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    Home » सूर्यधाम में संगीतमय श्रीराम कथा के पांचवें दिन पंडित गौरांगी गौरी के सीता-राम विवाह प्रसंग से भावविभोर हुए श्रद्धालु, धूमधाम से जनकपुर पहुंची बारात, लोगों ने बरसाये फूल, लगाए जयसियाराम के जयकारे
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    सूर्यधाम में संगीतमय श्रीराम कथा के पांचवें दिन पंडित गौरांगी गौरी के सीता-राम विवाह प्रसंग से भावविभोर हुए श्रद्धालु, धूमधाम से जनकपुर पहुंची बारात, लोगों ने बरसाये फूल, लगाए जयसियाराम के जयकारे

    News DeskBy News DeskFebruary 26, 2023No Comments5 Mins Read
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    सूर्यधाम में संगीतमय श्रीराम कथा के पांचवें दिन पंडित गौरांगी गौरी के सीता-राम विवाह प्रसंग से भावविभोर हुए श्रद्धालु, धूमधाम से जनकपुर पहुंची बारात, लोगों ने बरसाये फूल, लगाए जयसियाराम के जयकारे

    ■ सोहति सीय राम कै जोरी, छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी।

    जमशेदपुर। सिदगोड़ा सूर्य मंदिर कमिटी द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के तृतीय वर्षगांठ के अवसर पर सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक सह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, संरक्षक चंद्रगुप्त सिंह, भाजपा झारखंड प्रदेश के मंत्री सुबोध सिंह गड़डू, आलोक कुमार, अजय कुमार एवं अन्य ने व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया गया। पूजन पश्चात श्री अयोध्याधाम से पधारे मर्मज्ञ कथा वाचिका पूज्य पंडित गौरांगी गौरी जी का स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास पंडित गौरांगी गौरी ने पंडाल में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के समक्ष श्रीराम कथा के पंचम दिन सीता-राम विवाह का प्रसंग सुनाया।

    श्रीराम कथा के पांचवें दिन पूज्य पंडित गौरांगी गौरी जी ने भगवान श्रीराम द्वारा धनुष भंग, परशुराम, लक्ष्मण संवाद एवं श्री राम विवाह की रोचक प्रसंगों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। दसरथ राजकुमार नजर तोहे लग जायेगी भजन पर श्रद्धालु जमकर झूमे। उन्होंने कहा कि कथा सुनने से जीवन की हर व्यथा मिट जाती है। राम विवाह एक आदर्श विवाह है। तुलसीदास ने राजा दशरथ, राजा जनक, राम व सीता की तुलना करते हुए बताया है कि ऐसा समधी, ऐसा नगर, ऐसा दुल्हा, ऐसी दुल्हन की तीनों लोक में कोई बराबरी नहीं हो सकती।

    पूज्य पंडित गौरांगी गौरी जी ने कहा कि विश्वामित्र ने जब पूरे उत्तर भारत को दुष्टजनों से श्रीराम द्वारा मुक्त करा लिया एवं सभी ऋषि वैज्ञानिकों के यज्ञ सुचारू रूप से होने लगे तो विश्वामित्र श्रीराम को जनकपुरी की ओर ले गये जहां पर सीता स्वयंवर चल रहा कथा बताते हुए कहा कि राजा जनक ने अपनी बेटी के स्वयंवर के लिए एक प्रतिज्ञा रखी कि जो शिव पिनाक को खंडन करेगा वो सीता से नाता जोड़ेगा। उस धनुष को तोड़ने के लिए कई राजा व राजकुमार पहुंचे लेकिन सभी विफल रहें। ऐसे में राजा जनक ने भरी सभा में कहा कि आज धरती वीरों से विहिन हो गयी है, सभी अपने घर जाएं। इसके बाद लक्ष्मण को क्रोध आया और उन्होंने कहा कि अगर श्रीराम की आज्ञा हो तो धनुष क्या, पूरे ब्रह्मांड को गेंद की तरह उठा लूं। पूज्य व्यास जी ने कहा कि धनुष अहंकार का प्रतीक है व राम ज्ञान का प्रतीक। जब अहंकारी व्यक्ति को ज्ञान का स्पर्श होता है तब अहंकार का नाश हो जाता है।

     

    श्रीराम में वो अहंकार नहीं था और श्रीराम ने विश्वामित्र की आज्ञा पाकर धनुष को तोड़ दिया, जिसका अर्थ पूरे विश्व में दुष्टों को सावधान करना था कि अब कोई चाहे कितना भी शक्तिशाली राक्षस वृत्ति का व्यक्ति हो वह जीवित नही बचेगा।

