नई दिल्ली। कोरोना के मामले बढ़ने से जहां एक तरफ लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है, वहीं, दूसरी तरफ कोरोना से मौतों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट पर विवाद खड़ा हो गया है। इसको लेकर बकायदा भारत ने एक आपत्ति दर्ज करवा दी है। जिसमें साफ किया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी इसी तरह का संकेत दिया है। उन्होंने इसको लेकर तीन बड़े कारण बताए गाय हैं। उनके मुताबिक भारत में जन्म-मृत्यु के आंकड़े दर्ज करने का व्यवस्थित तरीका है, जिसमें कोविड के अलावा हर तरह की मौत के आंकड़े दर्ज होते हैं, जबकि इस आंकड़े का इस्तेमाल ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नहीं किया है। उन्होंने दूसरा कारण बताते हुए कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन
ने जो आंकड़े जमा किये हैं, जो विश्वसनीय नहीं हैं, वो कहीं से भी उठा लिये गये हैं, यानि अपुष्ट स्रोतों से भी। मीडिया रिपोर्ट्स से या किसी और स्रोत से, जो अवैज्ञानिक तरीके से जमा किये गये। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वहां से आंकड़े ले लिये, जिन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा डॉक्टर गुलेरिया ने कोरोना मौत के बाद परिवारों को दिए मुआवजे का मुद्दा भी उठाया है। उनका मानना है कि अगर, इतने लोगों की मौत हुई होती तो उनके परिवार सरकार से आर्थिक सहायता जरूर मांगते। उनका कहना है कि भारत ने कोविड से जान गंवाने वालों के परिवारों को सरकार ने मुआवजे का प्रावधान किया है। अगर, इतनी मौतें हुई होतीं तो वो रिकॉर्ड होता। जान गंवाने वाले परिवार के लोग मुआवजे के लिए आगे आते, इसलिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। बता दें कि इससे पहले नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को सही नहीं माना था। उन्होंने कहा था कि जब पहले से ही भारत के पास कोरोना से हुईं मौतों का आंकड़ा मौजूद है, ऐसी स्थिति में उस मॉडल को तवज्जो नहीं दी जा सकती, जहां पर सिर्फ अनुमान के मुताबिक आंकड़े जारी किए गए हों। कोरोना के मामले बढ़ने से जहां एक तरफ लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है, वहीं, दूसरी तरफ कोरोना से मौतों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट पर विवाद खड़ा हो गया है। इसको लेकर बकायदा भारत ने एक आपत्ति दर्ज करवा दी है। जिसमें साफ किया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी इसी तरह का संकेत दिया है। उन्होंने इसको लेकर तीन बड़े कारण बताए गाय हैं। उनके मुताबिक भारत में जन्म-मृत्यु के आंकड़े दर्ज करने का व्यवस्थित तरीका है, जिसमें कोविड के अलावा हर तरह की मौत के आंकड़े दर्ज होते हैं, जबकि इस आंकड़े का इस्तेमाल ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नहीं किया है। उन्होंने दूसरा कारण बताते हुए कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो आंकड़े जमा किये हैं, जो विश्वसनीय नहीं हैं, वो कहीं से भी उठा लिये गये हैं, यानि अपुष्ट स्रोतों से भी। मीडिया रिपोर्ट्स से या किसी और स्रोत से, जो अवैज्ञानिक तरीके से जमा किये गये। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वहां से आंकड़े ले लिये, जिन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा डॉक्टर गुलेरिया ने कोरोना मौत के बाद परिवारों को दिए मुआवजे का मुद्दा भी उठाया है। उनका मानना है कि अगर, इतने लोगों की मौत हुई होती तो उनके परिवार सरकार से आर्थिक सहायता जरूर मांगते। उनका कहना है कि भारत ने कोविड से जान गंवाने वालों के परिवारों को सरकार ने मुआवजे का प्रावधान किया है। अगर, इतनी मौतें हुई होतीं तो वो रिकॉर्ड होता। जान गंवाने वाले परिवार के लोग मुआवजे के लिए आगे आते, इसलिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। बता दें कि इससे पहले नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को सही नहीं माना था। उन्होंने कहा था कि जब पहले से ही भारत के पास कोरोना से हुईं मौतों का आंकड़ा मौजूद है, ऐसी स्थिति में उस मॉडल को तवज्जो नहीं दी जा सकती, जहां पर सिर्फ अनुमान के मुताबिक आंकड़े जारी किए गए हों।