झारखंड भाजपा-पिघलने लगी है बर्फ
जय प्रकाश राय
झारखंड की राजनीति राज्य सभा चुनाव के बहाने कुछ बदलती प्रतीत हो रही है। विधान सभा चुनाव के समय खासकर एनडीए में जो तनातनी पैदा हो गयी थी और खुद भाजपा में विद्रोह देखने को मिला था, ऐसा प्रतीत होता हैकि राज्य सभा चुनाव ने उस दूरी को कम कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ मैदान में उतरकर उनको मात देने वाले भाजपा के बागी नेता सरयू राय से भाजपा के प्रदेश के शीर्ष नेताओं की मुलाकात के बाद ऐसा लगता है कि बर्फ पिघलने लगी हैै। सरयू राय ने अपना टिकट काटे जाने का ठीकरा तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास पर फोड़ते हुए लगातार उनके खिलाफ हमलावर रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान और परिणाम आने के बाद वे पूर्व मुख्यमंत्री पर काफी तल्ख टिप्पणी करते रहे हैं। पार्टी के दूसरे नेताओं के बारे में हलांकि उनकी ऐसी कोई टिप्पणी नहीं आई जैसी रघुवर दास को लेकर आती रही है। राज्य सभा चुनाव के दौरान एक समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भाजपा मुश्किल में फंस गयी है। आजसू के साथ जैसे संबंध भाजपा के पैदा हो गये थे. उसे देखते हुए यह तय करना कठिन था कि भाजपा प्रत्याशी की जीत होगी। लेकिन माना जाता है कि प्रत्याशी चयन के समय से ही ऐसे विधायकों से भाजपा ने संपर्क साधना और उनके मन को टटोलना शुरु कर दिया था। यह माना जा रहा था कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व रघुवर दास को प्रत्याशी बनाना चाह रहा था लेकिन आंकड़े साफ संदेश दे रहे थे कि उसे आजसू एवं दो निर्दलीय विधायकों सरयू राय और अमित यादव से मदद लेनी होगी। यह भी कहा जाता है कि आजसू एवं दोनो निर्दलीय विधायकों की ओर से साफ संदेश दे दिया गया था कि रघुवर दास को टिकट मिलने की स्थिति में वे भाजपा को वोट नहीं करेंगे। भाजपा आलाकमान उनके मन की बात समझ चुका था और इनकी बातें मान ली गयीं और अब उसका असर दिखने लगा है। भाजपा प्रत्याशी दीपक प्रकाश के प्रस्तावकों में निर्दलीय विधायक अमित यादव और आससू के लंबोदर महतो के हस्ताक्षर से साफ हो गया था कि उनकी सहमति को महत्व दिया गया है। भाजपा के पास 25 एवं बाबूलाल मरांडी को लेकर 26 विधायक हैं। आजसू के दो विधायकों एवं अमित यादव का साथ मिलने के बाद संख्या 29 की हो जाती है जो जीत तय करने के लिये काफी है। बावजूद इसके दीपक प्रकाश एवं अन्य नेताओं का सरयू राय का समर्थन मांगने उनके आवास पर जाना दर्शाता है कि भाजपा अब रिश्ते बेहतर करने की दिशा में आगे बढ रही है। सरयू राय ने दीपक प्रकाश को सीधा कोई आश्वासन तो नहीं दिया लेकिन इशारे इशारे में उन्होंने कह दिया कि उनके कारण दीपक जी को कोई परेशानी नहीं होगी। साथ ही उन्होंने कांग्रेस को भी नसीहत दे दी कि उसे प्रत्याशी नहीं उतारना चाहिये था क्योंकि उसके पास संख्या बल नहीं है। विधान सभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा को ऐसा झटका दिया है कि वह अब कोई भी जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है। बाबूलाल मरांडी को उनकी शर्तों पर पार्टी में वापस लिया गया है।उनको विधायक दल का नेता बनाया जाना दर्शाता है कि भाजपा अभी किस स्थिति से गुजर रही है। उसके लिये राज्य सभा चुनाव ने एक अवसर दिया है कि वह अपने पुराने तमाम साथियों के साथ संबंध को सुधार सके। इसका असर झारखंड की राजनीतिक पर दूरगामी हो सकता है।
यह भी देखा जा रहा है कि विधान सभा चुनाव के दौरान भाजपा से कम तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से अधिक तनातनी हो गयी थी।चूकि रघुवर दास खुद चुनाव हार गये और अब उनको राज्य सभा का टिकट भी नहीं दिया गया इस कारण हालात बदलने की दिशा में प्रयास होने लगे हैँ। यदि आज रघुवर दास भाजपा के प्रत्याशी होते तो पार्टी के लिये इतनी सुखद स्थिति शायद नहीं होती जितनी दीपक प्रकाश को उम्मीदवार बनाये जाने के बाद हुई है।अब बड़ा सवाल यहहै कि क्या इस बदले हालात के बाद सरयू राय की भी घर वापसी होगी?
लेखक चमकता आईना के संपादक हैं