इश्क के नाम में कुछ नहीं रखा
डॉ कल्याणी कबीर
खिड़कियों ने कहा दीवारों से,
खाली मकान में कुछ नहीं रक्खा !
चलो कि धूप में तपकर निखरें ,
सुरमई शाम में कुछ नहीं रक्खा !
करें जख्मी अब अपने तलवों को ,
घर के आराम में कुछ नहीं रक्खा !
एक दूजे पे लगा रहे तोहमत,
ऐसे हमाम में कुछ नहीं रक्खा !
जहाँ पहुँचे ये मन तन्हा – तन्हा ,
वैसे मकाम में कुछ नहीं रक्खा !
हज़ारों काम हैं इस दुनिया में ,
इश्क के नाम में कुछ नहीं रखा !!