वरिष्ठ पत्रकार आनंद जी के वॉल से
एक सच्ची कहानी..
साल 2022 की शुरुआत में एक नवजात बच्ची झारखंड के एक शहर में कहीं झाड़ियों में पड़ी मिली थी. हाथ-पैर चाकू से काट डाले गये थे और मरा जानकर झाड़ियों में फेंक दिया गया था. आवारा जानवर उसे नोंच खाते, उसके पहले वह देख ली गयी, और उसकी जान बच गयी. उसे एक केंद्र में रखा गया और नाम मिला सुगंधा (परिवर्तित नाम).
उधर विदेश में नौकरी करनेवाला एक युवा भारतीय जोड़ा गोद लेने के लिए एक बच्चा चाह रहा था. उन्होंने भारत सरकार की सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी यानी कारा की वेबसाइट पर आवेदन दिया. दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया ऐसी है कि आपको आवेदन करने के बाद पूरे भारत में कहीं से भी दो बच्चों की जानकारी दी जाती है. बच्चे के रंग-नस्ल आदि के बारे में गोद लेने के इच्छुक दंपति को कुछ नहीं बताया जाता, ताकि उनके मन में कोई पूर्वाग्रह न रहे.
इस युवा दंपति का मन नवजात सुगंधा की तस्वीर ने मोह लिया. दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई. लेकिन इसी बीच भारत सरकार ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में संशोधन कर दिया. दत्तक ग्रहण का आदेश करने का अधिकार संबंधित जिले के परिवार न्यायालय के न्यायाधीश के पास था, लेकिन केंद्र सरकार ने अदालतों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या और जजों पर भारी बोझ के मद्देनजर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में संशोधन कर दत्तक ग्रहण का आदेश देने का अधिकार अब जिला मजिस्ट्रेट अथवा उपायुक्त को सौंप दिया था.
सुगंधा जिस जिले में मिली थी, उस जिले में नवजात लावारिस बच्चों की देखरेख करने वाली सरकारी एजेंसी का लाइसेंस निलंबित था. लिहाजा दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया दूसरे जिले से आरंभ की गयी. इस बीच कानून में संशोधन हो गया. हालांकि संशोधित कानून गजट में नोटिफाई नहीं हुआ था, संबंधित जज साहब ने सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी के पत्र का हवाला देते हुए दत्तक ग्रहण मामलों की सुनवाई करने से इंकार कर दिया. महाधिवक्ता की मार्फ़त हाईकोर्ट को जानकारी दी गयी. हाईकोर्ट ने जिला अदालतों को पत्र लिखकर सुनवाई करने के लिए कहा, लेकिन जज साहब टस से मस नहीं हुए.
इधर बच्ची के नये माता-पिता परेशान थे. वह बच्ची को अपने साथ विदेश ले जाना चाहते थे. वे चाहते थे कि जल्द से जल्द मामले पर आदेश हो और वह अपनी बेटी को अपने साथ रख सकें. लेकिन सुगंधा और उसके माता-पिता के बीच सरकारी कागजों का लंबा सफर और अंतहीन इंतजार बाकी था.
जुलाई महीने में एक मित्र के जरिए यह मामला मेरे पास पहुंचा था. मैंने इस मामले में यथासंभव मदद करने की कोशिश की. लेकिन इन तीन महीनों में हर दिन हर कदम पर एक ऐसी नयी मुश्किल आन पड़ती, जो तमाम परिचय और सिफारिशों के बावजूद दत्तक ग्रहण के इस मामले को और उलझा देती. युवा दम्पति की हताशा हर दिन बढ़ रही थी कि अचानक भारत सरकार ने संशोधित एक्ट को प्रभावी कर दिया और 1 सितंबर 2022 के जिला उपायुक्तों को दत्तक ग्रहण मामलों पर आदेश करने का अधिकार मिल गया.