    धनुष टूटने का पता चलने पर परशुराम का स्वयंवर सभा में आना एवं श्रीराम-लक्ष्मण से तर्क-वितर्क करके संतुष्ट होना कि श्रीराम पूरे विश्व का कल्याण करने में सक्षम है। समाज की जो जिम्मेदारी परशुराम ने ले रखी थी जिससे कि दुष्ट राजाओं को भय था। परशुराम ने वह सामाजिक जिम्मेदारी श्रीराम को सौंप दी एवं स्वयं अपने आराध्य के भक्ति में लीन हो गये। कथा व्यास पंडित गौरांगी गौरी ने आगे कहा कि भगवान कण-कण में विराजमान है।

     

    अगर हम समाज में दीन-दुखियों वनवासियों आदिवासियों के कष्ट दूर करते हए उस संगठित शक्ति के द्वारा ही सामाज में व्याप्त बुराईयों को दूर किये इसी कारण से श्री राम भगवान कहलाये। उसी प्रकार आज भी समाज में व्याप्त बुराईयों को अच्छे लोग संगठित होकर ही दूर कर सकतें है। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए पंडित गौरांगी गौरी ने कहा कि राजा जनक ने राजा दशरथ को बारात लाने का न्यौता भेजा एवं राजा दशरथ नाचते गाते बारातियों सहित जनकपुरी पहुंचे। बारात में शामिल उपस्थित श्रोता जनसमूह खूब भावपूर्ण नाचे गाये। कथा में सीता-राम स्वंयवर का मनोरम झांकी के माध्यम से वर्णन किया गया।

    आगे राम कथा में मां सीता की बिदाई हुई। उन्होंने कहा कि जनकपुर से जब सीताजी की बिदाई हुई तब उनके माता-पिता ने उन्हें ससुराल में कैसे रहना है इसकी सीख दी। प्रत्येक माता-पिता को अपनी पुत्री के विवाह के समय ऐसी ही सीख देनी चाहिए। कन्या को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिये जिससे ससुराल व मायका दोनों कुल कलंकित हो। माता सीता ने पूरे जीवन अपने माता-पिता की सीख का पालन किया।

    कथा के दौरान अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह, भाजपा नेता अभय सिंह, मनोज कुमार सिंह, राकेश चौधरी, समाजसेवी अनिल ठाकुर, विपिन झा, अरुण बांकरेवाल, विजय तिवारी, मनोज देबुका, डॉ संजय गिरी, अजय कुमार, दीपक झा, हिन्दू जागरण मंच के महासचिव पप्पू उपाध्याय, एसआरके कमलेश, अनमोल वर्मा, रविंदर सिंह, जोगिंदर सिंह जोगी, सोनू ठाकुर, डॉ राजीव ठाकुर, बिनोद देबुका, पप्पू सिंह, संजीव सिंह, अमरजीत सिंह राजा, संतोष यादव, शशिकांत सिंह, महामंत्री अखिलेश चौधरी, रूबी झा, कृष्ण मोहन सिंह, बंटी अग्रवाल, कंचन दत्ता, अधेन्दू बनर्जी, लक्ष्मीकांत सिंह, प्रेम झा,

     

    प्रमोद मिश्रा एवं तृतीय वर्षगांठ आयोजन समिति के संयोजक गुंजन यादव, दिनेश कुमार, राकेश सिंह, कमलेश सिंह, कुलवंत सिंह बंटी, टुनटुन सिंह, महेंद्र यादव, सुशांतो पांडा, पवन अग्रवाल, कल्याणी शरण, खेमलाल चौधरी, धर्मेंद्र प्रसाद, सुरेश शर्मा, संतोष ठाकुर, संदीप शर्मा बौबी, प्रोबिर चटर्जी राणा,

     

    अभिमन्यु सिंह चौहान, कुमार अभिषेक, महावीर सिंह, संतोष कुमार, निकेत सिंह, राम मिश्रा, रंजीत सिंह, मुकेश चौधरी, नरेंद्र सिंह, मुकेश शर्मा, पप्पू कुमार, आशीष मिश्रा, मीणा सिन्हा, मधुमाला, धनेश्वर सिंह, गौतम प्रसाद, उमेश गिरी, अनूप वर्मा, पंकज शर्मा समेत अन्य अन्य उपस्थित थे।

     

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