राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के पुत्र केदारनाथ सिंह जी के देहांत की दुखद खबर मिली। गत अप्रैल में उनसे उनके पटना आवास पर मिलना हुआ था। दिनकर जी के ऊपर अपनी प्रकाश्य पुस्तक के लिए मुझे फोटो की जरूरत थी। केदार बाबू और उनकी पत्नी बड़े प्यार से मिले। उन्होंने अपनी दो काव्य पुस्तकें भी भेंट कईं- “आंका सूरज, बांका सूरज” और “सिमरिया स्तवन”। पहली पुस्तक मुझे १९८७ में प्रयाग शुक्ल ने नवभारत टाइम्स की तरफ से मुझे समीक्षा लिखने के लिए दी थी।
उन्होंने कहा, दिनकर जी के बेटे की पुस्तक है। आप समीक्षा लिख दीजिए। तब मैं पहली बार केदार बाबू के नाम से परिचित हुआ था। दिनकर जी का दुर्भाग्य रहा कि उनके अपने बेटों के साथ सम्बंध अच्छे नहीं रहे। बड़े बेटे रामसेवक सिंह का तो उनके सामने निधन हो गया। लेकिन छोटे बेटे केदारनाथ सिंह के साथ भी तनाव ही बना रहा। उस पर लिखने का यह उचित समय नहीं है। लेकिन एक विशेष कारणवश लिख रहा हूं। केदार बाबू के पिता के साथ व्यवहार की चर्चा विस्तार से दिनकर जी के बड़े भाई बसंत सिंह के दामाद शिवसागर मिश्र ने अपनी पुस्तक “दिनकर: एक सहज पुरुष” में की है कि किस तरह फोन की घंटी बजने पर दिनकर जी दौड़ते थे कि शायद बेटे का फोन होगा लेकिन बेटे का फोन कभी नहीं आया।
मैंने केदार बाबू से पूछा कि शिवसागर मिश्र ने जो बातें लिखी हैं, वे कितनी सही हैं। मैंने सोचा कि वे कहेंगे कि उसमें लिखी गई बातें सच नहीं हैं। किंतु मैं उनका जवाब सुनकर हैरान रह गया। उन्होंने कहा, लगभग सभी बातें सही हैं। उन्होंने अपना कोई बचाव नहीं किया, कोई सफाई नहीं दी। मैं उनकी ईमानदारी एवं विनम्रता से बहुत प्रभावित हुआ।
ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दें।
भावभीनी श्रद्धांजलि।
सुधांशु रंजन, पत्रकार, दूरदर्शन