हार का पीए जिम्मेदार!
देवानंद सिंह
रघुवर दास को विधानसभा चुनाव में जिस तरह से करारी हार का सामना करना पड़ा, शायद ही उन्होंने इसका अनुमान उन्होंने पहले लगाया होगा। वह अपनी और अपनी पार्टी की जीत को लेकर जिस तरह आश्वस्त थे, कहानी उससे उल्टी पड़ गई। हम तो डूबे सनम, तुमको भी ले डूबे वाली कहावत इस झारखंड विधानसभा चुनाव परिणामों से पूरी तरह चरितार्थ हुई है। अब रघुवर दास द्बारा इन तथ्यों को खोजा जा रहा है कि आखिरकार वह कौन से कारण रहे, जिनकी वजह से पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा सीट से उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। समीक्षक और राज्य की हालतों पर कड़ी नजर रखने वाले लोग तो इस बात को पहले ही जानते थे, लेकिन मुख्यमंत्री रहते रघुवर दास जिस तरह इन कारणों से अंजान रहे, वे कारण कितने घातक साबित हुए, यह सबके सामने है। मजे की बात यह रही कि न तो स्वयं रघुवर दास ने चुनाव से पहले जमीनी सच्चाई जानने की कोशिश की और न ही चंद सिपहसलारों
(रामबाबू तिवारी, , संजीव सिंह, सूमो, बंटी के अलावे कई नाम हैं)
ने भी नहीं बताया जिसकी वजह से राज्य विधानसभा चुनावों में रघुवर दास को फजीहत का सामना करना पड़ा। उनको जमीनी सच्चाई से दूर रखने वालों में अगर सबसे पहले किसी का नाम है तो उनमें स्वयं उनके पीए मनिंदर चौधरी का नाम शामिल है।
यहां थोड़ा शुरूआती घटनाक्रम का जिक्र करना जरूरी है। दरअसल, रघुवर दास ने विधायक रहते पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा क्षेत्र में कैंप कार्यालय खोला था जो बाद में मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय में तब्दील हुआ उन्होंने इसकी जिम्मेदारी मनिंदर चौधरी को सौंपी थी। पर अब यह सवाल उठता है कि क्या मनिंदर चौधरी ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई ? मनिंदर चौधरी के कंधों पर क्षेत्र की जिम्मेदारी होने के बाद जब रघुवर दास अपनी सीट गंवा चुके हैं तो यह बात सच है कि इसके सबसे बड़े जिम्मेदार तो मनिंदर चौधरी ही रहे। सच्चाई भी यही है। रघुवर दास को क्षेत्र की जनता से दूर करने में सबसे बड़ा हाथ मनिंदर चौधरी का ही रहा। अपनी मित्र को हमेशा अपने बगल में बैठाना मनिंदर चौधरी की दिनचर्या में शामिल था। इस बात की चर्चा पूरे क्षेत्र में थी, लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि यह बात स्वयं रघुवर दास तक नहीं पहुंची। मुख्यमंत्री रघुवर दास के क्षेत्र की जिम्मेदारी होने के बाद भी मनिंदर चौधरी ने फूट करो और राज करो की नीति पर काम किया, जिसकी वजह से बीजेपी के कार्यकर्ताओं में रोष व्याप्त ’ हो गया। चौधरी ने यह काम कार्यकर्ताओं के बीच भी किया, जिससे कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य बनने के बजाय दूरी बनती गई और मतदाताओं में इसका असर पूरी तरह दिखाई दिया।
यह बात रघुवर दास तक तब पहुंच पाई, जब कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास मंगलवार को अपने कार्यकर्ताओं के साथ जमशेदपुर में स्थित सूर्य मंदिर में समीक्षा बैठक कर रहे थे। कार्यकर्ताओं ने उन्हें बताया कि कौर-कौन उनकी हार के जिम्मेदार हैं। मनिंदर चौधरी का नाम इस सूची में पहले पायदान में शामिल रहा इसका अंदाजा चौधरी को पहले से ही थी तो मतगणना के दिन से ओएसडी राकेश चौधरी को बदनाम करने की साजिश रचना शुरू किया था लेकिन कार्यकर्ताओं से जो फीडबैक मिला उससे रघुवर दास अवाक रह गए
अब रघुवर दास को यह सच जानने और मनिंदर चौधरी को हटाने से क्या होगा, जब चिड़िया चुग गई खेत। इसी तरह कार्यकर्ताओं से रघुवर दास सीधा संवाद चुनाव से पहले रखते और चंद चाटूकारों के जंजाल में न फंसे होते तो कम-से-कम वह अपनी तो सीट बचाने में सफल हो ही जाते।
राजनीति का सबसे पहला वसूल होता है कि कार्यकर्ताओं को खुश रखा जाए, लेकिन यहां ऐसा देखने को नहीं मिला, जब कार्यकर्ताओं तक संवाद बनाने के लिए किसी दूसरे को जिम्मेदारी दे दी जाए तो निश्चित ही उसका परिणाम ऐसा ही होता है, जैसा रघुवर दास के साथ हुआ है। जिस मनिंदर चौधरी पर उन्होंने सम्मान देकर भरोसा किया, वह महज अपने फायदों के कामों में जुटा रहा। जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर वह कॉरपोरट और ठेकेदार घरानों से लाइजनिंग कर महज अपनी ही चांदी काटता रहा और चौधरी ने कार्यकर्ताओं के बीच फूट डालने और बदले की भावना से काम किया, जिसकी परिणति यह हुई कि रघुवर दास के हाथ से सत्ता तो गई ही, बल्कि विधायकी भी चली गई। इस बात से यह संदेश जरूर मिलता है कि किसी पर आंख मूदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। यह राजनीति है, खास लोगों को जिम्मेदारी देने के साथ ही सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी आम लोगों व कार्यकर्ताओं से संवाद अवश्य बनाया जाता रहना चाहिए, क्योंकि चुनाव जीतने में जितनी बड़ी भूमिका कार्यकताओं व आम जनता निभाती है, उतनी बड़ी जिम्मेदारी वे चंद लोग नहीं निभाते हैं, जो सत्ता के लोगों तक पहुंच बनाकर महज अपना ही हित साधने में लगे रहते हैं।