राष्ट्र संवाद नजरिया : कब बंद होगा डॉक्टरों और पैथोलॉजी लैबों का गोरखधंधा ?
देवानंद सिंह
हमारे समाज में डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया गया है। किसी भी मरीज को तब उम्मीद नजर आ जाती है, जब वह डॉक्टर के पास पहुंच जाता है, पर जिस डॉक्टर के पास एक मरीज जाता है, शायद वह कुछ अलग सोचकर चलता है। जो भी मरीज डॉक्टर के पास जाता है, डॉक्टर उसे मरीज से ज्यादा कस्टमर समझने लगता है। यानि जब तक मरीज आता रहेगा, उससे पैसा वसूला जाता रहेगा। खैर, यह खेल केवल डॉक्टर व मरीजों के बीच तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि एक गोरखधंधा बन गया है, आम इंसान को लूटने का। डॉक्टरों के बीच आजकल नया ट्रेंड शुरू हो गया है। यह ट्रेंड है हर चीज का टेस्ट लिखने का। जब भी कोई मरीज डॉक्टर के पास जाता है, सबसे पहले टेस्ट लिख दिया जाता है। एमआरआई, सिटी स्कैन, एक्सरे, बल्ड जांच से लेकर कई अन्य जांचे होती हैं, जो डॉक्टर द्वारा तत्काल ही लिख दी जाती हैं। मरीज टेस्ट कराने पैथोलॉजी लैब जाता है, वहां वह टेस्ट कराकर एक मोटा अमाउंट भरता है। अक्सर, हम लोग देखते हैं, पैथोलॉजी लैब वाले टेस्ट करने से पहले डॉक्टर और हॉस्पिटल का नाम जरूर पूछते हैं। ऐसा क्यों होता है, शायद बहुत सारे मरीज समझ जाते होंगे, लेकिन आम और गरीब इंसान कम ही समझ पाता होगा कि आखिर क्या है इसके पीछे का खेल ? जी हां, यह खेल नहीं पूरा ही गोरखधंधा है। किसी भी डॉक्टर ने अगर टेस्ट लिखा है तो उस टेस्ट में डॉक्टर का अपना कमीशन सेट होता है। एक दिन में डॉक्टर जितने भी टेस्ट लिखता है, शाम को उसका कमीशन का लिफाफा उसकी टेबल पर होता है। शायद, आम इंसान इसे कम ही समझ पाता होगा पर यह व्यवसाय का नया तरीका है, जो हर जगह आम हो चला है। यानि इलाज के नाम पर हर जगह लूट मची हुई है, पर मजे की बात यह है कि इस पर कोई भी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं होता है। क्या ये धंधेबाजों को यह समझने की जरूरत नहीं है कि एक आम इंसान इतना पैसा कहां से लाएगा ? वैसे, आजकल डॉक्टरों की फीस ही इतनी अधिक हो गई है कि वह भी देना मरीज के लिए मुश्किल होता है, उसके बाद शुरू होने वाला टेस्ट का दौर उसके लिए बोझ बन जाता है। क्या इन डॉक्टरों को यह नहीं समझना चाहिए कि टेस्ट के बजाय नॉर्मल दवाइयों से काम चला लिया जाए, जब बहुत जरूरी हो, तभी टेस्ट लिखा जाए ? पर ऐसा नहीं होना बहुत ही चिंताजनक है। डॉक्टरों, पैथोलॉजी लैबों और नर्सिंग होमों का ऐसा कोकस बन गया है कि उसमें मरीज को पिसना ही पिसना है। डॉक्टर न केवल टेस्ट लिखने में बल्कि दावा लिखने में भी यही खेल करते हैं। पैथोलॉजी लैबों, नर्सिंग होमों और दवा कंपनियों से भी उनका कमीशन सेट होता है। शायद, इसके पीछे महंगी होती डॉक्टरी की पढ़ाई भी जिम्मेदार हो। हम सब जानते हैं, डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए छात्रों को लाखों का डोनेशन देना पड़ता है, जब वही छात्र डॉक्टर बनकर बाहर आता है तो वह यह समझने के बजाय कि उसे समाज में भगवान का दर्जा प्राप्त है, वह जल्दी से जल्दी पैसा कमाना चाहता है, जिससे वह डोनेशन के रूप में दिए गए पैसों को वसूल सके। पर उसका यह गोरखधंधा इतने तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि आगे भी चलता रहता है। वह कमीशनखोरी के दलदल में इस तरह फंस जाता है कि वह यह तक भूल जाता है कि आम इंसान उसे भगवान मानता है। वास्तव में, इस पर गंभीरता से सोचने की ही नहीं, बल्कि गंभीरता से एक्शन लेने जरूरत है। इसके लिए मंत्रालयों, स्वास्थ्य विभागों व प्रशासन में बैठे अधिकारियों को जागरूक होना पड़ेगा, तभी आम इंसान को सस्ता इलाज भी मिल पाएगा और डॉक्टरों,पैथोलॉजी लैबों और नर्सिंग होमों का गोरखधंधा भी बंद होगा।
लैब का खुलना कुकुरमुत्ता की तरह जारी है क्या स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए नियमों का पालन किया जाता है?
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