फिर निकला मेनहर्ट का जिन्न , सरयू राय ने फिर साधा मुख्यमंत्री रघुवर दास पर निशाना
जनता की नजरों में रघुवर दास दागदार है और जनता की अदालत इसका फैसला करे:सरयू राय
निर्दलीय प्रत्याशी सरयू राय ने अपने आवास पर संवाददाता सम्मेलन कर मुख्यमंत्री पर सीधा सीधा किया हमला उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास कहते है कि उनपर कोई दाग नहीं है, तो वे बतायें कि कि पांच अभियंता प्रमुखों की कमिटी और उसके बाद निगरानी की तकनीकी समिति द्वारा मेनहार्ट परामर्शी की नियुक्ति में तत्कालीन वित्त मंत्री एवं नगर विकास मंत्री श्री रघुवर दास को दोषी ठहराना और अभी तक कार्रवाई नहीं किया जाना दाग है या नहीं? तथा किसी भी मंत्री और सीएम पर इससे गहरा दाग और क्या हो सकता है?
कहावत है कि लम्हों ने खता की – सदियों ने सजा पाई। यह कहावत इस मामले में भी सही ठहरती है श्री रघुवर दास ने नगर विकास मंत्री रहते हुए मेनहार्ट को परामर्शी नियुक्त कर जो खता जो 2005 में की, उसकी सजा राजधानी-राँची की करीब 20 लाख जनता भुगत रही है।
मामला संक्षेप में निम्नवत है:-
1. वर्ष 2003 में तत्कालीन नगर विकास मंत्री श्री बच्चा सिंह ने राँची का सिवरेज ड्रेनेज स्कीम तैयार करने के लिए ओआरजी मार्ग को करीब 3 करोड़ में परामर्शी नियुक्त किया था। इसके पीपीआर (प्रारंभिक प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार कर सरकार को दिया था ताकि कोई संशोधन सरकार की तरफ से आये तो उसे शामिल कर डीपीआर जमा किया जाये।
2. वर्ष 2005 में श्री रघुवर दास नगर विकास मंत्री एवं वित्त मंत्री बने तो उन्होंने ओआरजी मार्ग को बिना नोटिस दिये उनके साथ हुआ एकरारनामा रद्द कर दिया। राँची हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त आर्बिटेªटर ने सूद सहित पैसा ओआरजी मार्ग को देने का निर्देश दिया।
3. श्री रघुवर दास ने नया परामर्शी बहाल करने के लिए ग्लोबल टेंडर निकाला। निविदा मूल्यांकन समिति ने बताया कि सभी निविदाकर्ता अयोग्य है।
4. श्री रघुवर दास ने अपने कार्यकाल में निविदा मूल्यांकन समिति की मीटिंग बुलाई और कहा कि निविदा को रद्द करने के बदले कतिपय शर्तों को बदल कर मूल्यांकन किया जाए।
5. निविदा शर्त में शामिल था कि निविदादाता पिछले तीन सााल का टर्नओवर जमा करेंगे, जिसका वार्षिक औसत 40 करोड़ रूपये होना चाहिए। मेनहार्ट ने केवल दो वर्षों की ही टर्नओवर दिया फिर भी उसे करीब 24 करोड़ रूपये में परामर्शी बहाल कर लिया गया। यह निर्णय तत्कालीन मंत्री स्तर पर हुआ।
6. विपक्ष ने यह मामला विधानसभा में उठाया। मेरे सभापतित्व में 3 सदस्यों की समिति बनी। समिति में मेनहार्ट को अयोग्य करार दिया और इसे नियुक्त करने के लिए दोषियों पर कार्रवाई करने की अनुशंसा की। श्री रघुवर दास ने विधानसभा अध्यक्ष को दो बार पत्र लिखकर कोशिश की समिति की जांच पूरी नहीं हो।
7. यह मामला राँची उच्च न्यायालय में गया। उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया कि प्रार्थी निगरानी आयुक्त के यहां जाए। यदि गड़बड़ी हुई है तो नियमानुसार कार्रवाई करें।
8. प्रार्थी ने निगरानी आयुक्त के यहां आरोप पत्र प्रस्तुत किया। निगरानी के तकनीकी कोषांग ने इसकी जांच की और पाया कि मेनहार्ट की नियुक्ति गलत है। इसमें निविदा प्रकाशन से निविदा निष्पादन तक में त्रुटि हुई है।
9. इसके साथ ही राज्य के पांच अभियंता प्रमुखों की एक समिति ने सरकार के आदेश पर इसकी जांच की। पांचों ने रिपोर्ट दी कि मेनहार्ट अयोग्य था और परामर्शी नियुक्त करने में भूल हुई है।
10. इस बीच तत्कालीन निगरानी महानिरीक्षक ने सरकार को कहा कि उन्हें जांच पर कार्रवाई करने का, निर्देश दिया जाए। उन्होंने पांच पत्र लिखे, पर कोई कार्रवाई नहीं हुआ। उस अवधि में श्रीमती राजबाला बर्मा एवं श्री जे बी तुबिद झारखंड के निगरानी आयुक्त थे। अब यह मामला पुनः उच्च न्यायालय गया। उच्च न्यायालय ने प्रार्थी को ए.सी.बी. से जांच कराने के लिए निगरानी आयुक्त के पास जाने को कहा। परन्तु अबतक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
11. 3 करोड़ की जगह 24 करोड़ रूपये के खर्च पर मेनहार्ट को परामर्शी नियुक्त करने, विधानसभा समिति, 5 अभियंता प्रमुखों और निगरानी के तकनीकी कोषांग द्वारा जांच में परामर्शी की नियुक्ति अवैध सिद्ध होने के जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीें होने के बाद भी यदि मुख्यमंत्री यह कहते है कि वे बेदाग है तो दाग की उनकी अपनी परिभाषा हो सकती है।