बिहार चुनाव में क्षत्रप गठबंधनों का खेल बिगाड़ सकते हैं। जातीय समीकरणों को साधने में माहिर नीतीश कुमार ने एक बार फिर इन समीकरणों को साधने की कोशिश की है। भाजपा सांगठनिक स्तर पर ही इन्हें साधती रही है। मुश्किल होगी महागठबंधन में शामिल दलों के बीच। कांग्रेस जातीय समीकरण को साध नहीं पाई है और राजद के आधार वोट बैंक पर चोट करने के लिए क्षत्रप पहले से ही मैदान में हैं।
विपक्षी महागठबंधन से अलग हुए जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी अपने-अपने समुदाय के चेहरे हैं। वहीं राजद से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले पप्पू यादव सीमांचल की यादव बिरादरी में पहले से लोकप्रिय हैं। हाल के दिनों में उन्होंने अपनी पैठ और मजबूत की है। पप्पू यादव राजनीति में लालू प्रसाद यादव की पाठशाला की देन हैं। लालू से नाराजगी के बाद वह राजद से अलग हुए थे। वह भी एमवाई समीकरण पर नजरें गड़ाए बैठे हैं।
कभी नीतीश के सहयोगी रहे कुशवाहा ने उनसे नाता तोड़ लिया और कुशवाहा समाज के पोस्टर ब्वॉय बन गए। 2019 के संसदीय चुनाव में वह कुशवाहा मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने में सफल नहीं रहे। बावजूद इसके उनके समर्थक उन्हें कुशवाहा समाज का सबसे बड़ा नेता मानते हैं। कुशवाहा ने इस चुनाव में बसपा से हाथ मिलाया है। राज्य की कम से कम 20 सीटों पर बसपा का प्रभाव है। यहां दलित समुदाय का हरिजन वोट मायावती की पार्टी को शिफ्ट होता रहा है। मुकेश साहनी को भले ही चुनाव में अब तक कमाल दिखाने का मौका नहीं मिला है, लेकिन उनकी पार्टी ने साहनी (मल्लाह) मतदाताओं के एक हिस्से में अपनी पैठ बना ली है।
मांझी वोट शिफ्ट करवाने में नाकाम
जीतन राम मांझी वैसे अब तक किसी भी पार्टी या गठबंधन की तरफ मांझी समुदाय का वोट शिफ्ट करवा पाने में नाकाम रहे हैं, फिर भी वह राज्य के मांझी समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। महागठबंधन से मोहभंग होने के बाद वह नीतीश के साथ खड़े हैं। वहीं सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने अपना जनाधार बना लिया है। किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी ने जीत दर्ज की थी।
इन समीकरणों से महागठबंधन को सबसे ज्यादा नुकसान
जो समीकरण हैं, वह फिलहाल महागठबंधन को ज्यादा नुकसान पहुंचाते दिख रहे हैं। पप्पू यादव का एमवाई समीकरण, उपेंद्र कुशवाहा का ओबीसी-दलित समीकरण, मुकेश साहनी का ईबीसी समीकरण और जीतन राम मांझी का महादलित समीकरण कभी कांग्रेस, राजद और वाम दलों की ताकत हुआ करता था। इसमें सिर्फ कुशवाहा महागठबंधन के साथ राजग को भी मामूली नुकसान पुहंचा सकते हैं। जाहिर है ये दल अलग चुनाव लड़ें या मोर्चे बनाकर, नुकसान बड़े गठबंधनों को ही होना है।