सियायत के नए समीकरण तय करेगी भारत जोड़ो यात्रा
भाई-बहन का रिश्ता अनमोल होता है, इसीलिए उसका सभी को सम्मान करना चाहिए
राहुल गांधी के सामने भी पार्टी को दोबारा मजबूत कर सत्ता में वापस लाने की चुनौती है तो बीजेपी के सामने भी सवाल बहुत हैं
राहुल गांधी ने साधे पश्चिम के चार समीकरण, साथ मिला तो बदल जाएगी तस्वीर,यात्रा में किसान, जाट, दलित और मुसलमान शामिल
देवानंद सिंह
7 सितंबर 2022 से शुरू हुई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सबकी नजर अपनी ओर खींचा है। उत्तर प्रदेश देश का एक ऐसा राज्य है, जो दिल्ली का रास्ता तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाता है। यानि कहा जाता है कि जो उत्तर प्रदेश की राजनीति को साधने में सफल हो गया, उसने दिल्ली की सियासत का रास्ता भी तय कर लिया।
इसीलिए जैसे ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश में पहुंची, वैसे ही, सियासत भी तेज हो गई, जिस तरह से इस यात्रा में लोगों की भीड़ जुटी , उसने बीजेपी की सियासत को भी हिलाकर रख दिया है, इसीलिए बीजेपी की तरफ से तमाम तरह की अर्नगल बातों का प्रचार कर इस यात्रा पर अनौपचारिक तरीके सवाल उठाए जा रहे हैं, क्योंकि सीधे तौर पर भारत जोड़ो यात्रा का विरोध करना उसे भारी पड़ेगा, ऐसा बीजेपी विचारधारा के लोग भी भली-भांति जानते हैं, लेकिन बीजेपी की सियासत को लेकर सवाल नहीं उठ रहे हैं, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। राहुल का प्रियंका को दुलार करते फोटों को बार-बार प्रचारित करना क्या जायज है, इस बात को लेकर बीजेपी, कांग्रेस के बीच भी और जनता के बीच भी निशाने पर आ गई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में लगातार बढ़ रही भीड़ है। भाई-बहन का रिश्ता अनमोल होता है, इसीलिए उसका सभी को सम्मान करना चाहिए, ऐसे चीजों के माध्यम से सियासत को साधने का बिल्कुल प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। जैसे-जैसे राहुल गांधी की यात्रा आगे बढ़ रही है, उसमें नई जान देखने को मिलना इस दौर में इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बीजेपी के सामने कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही थी, लेकिन इस यात्रा ने पार्टी में भी नई जान फूंक दी है
जिससे बीजेपी और आरएसएस विचारधारा के लोगों में हलचल है। इस हलचल को राम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय द्वारा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिली प्रशंसा से बखूबी समझा जा सकता है। उनके बयान ने पूरी सियासत और जनता के बीच एक ऐसा संदेश गया है, जिससे राहुल की इस यात्रा को और ताकत मिली है। चंपत राय को यहां तक कहना पड़ा कि आरएसएस या प्रधानमंत्री ने भारत जोड़ो यात्रा की आलोचना नहीं की। इससे साफ है कि कहीं न कहीं आरएसएस विचारधारा के अंदर भी अपनी ही सत्ता के खिलाफ नाराजगी है, क्योंकि जिस आरएसएस विचारधारा ने बीजेपी को सत्ता तक लाने में काफी मेहनत की, आज जब बीजेपी सत्ता में है, तब केवल दो लोगों, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के इर्द-गिर्द ही सत्ता का केन्द्र है, निश्चित ही यह बात आरएसएस विचारधारा के लोगों को भी कहीं न कहीं अखर रही है और लोगों के बीच भी सरकार के खिलाफ विरोध दिखने लगा है,
क्योंकि जिस आत्मनिर्भर भारत को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, वह केवल जुमलेबाजी का हिस्सा दिखाई दे रहा है। अगर, हकीकत देखी जाए तो किसान से लेकर महिला, युवा सब परेशान हैं, रोजगार कहीं हैं नहीं और महंगाई का आलम यह है कि आम आदमी से रोजमर्रा जरूरत की चीजें दूर होती चली जा रही हैं। ऐसे में, जनता के मन में परिवर्तन देखने की लालसा बढ़ रही है, इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। इस बात को प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी भली-भांति समझते हैं। सवाल यह है कि जिन उधोगपतियों के भरोसे सत्ता को चलाने का प्रयास किया जा रहा है,
आखिरकार वह कब तक चलेगा, क्योंकि उधोगपतियों के भरोसे आप सत्ता में रहते हुए आगे चल सकते हैं, लेकिन जब चुनाव आएगा तो जनता के बीच में ही जाना पड़ेगा, उसकी ही सुननी पड़ेगी। ऐसे में, अगर राहुल गांधी सरकार का तानाशाही होने का सवाल लेकर जनता के बीच हैं तो निश्चित ही यह जनता की आवाज को बुलंद करने का बहुत महत्वपूर्ण काल है, क्योंकि 2024 में आम चुनाव होने हैं, इसीलिए राहुल गांधी के सामने भी पार्टी को दोबारा मजबूत कर सत्ता में वापस लाने की चुनौती है तो बीजेपी के सामने भी सवाल बहुत हैं, क्योंकि जनता बेरोजगारी, महंगाई और देश की अर्थव्यवस्था की चरमराई स्थिति से परेशान है और उसे जमीन पर कुछ नजर नहीं आ रहा है, जबकि चीजों को प्रचारित इस तरह किया जा रहा है कि जैसे भारत ने सबकुछ पिछले 8-10 सालों में ही हासिल किया है,
इसीलिए 2024 को चुनाव सियासत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण होगा। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बीच कांग्रेस का नया चेहरा देखने को मिले, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है।