प्रधानमंत्री मोदी का हर रत्न कुछ ना कुछ कहता है, उत्तर से लेकर दक्षिण तक वोटरों को साधने की तैयारी
देवानंद सिंह
आगामी महीनों में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, इन चुनावों को लेकर हर तरफ सियासी सरगर्मी देखने को मिल रही है। महागठबंधन कोशिश कर रहा था कि एनडीए को एकजुटता के साथ चुनौती दी जाएगी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चौंकाने वाले फैसलों से महागठबंधन की एकजुटता खिसकती हुई नजर आ रही है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आरजेडी से नाता तोड़ना रहा और अब जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों के नेताओं को देश का सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा की है, उससे महागठबंधन की तैयारी धरी की धरी दिखाई दे रही है। पीएम ने पिछले कुछ दिनों के दौरान कई चौंकाते हुए फैसले लेते हुए उत्तर से लेकर दक्षिण तक वोटरों को साधने की पूरी तैयारी कर ली है।
दरअसल, 9 फरवरी को जब प्रधानमंत्री ने एक के बाद एक तीन भारत-रत्न सम्मानों की घोषणा की तो पूरा देश आश्चर्य में पड़ गया, क्योंकि तीनों नाम ऐसे थे, जिनमें से दो राजनीति से तो थे, लेकिन उनका भाजपा या उसके पहले जनसंघ से कोई लेना-देना नहीं था बल्कि एक तो लगातार मोदी के निशाने पर रहने वाली पार्टी कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव थे, इसी प्रकार कर्पूरी ठाकुर के नाम ने भी चौंकाया और चौधरी चरण सिंह को भी भारत रत्न देने की घोषणा ने पूरे सियासी संग्राम के मायने ही बदल दिए, इसीलिए महागठबंधन में पूरी तरह से हलचल मची हुई है।
नरसिंह राव को भारत-रत्न देकर प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ दे दिया, इसके जरिए उन्होंने न केवल उत्तर-दक्षिण भारत के बीच विभाजनकारी बातों को दबाने की कोशिश की है और कृषि विज्ञानी एम एस स्वामीनाथन भी दक्षिण भारतीय ही हैं, लिहाजा पीएम मोदी ने सोनिया गांधी के लिए खासी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। पीएम मोदी ने पहला निशाना तो यह साधा कि जब बात सम्मान देने की आती है, तो वह दलगत आधार पर विभाजन नहीं करते और देश की अर्थव्यवस्था को खोलने वाले, देश को नए युग में ले जाने वाले नायकों जैसे नरसिंह राव का भी सम्मान करते हैं, भले ही वह कांग्रेस से ही क्यों न हों?
एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देकर दक्षिण भारत को एक और संदेश दिया गया है। दरअसल, उसके साथ ही किसानी का जो बौद्धिक वर्ग है, उसको भी साधा गया है, जिन स्वामीनाथन ने भारत को हरित क्रांति की राह दिखाई, उनको भारत-रत्न का सम्मान देना, देर से उठाया गया एक सही कदम है और इसका अकादमिकों, बौद्धिकों और देश के कृषि-वैज्ञानिकों में गहरा संदेश जाएगा।
वहीं, चौधरी चरण सिंह को भारत-रत्न देकर पीएम मोदी ने ऐसा मास्टरस्ट्रोक दिया है, जिससे सपा भी हतप्रभ है और कांग्रेस भी। स्वागत तो इसका सबको करना ही पड़ेगा।।
चौधरी चरण सिंह किसानी को जमीनी स्तर पर लड़ने वाले नेता थे और जो किसान मिट्टी से जुड़ा, वह चौधरी साहब से जुड़ा। इस तीर से पीएम मोदी ने न केवल जयंत चौधरी को काबू में किया है, बल्कि आगे होनेवाले किसान आंदोलन की लौ भी धीमी कर दी है, जिसके लिए राकेश टिकैत तैयारी कर रहे हैं।
बात अगर लाल कृष्ण आडवाणी की करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें भारत-रत्न देने की घोषणा कर भाजपा के कोर वोटरों को पहले ही खुश कर दिया है, जो उग्र हिंदुत्व की अपेक्षा इस पार्टी से रखते हैं। उनके साथ ही कर्पूरी ठाकुर को भारत-रत्न देकर उन्होंने कमंडल को भी साधने की कोशिश की है। बिहार में नाई अति पिछड़ा वर्ग में आते हैं और नीतीश कुमार,
लालू प्रसाद यादव ने गुरु होते हुए भी कर्पूरी ठाकुर को जुबानी जमाखर्च के वह सम्मान कभी नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। भले ही, उनको भारत-रत्न की घोषणा होते ही राजद और जेडीयू ने पुरानी फाइल खबरें लगा दीं कि उन्होंने तो पहले ही मांग की थी, लेकिन लालू हों या नीतीश, दोनों ही मुख्यमंत्री भी रहे, केंद्र सरकार में ताकतवर मंत्री भी, लेकिन कर्पूरी ठाकुर को भारत-रत्न देकर मोदी ने यह उपलब्धि भी अपने खाते में डाल ली, ऐसे में अब राहुल गांधी जितना भी ओबीसी का हल्ला कर लें, या मोदी की जाति पर ही शंका उठा दें,
लेकिन संदेश जहां तक जाना था, वह जा चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जब सदन में भाजपा को 370 सीटें अपने दम पर आने की बात कहीं, तो शायद वे ये सारा गुणा-गणित बिठा चुके थे, समीकरण कर चुके थे और उनको भाजपा की कमजोरी भी पता है और मजबूती भी।
उनको यह भी पता है कि किस विरोधी को कैसे पटखनी देनी है। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान की घोषणा में इस बात की पूरी झलक देखने को मिली, निश्चित ही इसका असर आगामी लोकसभा चुनावों में देखने को मिलेगा।