क्या बीजेपी में ब्रांड मोदी ही सबकुछ है ?
देवानंद सिंह
केंद्र सरकार के मंत्रियों में सबसे शानदार प्रदर्शन करने वाले मंत्री नितिन गडकरी को पार्टी के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से बाहर कर दिया गया है। उनके साथ-साथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन को भी पार्टी के संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति की नई सूची में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ही सीनियर नेताओं के रूप में शामिल रह गए हैं। इन सभी नेताओं को मोदी के विशेष समर्थक के रूप में देखा जाता है, जो नए चेहरे शामिल किए गए हैं, उनमें बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के. लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जाटिया और बीएल संतोष (सचिव) शामिल हैं। हरियाणा की सुधा यादव को संसदीय बोर्ड में लाकर महिला सदस्य के रूप में सुषमा स्वराज की कमी दूर करने की कोशिश की गई है तो सत्यनारायण जाटिया को लाकर अनुभव को साथ रखने की कोशिश की गई है। वे पहले भी पार्टी की टॉप इकाई के सदस्य रह चुके हैं। येदियुरप्पा को टॉप बॉडी में लाकर प्रदेश की राजनीति में पार्टी के अंदर की गुटबाजी को संभालने की कोशिश और दक्षिण भारत को संसदीय बोर्ड में जगह देने की कोशिश की गई है।
भाजपा की नई घोषित चुनाव समिति में पार्टी के संसदीय बोर्ड के सदस्यों के अलावा चार अन्य सदस्यों भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फड़नवीस, ओम माथुर और श्रीमती वनथी श्रीनिवासन (पदेन) को भी स्थान दिया गया है। भूपेंद्र यादव को केंद्रीय नेताओं का विश्वस्त होने का लाभ मिला है। देवेंद्र फड़नवीस को महाराष्ट्र में सत्ता पलट होने के बाद भी मुख्यमंत्री पद न दिए जाने की भऱपाई के रूप में उन्हें पार्टी की चुनाव समिति में जगह दी गई है। बता दें कि
भाजपा के दिग्गज नेताओं अरूण जेटली, सुषमा स्वराज और अनंत कुमार के निधन के कारण संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में लंबे समय से पद रिक्त थे, जिन्हें इन नई नियुक्तियों के सहारे भरा गया है। उनके अलावा वेंकैया नाय़डू को उपराष्ट्रति बनाने के कारण और थावरचंद गहलोत के राज्यपाल बनने के कारण भी पद रिक्त हो गया था। सात नए लोगों को लाकर इस कमी को भरने की पूरी कोशिश की गई है।
बीजेपी के अंदर इस बदलाव को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जाहिर तौर पर यह सवाल हर तरफ उठ रहा है कि क्या अब बीजेपी ब्रांड मोदी ही सबकुछ रह गया है ? क्या अब सरकार में अच्छे काम करने वालों को कोई जरूरत नहीं रह गई है ? एक मंत्री के तौर पर नितिन गडकरी के काम की विरोधी भी सराहना करते हैं। इसके अलावा उनके साथ एक और महत्वपूर्ण फैक्टर यह है कि वह संघ के भी बेहद करीबी हैं, इसके बाद भी उन्हें इतने महत्वपूर्ण बोर्ड से कैसे हटा दिया गया ? क्या यह कोई गेम प्लान का हिस्सा था ? बीजेपी के अंदर इस बदलाव के बहुत सारे मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि, भाजपा के अनुसार, उसने इसे सामाजिक और क्षेत्रीय रूप से अधिक प्रतिनिधित्व वाला बना दिया है।
जहां तक नितिन ग़डकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे दिग्गज नेताओं को संसदीय बोर्ड से हटाने का निर्णय है, वह बहुत चौंकाने वाला निर्णय है। इसे पार्टी के अंदर तेज हो रहे घमासान के रूप में देखा जा रहा है। पार्लियामेंट्री बोर्ड भाजपा की सबसे ताकतवर इकाई मानी जाती है, जो किसी मामले पर पार्टी की ओर से अंतिम निर्णय करती है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था केंद्रीय संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी का बाहर होना भाजपा की भावी रणनीति से तो जुड़ा है। यह फैसला पार्टी के अंदरूनी घटनाक्रमों को भी प्रभावित करने वाला है। नया घटनाक्रम पार्टी के भीतर उनके राजनीतिक वजूद को तो प्रभावित करेगा ही, साथ ही उनकी चुनावी राजनीति पर भी असर डालेगा।
अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं गडकरी
नितिन गडकरी अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं और राजनीति को लेकर उनकी अपनी अलग सोच भी जगजाहिर होती रही है। हाल में उन्होंने एक कार्यक्रम में मौजूदा राजनीति पर सवाल खड़े किए थे और संकेत दिए थे कि अब राजनीति उनके लिए बहुत ज्यादा रुचिकर नहीं है। हालांकि, गडकरी को भाजपा संगठन में कई बदलाव के लिए भी जाना जाता है। अपनी अलग शैली के कारण कई बार वह सबके साथ समन्वय बनाने में सफल भी नहीं रहे। मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में उनकी भूमिका की सबसे ज्यादा सराहना की गई। देशभर में फैले राष्ट्रीय राजमार्गों के जाल को लेकर गडकरी की तारीफ उनके विरोधी भी करते हैं, लेकिन पार्टी के अंदरूनी समीकरणों में उनकी दिक्कतें बनी रहीं।
केंद्रीय नेतृत्व ने नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल नहीं कर एक बड़ा संदेश दिया है कि पार्टी व्यक्ति के बजाय विचारधारा पर केंद्रित है। इसके विस्तार में जो भी जरूरी होगा वह किया जाएगा। इसके पहले पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल गठित कर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को पार्टी की सक्रिय राजनीति से अलग कर उसमें शामिल किया था। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि मोदी सरकार ने जिस तरह से विचारधारा के एजेंडे को बीते सालों में तेजी से लागू किया, इसका असर सरकार से लेकर संगठन तक देखने को मिला है। इसमें किसी एक नेता की बात न की जाए तो व्यक्ति की वजह विचारधारा ही हावी दिखी।
प्रभावित होगी महाराष्ट्र की सियासत
नितिन गडकरी को हटाने से महाराष्ट्र की राजनीति में भी असर पड़ेगा। पार्टी में गडकरी की जगह उनके ही गृह नगर नागपुर से आने वाले देवेंद्र फडणवीस का कद बढ़ा है। हाल में जब शिवसेना के बागी गुट के साथ भाजपा ने राज्य में सरकार बनाई थी, तब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने उनको उप मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी किया। अब केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल कर पार्टी ने उनके कद को बड़ा किया है।
संघ के करीबी हैं दोनों
गडकरी और फडणवीस दोनों ही आरएसएस के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिया गया कोई भी फैसला में संघ की सहमति भी शामिल होगी। हाल में हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने अपने संगठन को अगले 25 सालों की जरूरतों के मुताबिक तैयार करने का आह्वान किया था। उसमें नए नेताओं को भी आगे बढ़ाना है। यही वजह है कि भूपेंद्र यादव और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं को पार्टी में काफी महत्व दिया गया है।
पीएम मोदी से अलग रुख रखते हैं गडकरी
दरअसल, नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अलग रूख रंखने वाला नेता माना जाता रहा है। वे अलग-अलग अवसरों पर पीएम से अलग रूख रखने के लिए भी जाने जाते रहे हैं। कई बार उनके पीएम से मतभेद होने की खबरें भी सामने आई थीं। हालांकि, पार्टी के किसी भी स्तर से इन खबरों की कभी पुष्टि नहीं की गई। स्वयं नितिन गडकरी ने भी कभी इन मामलों पर खुलकर अपना पक्ष नहीं रखा, लेकिन माना जाता है कि कभी स्वयं को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद की रेस में मानने वाले नितिन गडकरी पीएम से कई मायनों में अलग रूख रखते हैं। संसदीय बोर्ड से उनकी छुट्टी को उनकी बेबाक बयानी की सजा के तौर पर देखा जा रहा है।
