संत शिरोमणि रविदास जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
रविदाजी को पंजाब में रविदास कहा। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से ही जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग ‘रोहिदास’ और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनका जन्म माघ माह की पूर्णिमा को हुआ था। इस वर्ष 24 फरवरी, शनिवार को उनकी जयंती मनाई जाएगी।
संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्री विजय दास जी है। रविदासजी अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के तथा अत्यंत दयालु थे वे जूते बनाने का कार्य करते थे ,ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।
उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक मुस्लिम ‘सदना पीर’ उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं मानवता से मतलब था।
संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि ‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच’ यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित किए गए है।
सोपोडेरा रविदास भवन में संत रविदास की मनी जयंती
जमशेदपुर : संत शिरोमणि सत गुरु की उपाधि प्राप्त संत कवि रवि दास जी की 647 वीं जयंती जमशेदपुर प्रखंड अंतर्गत सोपोडेरा रवि दास भवन में धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर गौतम बुद्ध , संत रविदास एवं संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के चित्रों पर माल्यार्पण किया गया। विधि पूर्वक पूजा अर्चना , हवन , आरती , भजन , रामायण पाठ एवं संत कवि रविदास के गुरुवाणी का व्याख्यान किया गया गया। इस कार्य को स्थानीय बारीगोड़ा निवासी राम चंद्र दास ने संपन्न कराया। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय रविदास समाज के लोग इस कार्यक्रम में शिरकत किये। माताएं एवं बहने भी कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा ली। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से समाज को एक जुट करने , सतगुरु के विचारों को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने एवं समाज के लोगों को नई दिशा देने में मदद मिलती है। श्री दास ने कहा कि संत रवि दास देश और दुनिया को अमूल्य सीख दे गये हैं । वो समाज में फैले बुराईयों एवं कुरीतियों को दूर किये। उन्होंने समाज के लोगों से शिक्षा पर जोर देने , समाजसेवा कार्यों में आगे आने तथा एकजुटता बनाए रखने की अपील की।उधर बारीगोड़ा जनता रोड़ , आदित्यपुर में भी संत रविदास जी की जयंती मनाई गई।
कार्यक्रम में रामचंद्र दास , संजय दास , मोहन दास , मनीष दास , मनोज दास , सत्यनारायण दास , अरूण , छोटू , गणेश दास , रूपेश, संतोष , भिखारी दास , प्रकाश दास , प्रमोद दास , उमेश , सुजीत, महेश , पंकज , विनोद दास , धीरज , आशीष समेत काफी संख्या में महिलाएं एवं बच्चें शामिल थे।
स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने ‘संतन में रविदास’ कहकर इन्हें मान्यता दी है। राजस्थान की कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई उनकी शिष्या थीं। यह भी कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं थीं। वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। मान्यता है कि वे वहीं से स्वर्गारोहण कर गए थे। कहते हैं कि वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह छोड़ दी थी।वाराणसी में संत रविदास का भव्य मंदिर और मठ है। जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है जो उनके नाम पर ‘गुरु रविदास स्मारक और पार्क’ बना है।
सामाजिक समरसता विभाग
विश्व हिंदू परिषद, झारखंड