…, इसकी अनदेखी बड़ी घातक होती है!
अजित राय
बहुत ज्यादा दिन नहीं बीते, जब अपने संसदीय क्षेत्र व बाबा विश्वनाथ की नगरी यानी ‘बनारस’ में आयोजित एक जनसभा में, जनता से मुखातिब प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहते हुए- ‘उत्तर प्रदेश’ भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश है और यहां कानून का शासन है। और, यह सब किसी और की नहीं, बल्कि, ‘योगी आदित्यनाथ’ की ही बदौलत संभव हो पाया है, के लिए, योगी जी को बहुत-बहुत बधाई।’, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पीठ थपथपाई थीं। मोदी के मुख से निकले इन शब्दों पर तालियाँ भी कम नहीं बजी थीं। पर, किसके लिए बजी थी, और किस कारण बजी थी,
पर सूत्र कुछ अलग ही बयां करते हैं। सूत्रों की मानें, तो मोदी के इन बातों पर जनसभा में खड़े लोगों में इस बात की फुसफुसाहट होने लगी थी कि या तो मोदी जी को यूपी की शासन प्रणाली की ठीक से जानकारी नहीं है, और न हीं, तो यूपी की सत्ता किसी भी तरह अपने हाथ बनी रहे, के लिए योगी की शासन प्रणाली चाहे जैसी भी हो, सब कुबूल है।
हालांकि, आज के सफर में यूपी में भ्रष्टाचार के किस्म और कितने पर चर्चा करने नहीं जा रहा। पर, हां मुख्यमंत्री ‘योगी जी’ के शासन प्रणाली पर चर्चा करना कहीं ज्यादा उचित जान पड़ता है। क्योंकि, जिस तरीके से भारतीय पुलिस सेवा से संबद्ध पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ‘अमिताभ ठाकुर’ की गिरफ्तारी की गई, को लेकर योगी की शासन प्रणाली सवालों के घेरे में है। सूत्र तो यही बताते हैं कि भले ही जिस भी आरोप के तहत सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी, ‘अमिताभ ठाकुर’ की गिरफ्तार की गई हो, पर सच्चाई तो यही है कि जिस दिन ‘श्री ठाकुर’ ने योगी के खिलाफ चुनावी दंगल में उतरने की घोषणा की थी, उसी दिन से अमिताभ ठाकुर के खिलाफ योगी जी भौंउएं तन गई थीं। हालांकि, यह सूत्रों का तर्क है, से कुछ हद तक सहमत भी हुआ जा सकता है। पर, मेरा तो यही मानना है कि अपराध किसी ने भी किया हो, चाहे आरोपी कितना ही विशिष्ट व्यक्ति क्यों न हो, के खिलाफ कार्रवाई अवश्य की जानी चाहिए। पर, शर्त यही कि कार्रवाई अपराध की श्रेणी का सही विश्लेषण कर, आपराध- न्याय प्रणाली का निष्पक्ष पालन करते हुए हो। और, अगर ऐसा नहीं होता है या किया जाता है, तो किसी भी कार्रवाई/ कार्यवाही की वैधता पर संशय के बादल का मंडराना तय होता है।
यहां यह बताना जरूरी समझता हूं कि किसी भी न्यायप्रिय समाज को, अपने राज्य-शासन से निष्पक्षतापूर्ण और दृढ़तापूर्वक कानून का शासन लागू करते हुए कानून-व्यवस्था कायम करने की अपेक्षा होती है। और अगर, ऐसा होता नजर नहीं आए, तो कानून के शासन की जो चरम स्थितियां हैं, वह वैधता के संकट का शिकार होने लग जाती हैं। और तब, राज्य-शासन की शुचिता के साथ-साथ अपराध-न्याय प्रणाली की निष्पक्षता और प्रभावशीलता भी सवालों के घेरे में आ जाता है।
लेखक अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, पटना