रमजान के पहले अशरे में बरसती है खुदा की रहमत – सहायक अध्यापक नियामुल हक
संवाददाता/जामताड़ा
कुंडहित : मुकद्दस रमजान के महीने में पहले रोजे से दसवें रोजे तक पहला अशरा (दस दिन) होता है। पहले अशरे को रहमतों और अजमतों का अशरा कहा जाता है। इस अशरे में पाक परवरदिगार की रहमत बरसती है जिसके चलते रोजेदार रोजे रखकर अल्लाह से रहमतों और अजमतों की दुआएं करते हैं। वैसे तो रमजानुल मुबारक का हर लम्हा अजमतों वाला होता है। इबादतों के महीना रमजानुल मुबारक को को तीन अशरों में बांटा गया है। पहला अशरा रहमत, दूसरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है। रमजान का चांद नजर आते ही शैतान को कैद कर लिया जाता है। वहीं जहन्नुम के दरवाजों को बंद कर जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। इस पाक महीने में सवाब का दर्जा सत्तर गुना अधिक होता है। पहले रोजे से दसवें रोजे तक रमजान का पहला अशरा होता है। इन दस दिनों में अल्लाह की रहमत और बरकतें नाजिल होती हैं। रोजेदार भी रोजे रखकर अल्लाह से बख्शीश की दुआएं करते हैं। इस अशरे में ही अल्लाह गुनाहगारों के गुनाहों को माफ कर अजाब से निजात देते हैं। सहायक अध्यापक नियामुल हक ने बताया पहले रोजे से दसवें रोजे तक रमजान का पहला अशरा होता है। इस अशरे में पाक परवरदिगार की रहमत बरसती है। रमजान के महीने में ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में गुजारना चाहिए और सदका,खैरात, लील्लाह, जकात, देकर गरीब जरूरतमंद असहाय पीड़ित परिवार की मदद करना चाहिए।