चूंकि, पार्टी की सबसे ताकतवर इकाई संसदीय बोर्ड में पार्टी के सभी पूर्व अध्यक्षों को रखे जाने की परंपरा लंबे समय से बनी हुई थी, और नितिन गडकरी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं, लिहाजा उन्हें संसदीय बोर्ड से हटाने को और ज्यादा नकारात्मक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। इसके पहले केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्रियों रविशंकर प्रसाद, डॉ. हर्षवर्धन और प्रकाश जावड़ेकर की मंत्रिपद से छुट्टी को बड़ा चौंकाने वाला फैसला माना गया था।
पार्टी की 2024 पर निगाहें
दरअसल, भाजपा की निगाहें 2024 के लोकसभा चुनावों पर टिकी हैं और इसी के मद्देनजर वह संगठनात्मक मुद्दों एवं उभरती राजनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी कई प्रदेश इकाइयों में अहम पदों पर बदलाव जारी रख सकती है। पहली बार, गैर-उच्च जातियां बोर्ड में बहुमत में हैं, क्योंकि पार्टी समाज के पारंपरिक रूप से कमजोर और पिछड़े वर्गों तक अपनी पहुंच जारी रखे हुए है। इससे पहले, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कई राज्यों में बदलाव किए थे और अब वह अपनी उत्तर प्रदेश इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है और बिहार में कुछ नए चेहरों को ला सकती है, जहां जनता दल (यूनाइटेड) (जद-यू) ने अपनी पारंपरिक सहयोगी भाजपा का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद)-कांग्रेस-वाम गठबंधन से हाथ मिला लिया।
बता दें कि पिछले कुछ हफ्तों में भाजपा ने महाराष्ट्र, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति की है और उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों में फेरबदल किया है। सत्तारूढ़ दल ने 2019 में इनमें से अधिकतर राज्यों में जबरदस्त बढ़त हासिल की थी और पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में भी लाभ हासिल किया था।
सामाजिक और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व पर जोर
बीजेपी ने जी तरह बदलाव किया है, उससे साफ जाहिर होता है कि पार्टी ने संसदीय बोर्ड में यह बदलाव अधिक सामाजिक और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व पर जोर देने के लिहाज से किया है। भारतीय जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड में पहली बार किसी सिख को भी जगह दी गई। बीजेपी ने पूर्व आईपीएस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा को अल्पसंख्यक समुदायक के प्रतिनिधि के तौर पर बोर्ड में शामिल किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री शहनवाज हुसैन और जुआल ओरान को इससे हटा दिया है। बता दें कि बीजेपी के संसदीय बोर्ड के सदस्य सीईसी के भी सदस्य होते हैं।
नई व्यवस्था में किसी भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्री को इस टॉप बॉडी में जगह नहीं मिली है, जबकि इसके पहले कई मुख्यमंत्री संसदीय बोर्ड का हिस्सा रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी भविष्य के बड़े नेता के रूप में उभारने को लेकर उनका पार्टी में कद बढ़ाए जाने की चर्चा चल रही थी, लेकिन नई सूची ने इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया है।
कुल मिलाकर देखें तो बीजेपी की यह बदलती स्थिति बहुत कुछ बयान करती है, क्योंकि जिस स्वरूप में पार्टी के अंदर में बदलाव दिख रहे हैं, उसमें यही बात स्पष्ट होती है कि एक तो पार्टी एक सामूहिक निर्णय से दूर है। बस ब्रांड मोदी जो निर्णय ले ले, वही सबसे महत्वपूर्ण है और दूसरा पार्टी किसी भी रूप में सत्ता में रहना चाहती है, उसे पार्टी के अंदर उन चेहरों से कोई लेना-देना नहीं, जिनकी एक विशेष छवि रही है, और दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जो ब्रांड मोदी से अलग विचारधारा रखेगा, उसे किसी तरह अलग रखा जाएगा और नितिन गडकरी के साथ यही कोशिश की गई है, उसके बाद भी यह स्थिति है, जब वह संघ के बहुत करीब हैं।