राष्ट्र संवाद कार्यालय में भाई जी शलेंद्र पाण्डेय शैल ने राष्ट्र संवाद के तेवर को नमन करते हुए पढ़े ये ग़ज़ल
इस इम्तिहान का पर्चा कड़ा दिया जाए
हमारे पांव से रस्ता हटा दिया जाए
वगरना जंग ये तुम पर सहल न रहने की
हमें हमीं से लड़ाकर हरा दिया जाए
किनारे पांव जमाने की कोशिशों में हैं
समंदरों का इलाका बढ़ा दिया जाए
मेरे क़बल भी यहां किसको याद रक्खा गया
अजब नहीं कि मुझे भी भुला दिया जाए
हमारा गुन्ह गुनाहे-अज़ीम साबित हो
हमारी क़ैद का रुतबा बढ़ा दिया जाए