हम सब खुश थे कि अब सुगंधा और उसके माता-पिता जल्द ही एक दूसरे से मिल पाएंगे, लेकिन तब तक एक और अड़चन आ गई. चाइल्ड केयर एजेंसी निलंबित होने के कारण जिस जिले में सुगंधा की दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया चल रही थी, उस जिले की उपायुक्त ने इसे दूसरे जिले का मामला बताकर सुनवाई करने से इंकार कर दिया. उनकी बहुत मिन्नत-सिफारिश की गयी. उन्हें बताया गया कि दत्तक ग्रहण के लिए अनुमति इसी जिले से मिली है. इसलिए आदेश इस जिले से किया जा सकता है. लेकिन उन्होंने तमाम नियम-कायदों का हवाला देकर आनन-फानन में सुगंधा की फाइल को उसके मूल जिले को वापस कर दिया.
अब सुगंधा के दत्तक माता पिता का सब्र और हौसला दोनों टूटने लगा था. मैंने अपनी कोशिश जारी रखी थी सुगंधा के पिता के मौसेरे भाई बॉलिवुड के एक बड़े नामवाले सिंगर और बेहद प्यारे इंसान हैं. उन्होंने भी कई लोगों को फोन करके कोशिश की, लेकिन हर गुजरता दिन हमारी हताशा को और बढ़ाता जाता. अचानक मुझे आईडिया आया कि अगर वह बड़े गायक सीधे संबंधित उपायुक्त को फोन करें, तो काम बन सकता है. मैंने यह सलाह सुगंधा के भावी माता-पिता को दी. उन्होंने अपने मौसेरे भाई को उपायुक्त से बात करने को कहा. उन्होंने बात की और बात बन गयी. उपायुक्त महोदय मान गये.
उपायुक्त और बॉलीवुड के उस प्यारे सिंगर की बात पिछले शनिवार को हुई थी उपायुक्त ने कहा कि वह सोमवार तक हर हाल में आदेश जारी कर देंगे सोमवार को 4 बजे तक आदेश जारी नहीं हुआ, तो हम सब चिंता में पड़े. मैंने उन सिंगर का रेफरेंस लेकर उपायुक्त को एक मैसेज किया. उधर से जवाब आया कि कोई प्रक्रिया बाकी थी, अब उसे बाईपास कर आदेश जारी कर दिया जायेगा. आधे घंटे के बाद व्हाट्सएप पर उपायुक्त महोदय ने आदेश की कॉपी भेज दी. परिवार में उल्लास छा गया. मैंने उन सेलेब्रिटी सिंगर को आदेश की कॉपी भेजी और कहा कि उपायुक्त महोदय को तत्काल धन्यवाद दें. वह एक शो के सिलसिले में कल न्यूयॉर्क में थे. उन्होंने उपायुक्त महोदय को फोन लगाकर धन्यवाद दिया. उपायुक्त महोदय भी उन सेलिब्रिटी की विनम्रता और मृदु व्यवहार के बहुत कायल हुए और हमने भी उन उपायुक्त महोदय की त्वरित प्रतिक्रिया पर उनका आभार जताया.
जिस बच्ची को उसके जन्म देनेवालों ने हाथ- पैर काटकर मरा जानकर झाड़ियों में फेंक दिया था, वह दिवाली के बाद अपने नये माता-पिता के साथ एक नयी जिंदगी शुरू करने विदेश चली जाएगी. इस माता-पिता ने उसे जन्म नहीं दिया है, लेकिन बच्ची को पाने के लिए जो इनकी जो तड़प मैंने देखी है, उसका एक हिस्सा भी इसके असली माता-पिता ने दिखाया होता, तो उसे पैदा होते ही लावारिस मरने को नहीं छोड़ जाते.
लेकिन जिंदगी ऐसे ही अजब संयोगों से भरी पड़ी है. हर शिशु पैदा होने के साथ अपनी किस्मत लेकर आता है. हम-आप न तो उसकी जिंदगी का फैसला करनेवाले कोई होते हैं और न ही उसकी कोमल हथेलियों की नन्हीं लकीरों में छिपी किस्मत को पढ़ पाना हमारे वश की बात है. हम बस नन्हीं सुगंधा और उसके प्यारे माता-पिता को शुभकामनाएं ही दे सकते हैं.