतंत्रता का मतलब समझाना उनकी आदत में शुमार था । मात्र 13 वर्षों तक वे पेंशन का आर्थिक लाभ ले सके । 3 जनवरी 1984 को वैशाली का यह क्रांतिवीर दुनियाँ को अलविदा कह कर चला गया।
भुल्लर बाबू कहते थे क्यों पूछ रहे कब तक चलना श्वासों में गति है जब तक चलना,ठहराव नहीं, तब तक चलना
चलते रहना,चलते रहना।
जनवरी वर्ष 2021 में पुण्यतिथि कार्यक्रम पर वैशाली विधायक श्री सिद्धार्थ पटेल ने भुल्लर बाबू के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए कहा कि मानपुरा मध्य विधालय में भुल्लर बाबू
की प्रतिमा का निर्माण और अनावरण के साथ अपने कोष से विद्यालय में एक भवन का निर्माण मै अपने प्रयास से करूँगा।
दिल्ली के राज घाट के तर्ज पर हर गाँव मे बने नमन स्थल
हम अपनी गौरवशाली विरासत को संजो कर एक स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करते हैं! बिहार राष्ट्रवाद की उर्वर भूमि रही है! जरूरत इस बात की है कि हम अपने अतीत के गौरव को हर गाँव मे स्थापित करें!