वैसे तो, पिछले कुछ महीनों से, बहरागोड़ा का सोशल मीडिया कई तरह की चर्चाओं में व्यस्त था, लेकिन जब से झामुमो के टिकट पर समीर मोहंती के चुनाव लड़ने की संभावना वाली खबर आई है, हंगामा मच गया है। भाजपा व झामुमो के स्थानीय नेता व कार्यकर्ता नफा-नुकसान के गुणा-भाग में लगे हुये हैं, और राजनैतिक दलों ने आधिकारिक तौर पर, चुप्पी साध ली है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या विधायक कुणाल षाड़ंगी बिना चुनाव लड़े ही जंग से बाहर हो चुके हैं? सोशल मीडिया पर, और क्षेत्र में कुणाल षाड़ंगी की सक्रियता से यह लगता नहीं है, और झामुमो के सूत्रों ने भी इस सवाल का नकारात्मक जबाब दिया है। उनके अनुसार कुणाल षाड़ंगी अब भी पार्टी का हिस्सा हैं, और पार्टी के टिकट पर ही अगला चुनाव लड़ेंगे।
झामुमो प्रखंड अध्यक्ष सुनील मुर्मू ने बाकायदा एक बयान जारी कर के बताया है कि जो लोग कुणाल षाड़ंगी के खिलाफ अफवाह फैला रहे हैं, उन्हें कुणाल षाड़ंगी, पार्टी सुप्रीमो हेमंत सोरेन, तथा चम्पाई सोरेन के बीच के करीबी रिश्ते का अंदाजा ही नहीं है। जब जब पार्टी के ढांचे पर हमला हुआ है, हम लोगों को तोड़ने की कोशिश हुई है, हर बार पार्टी और मजबूत होकर उभरी है।
झामुमो सूत्रों ने बताया कि, जमशेदपुर सीट पर हार के बाद, सोशल मीडिया पर, संजीब सरदार समेत पार्टी के कई और नेता भी, जेनरल वोटरों को जोड़ने हेतु, सिंबल का इस्तेमाल कम ही कर रहे हैं। वैसे भी, सुदूर गांवों में, विश्वास यात्रा के दौरान, कुणाल की टीम की कई तस्वीरें आईं हैं, जिनमें वे पार्टी के लोगो वाली वस्तुएं वितरित करते दिख रहे हैं।
एक विधानसभा सीट के तौर पर, परंपरागत तौर पर भाजपा बहुल क्षेत्र माने जाने वाले, बहरागोड़ा में करीब 25-30 हजार वोट झामुमो के हैं, जिसमें पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने तगड़ी सेंध लगाई है। जबकि षाड़ंगी परिवार, तथा कुणाल षाड़ंगी के साथ 30-40 हजार जेनरल, बुद्धिजीवियों, युवा, महिला व अन्य वोट हैं, जिनके बिना झामुमो के लिए यह सीट निकालना आसान नहीं होगा।
बहरागोडा की चुनावी राजनीति मे दो ही ऐसे नेता हैं, जिनका अपना वोट बैंक है और वह पार्टी के सिंबल पर आधारित नही है – डॉ दिनेश षडंगी और विद्युत वरण महतो। भाजपा अच्छे से जानती है कि अगर कुणाल षाड़ंगी को पार्टी ले लेती है तो वहाँ विपक्ष के पास कोई ऐसे चेहरा नहीं है जो जनता से जुड़ा हो, सामाजिक, आर्थिक रूप से मज़बूत हो तथा बुद्धिजीवियों, युवाओं और महिलाओं में ऐसी पकड़ हो कि वह भाजपा के ख़िलाफ सीट यह निकाल पाये। तो दोनों ही पार्टियों के पास विकल्प काफी सीमित हैं।
ताजा हालात यह हैं कि भले आप भाजपा का समर्थन करें, अथवा झामुमो का, लेकिन कुणाल षाड़ंगी को नकारना, किसी भी पार्टी के लिए असंभव है, क्योंकि उनके सामने जो नाम आ रहे हैं, वो पिछली बार उनसे हार चुके हैं। वैसे भी, पहले हार चुके लोगों, तथा अधिक उम्र वाले उम्मीदवारों को टिकट देना भाजपा ने बंद कर दिया है, और एक नये उम्मीदवार के लिये यह सीट काफी मुश्किल दिखाई देती है। यह मान कर चलिये कि पल पल बदलती इस राजनीति में, बहरागोड़ा के चुनाव खासे रोचक होते जा रहे हैं।
(तस्वीर में विश्वास यात्रा के दौरान बच्चों को झामुमो लोगो वाली चीजें वितरित करते कुणाल षाड़ंगी)