अमीश देवगन साहब!मुर्गा लड़ाई मत करवाइए, कभी मुद्दे की बात भी तो करिए
देवानंद सिंह
टीवी चैनलों पर जिस तरह डिबेट के नाम पर जहर परोसा जा रहा है, वाकई वह शर्मनाक है। टीवी एंकर जिस तरह से स्वयं को पेश करते हैं, उससे तो लगता है कि ये भारत के सबसे बड़े भाग्य विधाता हो गए हैं। सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है, जिसमें एक टीवी चैनल में तुष्टिकरण विषय पर चल रहे लाइव डिबेट के दौरान आचार्य प्रमोद कृष्णन उस चैनल के एंकर अमीश देवगन पर माइक फेंकते हैं और डिबेट को छोड़कर चले जाते हैं, वाकई यह घटना शर्मनाक है। आप समझ सकते हैं कि लाइव शो के दौरान इस तरह को घटनाएं किस तरह का संदेश देती हैं। ऐसी घटनाओं के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि न्यूज एंकर ही जिम्मेदार हैं। जिस तरह से न्यूज एंकर सरकार की भाषा बोलते हैं, उसमें कोई भी माइक फेंक सकता है। न्यूज एंकर असली मुद्दों को छोड़कर जिस तरह अनर्गल विषयों पर डिबेट चलाकर नेताओं को मुर्गे के तरह लड़ा रहे हैं, उसने पत्रकारिता के स्तर को एकदम गिरा दिया है। सरकार के प्रवक्ताओं की तरह जिस तरह ये एंकर मुद्दों को उठा रहे हैं, उसने पत्रकारिता के प्रति आम लोगों के मन में सम्मान एकदम कम कर दिया है, क्योंकि इन टीवी चैनलों में आज आम आदमी के मुद्दे हैं ही नहीं, आम आदमी की कोई बात नहीं कर रहा है, केवल सरकार द्वारा प्रस्तावित मुद्दों पर ही डिबेट कराई जा रही है, उसमें भी न्यूज एंकर सरकार का पक्ष लेकर बैठ जाते हैं, और सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्ष को कुछ बोलने का मौका तक नहीं दिया जा रहा है। अगर, मौका मिल गया तो उसके तर्क को सुनने के बजाय ये न्यूज एंकर कुतर्क करने लगते हैं। गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने लगते हैं। यह कैसा भारत बना रहे हैं हमारे न्यूज एंकर। देश आज आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। ये मुद्दे इन न्यूज एंकरों के न्यूज रूम से बिलकुल गायब हो गए हैं। अपने को इतना ही देश का बड़ा पत्रकार मानने वाले ये पत्रकार इन मुद्दों पर सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत क्यों नहीं करते हैं ? हिंदू, मुसलमान और पाकिस्तान करने से न तो देश की अर्थ व्यवस्था सुधरेगी, न रोजगार बढ़ेंगे और न ही महंगाई घटेगी। पर इन सरकार के प्रवक्ता न्यूज एंकरों को इससे क्या लेना देना, इनकी तो झोली भर रही है। इसीलिए इन्हें जहर उगलने से भी क्या परहेज। ये कहानी केवल एक चैनल की नहीं है, बल्कि अधिकांश न्यूज चैनलों की है। सत्ता की चाटुकारिता में जुटे इन पत्रकारों को समझना चाहिए कि सरकार तो आती जाती रहती है, पर आप अपना पत्रकारिता का धर्म निभाओ न कि सरकार की चाटुकारिता में डूब जाओ। इससे पत्रकारिता के साथ साथ आम जन की उम्मीदें भी धराशाही हो रही हैं।