देश में कोयले का संकट गहराया, त्यौहारी सीजन में झेलनी पड़ सकती है बिजली की किल्लत नई दिल्ली। देश में कोयला संकट बढ़ने से त्यौहारी सीजन में बिजली संकट झेलना पड़ सकता है। इसकी वजह से बिजली की कीमतों में इजाफा भी हो सकता है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के मुताबिक, गत 3 अक्टूबर को कोयले से बिजली बनाने वाले 64 प्लांट्स में चार दिन से भी कम का कोयला स्टॉक बचा था। यानि वे बिना सप्लाई मिले चार दिन तक ही बिजली बना सकते थे। ये स्थिति अभी से नहीं है, बल्कि हालात पिछले महीने से ही गड़बड़ बताए जा रहे हैं। इस संकट पर ऊर्जा मंत्री राजकुमार सिंह ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा कि मैं नहीं जानता कि आने वाले पांच से छह माह में भी हम ऊर्जा के मामले में आरामदायक स्थिति में होंगे। उन्होंने कहा कि 40 से 50 गीगावॉट की क्षमता वाले कोयला प्लांट्स में तीन दिन से भी कम का ईंधन बचा है। सरकारी मंत्रालय कोल इंडिया और एनटीपीसी लिमिटेड जैसी सरकारी कोयला कंपनियों से कोयले के खनन को बढ़ाने के लिए काम कर रही है ताकि मांग के मुताबिक बिजली बन सके। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट्स में से आधे से ज्यादा में सितंबर के आखिरी दिनों में औसतन चार दिन का कोयला ही बचा था। 16 में तो कोयला बचा ही नहीं था कि बिजली बनाई जा सके। इसके उलट अगस्त की शुरुआत में इन प्लांट्स के पास औसतन 17 दिनों का कोयला भंडार था। कोयले की इतनी कमी बरसों में नहीं देखी गई। दरअसल, देश की 70 फीसदी बिजली, कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स से ही बनती है। कोरोना प्रतिबंधों के हटने के बाद से आर्थिक गतिविधियां फिर से तेज हो गई हैं, जिससे बिजली की मांग बढ़ी है। इसके उलट देश के कोयला उत्पादन में कमी आई है। भारत अपनी जरूरत का 75 फीसदी कोयला खुद ही निकालता है, लेकिन भारी बारिश और कोयले की खानों में पानी भरने की वजह से उनमें खनन कार्य नहीं हो पा रहा है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी कोयला संकट के चलते बिजली संकट बढ़ सकता है। बिजली विभाग के अधिकारियों के मुताबिक अगर, कोयला संकट जल्द नहीं दूर होता तो शहरी इलाकों में भी बिजली की कटौती करनी पड़ सकती है।
देश में कोयले का संकट गहराया, त्यौहारी सीजन में झेलनी पड़ सकती है बिजली की किल्लत
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