राष्ट्र संवाद नजरिया : संवेदनशील मामलों में प्रशासन पर सवाल उठाने से बेहतर है कानून-व्यवस्था बनाने में उसका समर्थन किया जाए….!
देवानंद सिंह
रामनवमी जुलूस के दौरान प्रशासन द्वारा ट्रेलर को जब्त करने के बाद जमशेदपुर शहर में जिस तरह की स्थिति देखने को मिल रही है, वह वाकई निराशाजनक है। हम सब जानते हैं कि धार्मिक जुलूस या ऐसे संबंधित कार्यक्रम बड़े ही संवेदनशील होते हैं।
लिहाजा, ऐसे आयोजनों को लेकर बेहद सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। हमें सारी उम्मीद केवल प्रशासन से ही नहीं करनी चाहिए, बल्कि इसमें सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों की भी उतनी ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। अक्सर, यह देखने को मिलता है कि अगर,इस तरह के कार्यक्रम सफल होते हैं तो सामाजिक , धार्मिक और राजनीतिक संगठन श्रेय लेने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब कोई विवाद जन्म ले लेता है तो प्रशासन को नाकामी का तमगा पहना दिया जाता है। रामनवमी के मद्देनजर केंद्रीय शांति सीमित और प्रशासन के बीच बैठक के बाद भी संवेदनशील स्थिति के लिए नाकामयाबी का तमगा प्रशासन के सिर मढ़ने की कोशिश की जा रही है ? इसे किसी रूप में उचित नहीं माना जा सकता है। क्या समाज में शांति बनाए रखना तथाकथित संगठनों का काम नहीं है ?
यह तथ्य साफ था कि जब केंद्रीय सीमित और प्रशासन के बीच बैठक हुई तो इस बात पर सहमति बनी थी कि ट्रेलर पर जुलूस नहीं निकला जायेगा। उसके बाद भी ट्रेलर पर जुलूस निकाला गया। अगर, ऊपरी आदेश के तहत किसी अधिकारी ने नागालैंड नंबर के उस ट्रेलर को रोका तो क्या गलत किया ? फिर उसे तथाकथित हिंदू संगठनों द्वारा अपने नाक का सवाल बनाने का कोई मतलब नहीं बनता है, जबकि ट्रेलर में जाने वाले जुलूस को बाद में डीसी ने अनुमति दे दी थी। उसके बाद भी इस बात को लेकर तथाकथित हिंदू संगठनों द्वारा विवाद को तूल देना कहां का उचित है कि प्रशासन ने जुलूस को रोककर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।
हैरानी की बात है कि जब डीसी ने जुलूस को अनुमति दे दी थी तो फिर इस प्रकरण पर राजनीति क्यों ? राजनीतिक पार्टियां तो अपनी रोटियां सेंक रहीं हैं, लेकिन बेमतलब प्रशासन को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। जुलूस में बड़ी गाड़ियों के उपयोग और डीजे नहीं बजाने का आदेश सरकार का था, जिसे दृढ़ता पूर्वक पालन करवाना मात्र इन अधिकारियों की जिम्मेदारी थी। डीसी और एसएसपी की टीमें उसी का अनुपालन सुनिश्चित करवा रहीं थीं I
ऐसे में, इन्हें दोषी ठहराना कहां का न्याय है? दोषी तो सरकार, मंत्री और विधायक हैं, जो इस तरह का अविवेक पूर्ण निर्णय लेते हैं और अधिकारियों और जनता पर थोप देते हैं। निश्चित रूप से, प्रशासनिक पदाधिकारियों को इस गतिरोध के लिए जिम्मेदार ठहराना निहायत ही गलत और अनुचित है। इसका नैतिक विरोध होना चाहिए। राजनीतिक और धार्मिक संगठनों को भी समझना चाहिए कि बैठक में जो चीज तय हुई थी, उसका पालन होना चाहिए था।
जब प्रशासन उसका पालन करा रहा है तो फिर उसका विरोध नहीं होना चाहिए था, क्योंकि इस स्थिति से ना केवल जनता को परेशानी हो रही है, बल्कि जमशेदपुर की बदनामी हो रही है। लिहाजा, ऐसे मामलों में प्रशासन पर सवाल उठाने से बेहतर था, उसका समर्थन किया जाना, इससे ना केवल जनता को असुविधा नहीं होती बल्कि शहर की बदनामी भी नहीं होती।