विंध्य कॉरिडोर में अवैध कमाई का काला खेल: पारदर्शिता की मांग
राष्ट्र संवाद संवाददाता
विंध्य कॉरिडोर विंध्याचल एक पवित्र धार्मिक स्थल, जो लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, आजकल भ्रष्टाचार और अवैध कमाई के गंभीर आरोपों से घिरा हुआ है। यह परिसर, जो पूरी तरह से जिला प्रशासन के अधीन है, में फोटोग्राफी और बाल कटाई के ठेकों के नाम पर रोजाना लाखों रुपये की अवैध वसूली की जा रही है। इस काले धंधे में शामिल कुछ लोग न केवल मोटी कमाई कर रहे हैं, बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों और पंडा समाज की चुप्पी ने इस घोटाले को और गहरा कर दिया है।अवैध फोटोग्राफी का धंधा: रोजाना 30-40 हजार की कमाई विंध्य कॉरिडोर में बिना किसी वैध ठेके के फोटोग्राफी का अवैध कारोबार जोरों पर है। सूत्रों के अनुसार, सिर्फ आई-कार्ड बनाकर कुछ लोग इस धंधे को चला रहे हैं, जिससे रोजाना 30 से 40 हजार रुपये की कमाई हो रही है। हैरानी की बात यह है कि इस अवैध गतिविधि पर न तो मंदिर प्रशासन और न ही जिला प्रशासन कोई कार्रवाई कर रहा है। सवाल उठता है कि विंध्य कॉरिडोर के अधिकारी इस पर मौन क्यों हैं? क्या वजह है कि इस काले धंधे को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा?आरोप है कि इस अवैध कमाई में 5 से 7 लोगों का निश्चित प्रतिशत तय है। इसमें कस्बे के एक जिम्मेदार अधिकारी को भी हिस्सा दिया जा रहा है, जिसके चलते विरोध करने वाले सभी लोगों को या तो खरीद लिया गया है या चुप करा दिया गया है। इतना ही नहीं, पुलिस की कथित मिलीभगत ने इस धंधे को और बढ़ावा दिया है।
बाल ठेके का रहस्य: अपराधियों को क्यों सौंपा गया?फोटोग्राफी के साथ-साथ बाल कटाई का ठेका भी हर साल चोरी-छिपे एक ही समूह को दे दिया जाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस ठेके को कथित तौर पर आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को सौंपा गया है। यदि बाल कटाई का ठेका देना ही है, तो नाई समाज, जो इस कार्य में पारंपरिक रूप से निपुण है, को यह जिम्मेदारी क्यों नहीं दी जाती? इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और बार-बार एक ही लोगों को ठेका देने के पीछे की सच्चाई क्या है? इस मोटी कमाई का पैसा आखिर कहां जा रहा है?पंडा समाज की चुप्पी: विश्वासघात क्यों?पंडा समाज, जो विंध्य कॉरिडोर का अभिन्न हिस्सा है, इस अवैध कमाई के खेल का पर्दाफाश क्यों नहीं कर रहा? क्या कोई पंडा भाई फोटोग्राफी या बाल ठेके की जिम्मेदारी लेने में असमर्थ है, जो इसे अपराधियों के हवाले कर दिया गया है? आरोप है कि कुछ जिम्मेदार लोग अपराधियों के साथ मिलकर पंडा समाज की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। समाज में रहकर समाज के साथ इस तरह का विश्वासघात क्यों किया जा रहा है?पारदर्शिता की मांग: ठेके क्यों नहींसार्वजनिक?स्थानीय लोग और श्रद्धालु लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि फोटोग्राफी और बाल कटाई के ठेकों को सार्वजनिक और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत आवंटित किया जाए। हर साल चोरी-छिपे ठेका देने की प्रथा ने कई सवाल खड़े किए हैं। इस अवैध कमाई का “बादशाह” कौन है, और इसे रोकने के लिए जिम्मेदार लोग कब तक मौन रहेंगे? पंडा समाज और अन्य जातियों को ठेके देने की प्रक्रिया में भेदभाव क्यों किया जा रहा है? जिला प्रशासन की निष्क्रियता: जवाबदेही कौन लेगा?विंध्य कॉरिडोर का पूरा परिसर जिला प्रशासन के अधीन है, फिर भी इस अवैध कमाई पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले की गहन जांच करवाए और ठेकों को पारदर्शी तरीके से आवंटित करे। यदि नाई समाज बाल कटाई का ठेका संभाल सकता है, तो उसे यह जिम्मेदारी देने में क्या हर्ज है? पंडा समाज को भी अपनी चुप्पी तोड़कर इस घोटाले के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।निष्कर्ष: समय है कार्रवाई का विंध्य कॉरिडोर में चल रहा यह अवैध धंधा न केवल धार्मिक स्थल की पवित्रता को कलंकित कर रहा है, बल्कि श्रद्धालुओं की आस्था के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है। जिला प्रशासन, पंडा समाज और स्थानीय पुलिस को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। फोटोग्राफी और बाल कटाई के ठेकों को सार्वजनिक रूप से पारदर्शी प्रक्रिया के तहत आवंटित किया जाना चाहिए। इस अवैध कमाई के “बादशाह” का पर्दाफाश होना जरूरी है, ताकि विंध्य कॉरिडोर की गरिमा और पवित्रता बरकरार रहे। अब सवाल यह है: क्या जिम्मेदार लोग इस घोटाले पर चुप्पी तोड़ेंगे, या यह काला खेल यूँ ही चलता रहेगा?