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    Home » बीएसपी को आकाश आनंद को स्पष्ट नेतृत्व देने की आवश्यकता
    Breaking News Headlines राजनीति संपादकीय

    बीएसपी को आकाश आनंद को स्पष्ट नेतृत्व देने की आवश्यकता

    News DeskBy News DeskMay 22, 2025No Comments5 Mins Read
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    देवानंद सिंह
    बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को चीफ नैशनल कोऑर्डिनेटर जैसे नए पद पर आसीन कर सबको चौंका दिया है। इस निर्णय ने न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस को जन्म दिया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि बीएसपी अब एक गहरे आत्ममंथन और रणनीतिक संकट के दौर से गुजर रही है। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी की गिरती राजनीतिक पकड़, संगठनात्मक शिथिलता और मतदाता आधार में दरार के बीच यह फैसला कहीं मजबूरी का संकेत देता है, तो कहीं एक आखिरी दांव की तरह भी प्रतीत होता है।

    उल्लेखनीय है कि मायावती ने एक दौर में दलित राजनीति को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया था। उनकी छवि एक सख्त प्रशासक और संगठनकर्ता की रही है, लेकिन सत्ता से दूरी बढ़ने के साथ ही यह स्पष्ट होता गया कि उन्होंने नेतृत्व के दूसरे विकल्पों को पनपने नहीं दिया। अधिकांश वरिष्ठ नेता या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या निष्कासित कर दिए गए हैं। नतीजतन, आज पार्टी पूरी तरह से मायावती के इर्द-गिर्द सिमट चुकी है। यही कारण है कि आकाश आनंद की बार-बार की वापसी को भी व्यापक संदर्भ में देखना आवश्यक है।

    पिछले एक वर्ष में आकाश को दो बार पद से हटाया गया और दो बार उनकी वापसी हुई। उनकी हर वापसी पहले से अधिक सशक्त पद के साथ हुई। यह न केवल बीएसपी के संगठनात्मक ढांचे में लचीलापन दिखाता है, बल्कि इस बात का भी संकेत है कि मायावती को अब उत्तराधिकारी तय करने के लिए दबाव महसूस हो रहा है। परंतु जिस तरह यह निर्णय बार-बार पलटा गया, वह पार्टी कार्यकर्ताओं और वोटबैंक में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है। एक समय पर दलित राजनीति बीएसपी की चुनौती की रीढ़ मानी जाती थी, अब एक बहुध्रुवीय प्रतिस्पर्धा में तब्दील हो चुकी है। एक तरफ बीजेपी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ दलित समुदायों में घुसपैठ की है, वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी भी ‘बहुजन-मुस्लिम’ समीकरण को नए सिरे से साधने की कोशिश में लगी है। इसके अलावा, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे युवा नेता अब राजनीतिक मंच पर दलित आकांक्षाओं की नई आवाज बनकर उभरे हैं। इन सबके बीच बीएसपी की पारंपरिक शैली और जमीनी सक्रियता की कमी उसके अस्तित्व को संकट में डाल रही है।

    2024 के आम चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन इसका ज्वलंत उदाहरण है। अकेले लड़ने का निर्णय लेना आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम हो सकता था, लेकिन इसका नतीजा पार्टी के लिए विनाशकारी रहा। न सिर्फ उसका खाता नहीं खुला, बल्कि वोट शेयर गिरकर 9.3% पर आ गया। 2019 के 19.2% के मुकाबले यह लगभग आधा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को केवल 12.8% वोट मिले। इन आंकड़ों को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पार्टी का कोर वोटबैंक भी अब छिटक रहा है, जिससे समाजवादी पार्टी और बीजेपी को लाभ मिल रहा है।

