भारत सरकार ने एक्ट 2016 के अनुसार 4% दिव्यांगों का आरक्षण दिया गया है. जबकि आप कोई भी विभाग में (सरकारी या निजी क्षेत्र) सही 4% दिव्यांगों की जनसंख्या रोजगार में नहीं है. मेरा दावा है, कि आप कोई विभाग में सर्वे करा कर इसकी जांच कर सकते है, कि मैं सही बोल रहा हूं या गलत. सरकार नीतियां बनाकर यह भूल जाती है, कि वह इसे किस प्रकार समाज के अंतिम वर्ग के लोगों को लाभ के लिए प्रयासरत रहे. दिव्यांगों का पद को खाली रखा जाता है या फिर अन्य तरीके से पद को भर दिया जाता है और इसका लाभ दिव्यांगों को नहीं मिल पाता है. उच्च पदों पर तो कभी आरक्षण का लाभ दिव्यांगों को मिल ही नहीं सकता है. क्योंकि 25 पद होने पर एक दिव्यांग व्यक्ति जो ब्लाइंड है उसको आरक्षण मिलेगा.
50 पद होने पर गूंगे, बहरे दिव्यांग को एक पद मिलेगा.
75 पद होने पर एक ऑर्थोपेडिक दिव्यांग को एक पद मिलेगा.
100 पद होने पर एक अन्य तरह के दिव्यांग होने पर एक पद मिलेगा.
इस स्थिति में ना तो इतने पद मिलेंगे और नहीं दिव्यांगों की नौकरी मिलेगी. सभी उच्च पदों पर 5, 10, 20, 25 ज्यादा से ज्यादा पद के लिए रिक्तियां निकलती है. जिसमें दिव्यांग व्यक्ति मिलते ही नहीं है अगर मिले भी तो वह आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते हैं यह कैसी सरकार की नीति है समाज के लोगों को इसको समझना होगा
दिव्यांग ना तो धारण कर सकते हैं, ना आंदोलन कर सकते हैं, वह केवल अपनी व्यथा और अपनी जिंदगी को कोसते हुए स्वर्ग सिधार जाते हैं. सरकार केवल अपनी कुर्सी बचाने में लगी हुई है और उसे सत्ता तक जाने में कौन सी आरक्षण नीति सहायक है वह देखते हैं उसे जनता की भलाई से कोई लेना देना नहीं है अब समाज के लोगों को जागरूक होना होगा जो समाज के उच्च पद पर काबिज है, वह प्रयास करें, कि समाज के दिव्यांग व्यक्ति को किस प्रकार नियम के दायरे में रहकर दिव्यांग व्यक्तियों को सहायता करके आगे बढ़ाएं. ताकि सभी जाति, धर्म के दिव्यांग व्यक्तियों का सामाजिक राजनीतिक लाभ मिल सके