राष्ट्र संवाद नजरिया : क्या पंजाब कांग्रेस की गुटबाजी के बीच टिक पाएंगे चरणजीत सिंह चन्नी ?
देवानंद सिंह
चरणजीत सिंह चन्नी ने पंजाब के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है। जितने आश्चर्यजनक तरीके से उनका नाम सामने आया, उतना ही आश्चर्य उनके भविष्य को लेकर भी जताया जा रहा है, क्योंकि उन्हें मुख्यमंत्री उन परिस्थितियों में बनाया गया, जब वे ना तो कांग्रेस आलाकमान की पहली पसंद थे और ना ही कांग्रेस विधायक दल ने उनके नाम पर सर्वसम्मति जाहिर की थी, लेकिन पंजाब के पहले दलित सीएम के रूप में उनका चुनाव, कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा सिख बनाम हिंदू सीएम की लॉबिंग के बीच चली उठापटक और हताशा का नतीजा था। भले ही, पार्टी की राज्य की सीनियर लीडरशिप इससे खुश न हो, लेकिन पार्टी के लिए दलित मुख्यमंत्री के नाम पर राजनीति भी करने का मौका मिल गया है। एक तरफ अगले साल पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और जिस तरह के आंकड़े सामने आ रहे हैं, उससे पता चलता है कि राज्य में लगभग 32 फीसदी दलित आबादी है, ऐसे में पार्टी हाईकमान का फैसला जहां एक तरफ दलित वोट बैंक के मामले में बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए कारगर हथियार साबित होगा, वहीं बीजेपी शासित राज्यों में एक भी दलित मुख्यमंत्री नहीं होने पर कांग्रेस के पास पंजाब के अलावा अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी को घेरने के लिए एक मजबूत मुद्दा रहेगा। इस मुद्दे पर अभी से राजनीति तेज हो गई है। विपक्ष भी चन्नी के सिर्फ चुनावों तक मुख्यमंत्री होने की बात कहकर कांग्रेस पर लगातार सवाल उठा रहा है। पर कांग्रेस द्वारा दलित मुख्यमंत्री का चयन उसको चुनावों में फायदा तो देगा ही, इसीलिए इसे कांग्रेस का ठोस राजनीतिक निर्णय कहें तो इसमें कोई बुराई नहीं। अन्य सभी विपक्षी दल भी समुदाय को लुभाने की कोशिश करते रहे हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन किया है और ऐलान किया है कि सत्ता में आए तो दलित को उपमुख्यमंत्री बनाएंगे। वहीं, आम आदमी पार्टी को भी दलित वोट बैंक का सहारा है। बीजेपी ने भी राज्य में सत्ता मिलने पर दलित को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है। ऐसे में, जहां अन्य सभी दल घोषणा कर रहे हैं कि 2022 में सरकार बनाने पर दलितों को महत्वपूर्ण पद दिए जाएंगे, कांग्रेस पहले ही ऐसा कर चुकी है। जिसका उसे चुनावों में भरपूर फायदा मिल सकता है। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चन्नी का सफर केवल चुनावों तक ही रहेगा या फिर वह आगे भी मुख्यमंत्री रहेंगे ? जिस तरह पंजाब कांग्रेस में गुटबाजी चल रही है और पार्टी के बहुत सारे नेता स्वयं को मुख्यमंत्री का दावेदार मानते हैं, ऐसे में कांग्रेस के अंदर घमासान न हो, इससे बिलकुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। चाहे आप नवजोत सिंह सिद्धू को ले लें, जाखड़ को ले लें, रंधावा को ले लें और प्रताप सिंह बाजवा को ले लें। पार्टी की केंद्रीय लीडरशिप की तरफ़ से भी अलग अलग चेहरे के लिए लॉबिंग चल रही थी, हर किसी में अपने पसंदीदा चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने की होड़ लगी हुई थी और पार्टी हाईकमान चाहता था कि पितृ पक्ष से पहले ही नया मुख्यमंत्री शपथ ले ले। लिहाजा, न चाहते हुए भी चन्नी के नाम पर मुहर लगाई गई, क्योंकि दलित चेहरा होने की वजह से विरोध की बहुत कम गुंजाइश राज्य के मजबूत चेहरों की तरफ से लग रही थी। हुआ भी ऐसा ही। यह एक तरह से आगामी चुनावी मुद्दा तो बन जाएगा। पर, देखने वाली बात यह होगी कि चरणजीत सिंह चन्नी पर अगर पार्टी जीतती है तो भरोसा जता पाती है या नहीं। …….