    बीएसपी की राजनीतिक संवादहीनता और संगठनात्मक निष्क्रियता की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह चुनावों को छोड़कर साल भर जनता से संवाद नहीं करती। पार्टी का सोशल मीडिया पर प्रदर्शन बेहद कमजोर है, जबकि आज की युवा पीढ़ी संवाद और भागीदारी की राजनीति चाहती है। आकाश आनंद की कुछ रैलियों और भाषणों को ज़रूर सोशल मीडिया पर सराहना मिली, लेकिन पार्टी का समग्र डिजिटल रणनीति लगभग शून्य के बराबर है। मायावती का संवाद शैली अब पुरानी पड़ चुकी है, और वह युवाओं से कनेक्ट नहीं कर पा रही हैं।

    सड़क पर संघर्ष, आंदोलनों की अगुवाई, या सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर ठोस प्रतिक्रिया जैसे मोर्चों पर बीएसपी अनुपस्थित रही है। किसान आंदोलन, सीएए-एनआरसी विरोध, दलित अत्याचार के मामले, हर बार बीएसपी ने या तो देर से प्रतिक्रिया दी या बिल्कुल चुप्पी साधे रखी। इससे यह धारणा मजबूत होती गई कि पार्टी अब विपक्ष की भूमिका भी निभाने में असमर्थ है।
    आकाश आनंद युवा हैं, शिक्षित हैं और दलित युवाओं में एक वर्ग उन्हें आशा की नज़र से देखता है। वे सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं और जमीनी स्तर पर भी उन्होंने कुछ जगहों पर संगठन को मजबूत करने की कोशिश की है, लेकिन बार-बार पदों से हटाए और फिर बहाल किए जाने की प्रक्रिया ने उनकी साख को भी आघात पहुंचाया है। अब उन्हें एक स्थायी और स्पष्ट भूमिका देने की ज़रूरत है। सिर्फ पद का नाम बदलने से पार्टी की छवि नहीं बदलेगी।

    यदि, बीएसपी वाकई आकाश को उत्तराधिकारी बनाना चाहती है, तो यह कार्य एक व्यवस्थित प्रक्रिया और संगठनात्मक पारदर्शिता के साथ होना चाहिए। उन्हें पार्टी के नीति निर्धारण में सक्रिय भूमिका देनी होगी, जमीनी आंदोलनों की जिम्मेदारी देनी होगी और सबसे अहम, उन्हें अपने तरीके से संवाद और नेतृत्व करने की आज़ादी देनी होगी। उत्तर प्रदेश में 2027 का विधानसभा चुनाव बीएसपी के लिए केवल सत्ता प्राप्ति की लड़ाई नहीं होगी, बल्कि यह पार्टी के अस्तित्व की लड़ाई होगी। यदि, पार्टी इस बार भी पिछड़ती है, तो उसका जनाधार पूरी तरह खिसक सकता है। ऐसे में, अभी से संगठन को पुनर्गठित करना, जनता के मुद्दों को सशक्त तरीके से उठाना, और नेतृत्व में स्पष्टता लाना अनिवार्य हो गया है। बीएसपी को अपनी राजनीतिक भाषा और शैली दोनों को पुनः गढ़ना होगा। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के मूल मंत्र को 21वीं सदी की संप्रेषण तकनीकों और नई सामाजिक आकांक्षाओं के साथ जोड़ना होगा। यह केवल मायावती की व्यक्तिगत विरासत का नहीं, बल्कि दलित राजनीति के भविष्य का भी सवाल है।

    बीएसपी आज एक चौराहे पर खड़ी है। एक ओर उसकी ऐतिहासिक विरासत है, जिसने भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में दलितों की भागीदारी को सुनिश्चित किया। दूसरी ओर वह बदलती राजनीति की वास्तविकताओं से जूझ रही है, जहां युवाओं, सोशल मीडिया, और ज़मीनी संघर्ष की नई परिभाषाएं गढ़ी जा रही हैं। मायावती के पास अब भी समय है कि वे आकाश आनंद को स्पष्ट नेतृत्व सौंपें, पार्टी को नई ऊर्जा दें, और संगठन को जनसरोकारों से जोड़ें। वरना, यह ऐतिहासिक पार्टी धीरे-धीरे इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएगी।

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