आखिर ‘आप’ कब तक झूठ के सहारे सत्ता में रहती ?
देवानंद सिंह
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों में जिस तरह आम आदमी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, वह भारतीय राजनीति में इस बात की गवाही का प्रतीक है कि आप लंबे समय तक झूठ के सहारे सत्ता पर नहीं बने रह सकते हैं, क्योंकि परिवर्तन राजनीति और लोकतंत्र का हिस्सा होता है।
बीजेपी ने 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी की है, जो आम आदमी पार्टी पिछले 10 वर्षों से सत्ता में थी, इस बार 22 सीटों पर सिमट कर रह गई, लेकिन इस चुनाव में हार-जीत का सबसे बड़ा फैक्टर कांग्रेस रही, कांग्रेस पिछले चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, इस बार भी भले ही एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन पार्टी के वोट प्रतिशत में सुधार आया और वह अपनी पुरानी खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने की कोशिश करती दिखी। इससे बड़ी बात यह है कि आम आदमी को हारने में कांग्रेस ने ही सबसे बड़ी भूमिका अदा की।
इस चुनाव में बीजेपी ने 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 48 सीटों पर जीत हासिल की, जो उसकी ऐतिहासिक वापसी का प्रतीक है। बीजेपी को कुल 45.56 प्रतिशत वोट मिले, जो इस बात का संकेत है कि पार्टी ने दिल्ली के मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। बीजेपी की सफलता का मुख्य कारण उसके उम्मीदवारों द्वारा स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाना और दिल्ली के मतदाताओं में अपनी छवि को फिर से स्थापित करना था। इसके साथ ही, पार्टी ने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच चल रहे राजनीतिक संघर्ष का फायदा उठाया। बीजेपी ने अपनी चुनावी रणनीतियों में मजबूत नेतृत्व, विकास और सुरक्षा जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी, जो दिल्ली के अधिकांश मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही।
आम आदमी पार्टी दिल्ली में पिछले दो चुनावों से सत्ता में थी, इस बार केवल 22 सीटों पर सिमट कर रह गई। पार्टी को 43.57 प्रतिशत वोट मिले, हालांकि यह बात यह दर्शाती है कि दिल्ली के मतदाता पार्टी के कामकाज से संतुष्ट थे, लेकिन उनकी उम्मीदें अधिक थीं। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के नेताओं ने दिल्ली के विकास के मुद्दों पर जोर दिया था, लेकिन वह बीजेपी के मुकाबले इस मुद्दे को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पाई। पार्टी के अंदर के मतभेद और नेतृत्व की ओर से सही दिशा में काम न करने की वजह से उसे हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा पार्टी के लिए कांग्रेस के साथ दिल्ली में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला भी भारी पड़ा, क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे पर तीखे आरोप-प्रत्यारोप किए थे, जिससे मतदाता भ्रमित हो गए थे।
कांग्रेस की इस चुनाव में भूमिका काफी दिलचस्प रही। पार्टी ने 6.34 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो 2020 के चुनाव में प्राप्त 4.63 प्रतिशत वोट से बेहतर था। हालांकि, कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन पार्टी के वोटों का योगदान कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी के नुकसान का कारण बना। कई सीटों पर कांग्रेस के वोटों का अंतर आम आदमी पार्टी की हार के अंतर से कम था। यदि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ते तो परिणाम शायद अलग हो सकते थे।
कांग्रेस के अंदर एक लंबा विचार विमर्श चल रहा है कि आगामी चुनावों में पार्टी को अपनी रणनीति बदलनी होगी। पार्टी के नेताओं ने चुनाव परिणामों के बाद इस बात की ओर इशारा किया है कि इंडिया गठबंधन की एकता में कमी की वजह से यह हार हुई है। शिवसेना नेता संजय राउत और कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा ने भी इसे गठबंधन की कमजोरी माना और कहा कि अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ आते तो बीजेपी की हार तय थी। कांग्रेस को अब यह समझना होगा कि केवल विरोधी दलों के खिलाफ रणनीति बनाने से कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आएगा, बल्कि उसे खुद को नए सिरे से संगठित करना होगा।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच का संघर्ष बहुत अहम साबित हुआ। दोनों पार्टियों के बीच गहरे मतभेद थे, जिसके कारण इन दोनों के बीच गठबंधन नहीं हो सका। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे पर हमला बोला, जो अंततः उनके लिए नकारात्मक साबित हुआ। यदि, इन दोनों पार्टियों ने चुनाव साथ मिलकर लड़ा होता तो यह संभव था कि बीजेपी की जीत की राह आसान नहीं होती।
कुछ सीटों पर तो कांग्रेस के उम्मीदवारों ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की हार में अहम भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए, जंगपुरा सीट पर आम आदमी पार्टी के मनीष सिसोदिया को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के उम्मीदवार फरहाद सूरी के वोटों ने सिसोदिया की हार में बड़ा योगदान दिया। इसी प्रकार, अन्य कई सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों के वोट आम आदमी पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुए।
बीजेपी ने इस चुनाव में अपनी रणनीति को सही तरीके से लागू किया और विरोधियों की कमजोरियों का फायदा उठाया। पार्टी ने दिल्ली के विकास, कानून व्यवस्था और सुरक्षा जैसे मुद्दों को प्रमुख रूप से उठाया और यही उसके लिए सफल साबित हुआ। इसके अलावा, बीजेपी ने इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच के विभाजन को भुनाया और उन्हें एकजुट न होने का खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को अब यह समझना होगा कि अगर उन्हें दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ अपनी लड़ाई जीतनी है तो उन्हें एकजुट होकर मैदान में उतरना होगा। दिल्ली के मतदाता अब यह समझने लगे हैं कि पार्टी के अंदर एकता और साझेदारी ही बदलाव ला सकती है। अगर, दोनों पार्टियां अपनी सियासी नीतियों में बदलाव नहीं करतीं तो बीजेपी की सत्ता में वापसी रोकना मुश्किल हो सकता है।
कुल मिलाकर, दिल्ली विधानसभा चुनावों के परिणाम यह दर्शाते हैं कि बीजेपी की रणनीति, नेतृत्व और चुनावी मुद्दों को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने में सफलता मिली। वहीं, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की कमजोर रणनीतियों ने उन्हें इस बार सत्ता से दूर कर दिया। यदि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भविष्य में एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरती हैं, तो बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ सकती है। आने वाले समय में दिल्ली की राजनीति में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों दलों के नेता अपनी रणनीति में सुधार करेंगे और दिल्ली की राजनीति में बदलाव ला पाएंगे।