दिल्ली एमसीडी के चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल का जादू चला है। चुनाव में झाड़ू ऐसे चली कि कांग्रेस दहाई से नीचे सिमटते दिख रही है तो बीजेपी 15 साल बाद एमसीडी की सत्ता से बाहर होने जा रही है।
एमसीडी चुनाव में भी चला अरविंद केजरीवाल का जादू
नई दिल्ली : दिल्ली एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इतिहास रच दिया है। दूसरी बार एमसीडी के महाभारत में उतरी AAP ने बीजेपी की पिछले 15 सालों से चली आ रही सत्ता को उखाड़ फेंका है। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 250 वार्डों वाली एमसीडी में आम आदमी पार्टी कुल 131 सीटों पर या तो आगे है या फिर जीत चुकी है। वह 110 सीटें जीत चुकी है और 21 पर आगे है। बीजेपी बमुश्किल 100 सीटों का आंकड़ा पार कर पाई है। वह 89 सीटें जीत चुकी है और 17 पर आगे चल रही है। यानी रूझान और नतीजों को मिलाकर 106 सीटों पर आगे। कांग्रेस दहाई के आंकड़े को भी छूती नहीं दिख रही। उसने 6 सीटें जीती हैं और 2 पर आगे चल रही है। एमसीडी चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए तगड़ा झटका है। विधानसभा चुनाव की तरह एमसीडी में भी दिल्ली वालों पर अरविंद केजरीवाल का जादू चला है। आइए जानते हैं आखिर दिल्ली के दुलारे बेटे क्यों हैं अरविंद केजरीवाल।
तेरा जादू चल गया…एमसीडी में भी चल गई झाड़ू
एमसीडी में पिछले 15 सालों से बीजेपी सत्ता में थी लेकिन केजरीवाल ने आखिरकार उसके इस मजबूत किले को ध्वस्त कर दिया। आम आदमी पार्टी ने 2017 में पहली बार एमसीडी का चुनाव लड़ा था और पहले ही चुनाव में वह कांग्रेस को पीछे छोड़ बीजेपी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरी थी। इस बार तो एमसीडी चुनाव में झाड़ू ऐसे चली है कि बीजेपी चारों खाने चित हो गई है। बीजेपी ने चुनाव में पूरा जोर लगा रखा था। राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा केंद्रीय मंत्रियों और राष्ट्रीय नेताओं की पूरी फौज उतार रखी थी। बीजेपी के दिग्गज नेता चुनाव प्रचार में कारपेट बॉम्बिंग कर रहे थे। धुआंधार रैलियां, रोडशो, नुक्कड़ सभाएं कर रहे थे लेकिन आम आदमी पार्टी के आगे उसकी एक न चली।
दिल्ली वालों को भा गया केजरीवाल का ‘डबल इंजन’
बीजेपी अक्सर चुनावों में डबल इंजन की बात करती आई है लेकिन दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भी पहली बार ‘डबल इंजन’ का कार्ड खेला। नतीजे बताते हैं कि दिल्लीवालों ने उनके ‘डबल इंजन’ पर भरोसा किया। AAP ने केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद’ का नारा दिया था जो सुपर हिट साबित हुआ है। केजरीवाल चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार कह रहे थे कि एमसीडी में भी AAP की सरकार रही तो दिल्ली वालों के लिए डबल फायदे की बात होगी। वह जोर देकर कह रहे थे कि बीजेपी जिन सीटों पर जीतेगी वहां विकास के रास्ते में रोड़े डालेगी इसलिए ‘एमसीडी में भी केजरीवाल’ के लिए वोट दें। उनकी यह अपील दिल्ली की जनता को शायद भा गई और उन्होंने अपने पसंदीदा नेता की झोली सीटों से भर दी। पार्टी का वोटशेयर भी पिछली बार के 26 प्रतिशत के मुकाबले बढ़कर 40 के पार पहुंच गया।
साफ-सफाई का वादा काम कर गया
आम आदमी पार्टी ने एमसीडी चुनाव में कूड़े को बड़ा मुद्दा बनाते हुए बीजेपी की आक्रामक घेरेबंदी की थी। पार्टी ने दिल्ली वालों से वादा किया था कि अगर वह एमसीडी की सत्ता में आई तो गाजीपुर और दूसरे लैंडफिल साइट्स पर बने कूड़े के पहाड़ों को खत्म करेगी और सड़कों पर जगह-जगह लगे कूड़े के अंबार को साफ करेगी। केजरीवाल ने साफ-सफाई और कूड़े की समस्या को लेकर दिल्ली वालों में गहरे असंतोष को पहले ही भांप लिया था और इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया जो कामयाब होता दिख रहा है। एनबीटी ऑनलाइन ने जब चुनाव प्रचार के दौरान दिल्लीवालों के मूड को भांपने की कोशिश की तो हर जगह लोग कूड़े की समस्या से असंतुष्ट दिखे। यहां तक कि तमाम बीजेपी समर्थक भी कूड़े को बड़ी समस्या मान रहे थे।
मुफ्त बिजली-पानी का एमसीडी चुनाव में भी असर
वैसे तो ये नगर निगम के चुनाव थे लेकिन वोटरों पर अरविंद केजरीवाल के मुफ्त-बिजली पानी जैसी लोकलुभावन स्कीमों का साफ असर दिखा। रुझानों से साफ होता दिख रहा है कि दिल्ली ने एमसीडी की ‘छोटी सरकार’ के लिए भी आम आदमी पार्टी को पसंद किया है। दिल्ली में पिछले कई चुनावों से लोकसभा, विधानसभा और एमसीडी में जनता का वोटिंग पैटर्न अलग-अलग रहा था। इनमें से किसी एक चुनाव के नतीजों के आधार पर आप दूसरे किसी चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी नहीं कर सकते थे। मसलन 2019 में बीजेपी ने दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों पर कब्जा किया लेकिन सालभर के भीतर ही हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार दिल्ली की जनता विधानसभा की तरह ही एमसीडी चुनाव में भी आम आदमी पार्टी पर भरोसा किया।
इस बार तीनों एमसीडी का हुआ है एकीकरण
एमसीडी के 250 वॉर्डों के लिए 4 दिसंबर को वोट डाले गए थे। पिछली बार दिल्ली में तीन नगर निगम थे जिनमें कुल मिलाकर 272 वॉर्ड थे। इस बार तीनों निगमों का एकीकरण किया जा चुका है और वॉर्ड की संख्या 272 से घटकर 250 रह गई है। एकीकरण की वजह से ही चुनाव करीब 6 महीने की देरी से हुए।