बोते रहे गुलाब हम सपनों में उम्र -भर ~ दिनेश्वर प्रसाद सिंह, “दिनेश”
डॉ कल्याणी कबीर
“काँटों की बदतमीजी मालूम थी लेकिन ,
बोते रहे गुलाब हम सपनों में उम्र — भर !”
एक कवि जब ये पंक्तियाँ कहता है तो उसकी सहृदयता स्पष्ट परिलक्षित होती है । दिनेश्वर प्रसाद सिंह, दिनेश नि:संदेह एक ऐसे रचनाकार हैं जिनकी रचनाधर्मिता अनुकरणीय है । इन्होने हमेशा लेखन को एक जिम्मेदारी की तरह माना है । समसामयिक मुद्दे हों या सामाजिक मुद्दे इन्होंने बेबाक अपनी राय रखी और ऐसे विचार व्यक्त किए जो हम सबों के समक्ष अंधेरे के लिए रौशनी सा प्रतीत हुआ है । दिनांक 21 अप्रैल को इन्हें अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की जमशेदपुर ईकाई के द्वारा साहित्य गौरव सम्मान 2019 दिया गया । बेशक दिनेश्वर जी ने झारखंड की साहित्यिक भूमि को उर्वर भी किया है और समृद्ध भी । पत्रकारिता की दुनिया और साहित्य की दुनिया – इन्होनें दोनों ही दुनिया के पन्ने पर अपने कार्यों से अमिट हस्ताक्षर किया है । पचास वर्षों से ऊंगलियों में कलम दबाए इन्होंने निष्काम भाव से साहित्य और समाज की सेवा की है । कई सारे पुरस्कार से सम्मानित होने पर भी इनकी विनम्रता काबिलेतारीफ है । बड़े लेखक या साहित्यकार होने का दंभ इन्हें छू तक नही गया है । जमशेदपुर के श्री कृष्ण सिन्हा संस्थान, बेनीपुरी साहित्य परिषद्, झारखंड हिंदी साहित्य संस्कृति मंच, कविवर निर्मल मिलिंद स्मृति सम्मान इत्यादि कितने ही पुरस्कार इनके व्यक्तित्व का श्रृंगार बन चुके हैं । रामधारी सिंह दिनकर से प्रेरणा ग्रहण करने वाले दिनेश्वर जी ने पुलवामा कांड के बाद अपने गुस्से को शब्द देते हुए लिख डाला कि —
“हमें तो अब पूरा पाकिस्तान चाहिए .. ”
इनकी रचनाओं में देशभक्ति की बानगी देखते ही बनती है ।
ये लिखते हैं —-
“मुक्त करो ममता से तो
नंगी तलवार पिजा लूं मैं
हुंकार जरा भर दे माँ तू
गोले बंदूक सजा लूं मैं !”
दिनेश्वर जी ने स्थानीय भाषा के साहित्यिक वांङमय को भी भोजपुरी रचनाओं के माध्यम से समृद्ध किया है । रांची के प्रभात खबर के प्रभारी संपादक और जमशेदपुर प्रभात खबर के संपादक रह चुके दिनेश्वर जी का मानना है कि साहित्यकार और पत्रकार दोनो ही समाज के बौद्धिक संपदा का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए इन्हें राष्ट्र की उन्नति और समृद्धि के लिए मिलकर काम करना होगा । राजनीति की सर्वव्यापकता को महसूस करते हुए वह इसे कोई ऐसी जगह नही मानते जिसका बहिष्कार किया जाए । कदाचित् इसलिए हरिवंश जी के राजनीति में प्रवेश को इन्होंने सुखद संकेत माना । इन्होंने अपनी पहली रचना तब लिखी जब ये आठवीं कक्षा में थे । बचपन से ही कागज कलम की दोस्ती परवान चढ़ी और आज झारखंड के साहित्यिक वातावरण की चर्चा दिनेश्वर प्रसाद सिंह, दिनेश की चर्चा किए बगैर पूरी हो ही नही सकती ।
देश और समाज के प्रति अपनी सजगता और जिम्मेदारी को महसूस करते हुए कवि दिनेश लिखते हैं कि —
“कलम को कैद कर
जब भी कोई शासक
चैन की नींद सोता है ,
वह अपने ही हाथों
अपने देश में
क्रांतिबीज बोता है !!”