बिहार में जातिगत जनगणना का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और अदालत ने मामले पर 20 जनवरी 2023 को सुनवाई पर लगाने की मंजूरी दी है, अब इसके बाद ही तय होगा कि जातिगत जनगणना जारी रहेगी या रोक दी जाएगी, लेकिन…. जातिगत जनगणना रूके या जारी रहे, इसका सियासी फायदा-नुकसान तो तय हो ही गया है!
जातिगत जनगणना के विरोध में कौनसे दल हैं और समर्थन में कौनसे, यह जगजाहिर है, इसलिए यह तय है कि यह मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनाव में अपना असर जरूर दिखाएगा?
खबरें हैं कि जातिगत जनगणना कराने के लिए पिछले साल 6 जून 2022 को राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और याचिका में जातिगत जनगणना के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई है. यह याचिका बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने दाखिल की, जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को राजी हो गया है, अदालत ने इस मामले को 20 जनवरी 2023 को सुनवाई पर लगाने की मंजूरी दी है.
इस याचिका में बिहार में हो रही जाति आधारित जनगणना को चुनौती देते हुए कहा गया है कि- जनगणना कराने का अधिकार केंद्र सरकार को है, राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार नहीं है, लिहाजा बिहार सरकार के जाति आधारित जनगणना कराए जाने की अधिसूचना गैर कानूनी और मनमानी कार्यवाही है, इसे रद्द किया जाए.
खबरों की मानें तो याचिकाकर्ता का कहना है कि- जनगणना केंद्रीय सूची में प्रविष्टि 69 का विषय है, अतः जनगणना के विषय में केंद्र सरकार और संसद को ही अधिकार है.
देखना होगा कि सबसे बड़ी अदालत इसे लेकर क्या फैसला सुनाती है, क्या निर्देश देती है!