राष्ट्र संवाद नजरिया : सरकार गिराने की ये कैसी साजिश
देवानंद सिंह
झारखंड एक बाद फिर सुर्खियां में आ गया है। ये सुर्खियां इसीलिए कि सरकार को गिराने की बड़ी साजिश का पर्दाफाश हुआ है। इस पूरे घटनाक्रम में जिस तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं, उसने पक्ष और विपक्ष के बीच तकरार को इतना अधिक बढ़ा दिया है कि दोनों तरफ से जमकर जुबानी हमलेबाजी हो रही है। जहां बीजेपी का कहना है कि क्या कांग्रेस की ये हालत हो गई है कि उसके विधायक अब रेहड़ी सब्जी वालों के हाथ बिकने को तैयार हैं। वहीं, कांग्रेस का कहना कि खरीद-फरोख्त कर सरकार को गिराना बीजेपी की पुरानी परंपरा रही है। सत्ता के लिए उसके नेताओं की लार टपक रही है, इसीलिए उसकी तरफ से विधायकों को ऑफर दिए जा रहे हैं।
नि:संकोच मामले का पर्दाफाश होने के बाद ऐसी ही जुबानी हमलों की उम्मीद की जा सकती है। पर सवाल एक ही पक्ष की तरफ नहीं है, बल्कि दोनों ही पक्ष कटघरे में खड़े हैं ? अगर, बीजेपी का दावा है कि वह इस रोल में बिल्कुल भी शामिल नहीं है तो ऑफर कहां से आ रहे थे ? सरकार गिरने की स्थिति में दूसरी सरकार कौन बनाता ? दूसरा, जहां तक कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की बात है, अगर वो ऑफर से प्रभावित नहीं होते तो दिल्ली क्यों जाते ? अगर, उन्हें पैसा मिल जाता तो क्या वे पाला नहीं बदल लेते ? निश्चित तौर पर बदल लेते। विधायक इरफान अंसारी इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी माने जा रहे हैं वास्तव में, यह राजनीति का कैसा मंच है, जनता के सामने कुछ और। अंदरखाने कुछ और। राजनीतिक पार्टियां सत्ता के लिए इतनी चूर कैसी हो जाती हैं। न तो उन्हें राजनीतिक सिद्घांतों की कोई परवाह है और न ही जनता का कोई ध्यान। उन्हें हर हाल में सत्ता में आना है और नोट बटोरने हैं। यह एक नए नवेले राज्य के लिए बहुत अधिक घातक है। जहां नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को राज्य के विकास की तरफ ध्यान देना चाहिए, वहां ऐसे कुकृत्य करने से बचना चाहिए। जब हेमंत सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है। कोरोनाकाल में भी सरकार ने बेहतरीन कार्य किया है। गठबंधन सरकार में रहने के बाद भी मुख्यमंत्री जनहितकारी फैसले लेने में बिल्कुल भी पीछे नहीं रहते हैं, ऐसे में उन्हें जहां समर्थन करना चाहिए, यहां तक कि विपक्ष को भी अच्छे कार्यों में समर्थन करना चाहिए, वहीं न केवल उनकी सरकार में शामिल विधायक बल्कि विपक्ष भी उन्हें कमजोर करने में जुटा हुआ है, जो न तो राजनीति के मैदान की एक अच्छी परिपाटी है और न ही गठबंधन धर्म की। लिहाजा, विधायकों को ये कैसा लालच कि वो गठबंधन धर्म की तिलांजलि देकर बिकने को तैयार हो गए और उन्हें खरीदने की कोशिश करने वालों की भी सत्ता के प्रति ये कैसी लालसा कि उन्हें राजनीतिक मूल्यों तक की परवाह नहीं है।
अब भले ही दोनों खेमे अपने बचाव में उतर गए हों, लेकिन सरकार गिराने की साजिाश में निवारण महतो व अमित सिंह की बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के साथ वाली तस्वीर जब रविवार को सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो उसके बाद कोई संशय बचता ही नहीं है। उस तस्वीर से साफ होता है कि गिरफ्तार किए गए लोगों व आरोपियों के विधायकों के साथ गहरे संबंध हैं। आरोपी अमित सिंह की एक तस्वीर कांग्रेस विधायक नमन विक्सल के सोशल मीडिया पर भी जारी हुई है। विधायक ने भी अमित सिंह से मुलाकात की बात स्वीकार की है। उन्होंने यह भी माना है कि उन्हें बड़ी राशि का ऑफर मिला था। दूसरा, इसी अमित सिंह की भाजपा नेता बाबू लाल मरांडी, विधायक ढुल्लू महतो, बिहार के सांसद जर्नादन सिंह के साथ भी फोटो वायरल हुई। आरोपी निवारण महतो की भाजपा विधायक जेपी भाई पटेल व भाजपा के पूर्व विधायक योगेंद्र महतों बाटुल के साथ ली गई एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर जारी हुई है।
इसीलिए इस बात पर कोई शक नहीं कि हेमंत सरकार को गिराने की स्क्रिप्ट नहीं लिखी जा रही थी। जेल जाने से पहले बोकारो निवासी निवारण प्रसाद महतो ने पुलिस के समक्ष भी खुले तौर पर कई चीजें साफ की हैं। उसने साफतौर पर बताया कि स्थानीय विधायकों को खरीद-फरोख्त और मैनेज कर सदन में वेटिंग कराकर सरकार गिराने की कोशिश की थी, इसमें अमित कुमार सिंह, अभिषेक कुमार दुबे, जयकुमार बेलखेड़े, महाराष्ट्र के विधायक फाइनेंसर और दलाल लोग शामिल थे। इस साजिश को लेकर गिरफ्तार किए गए अभिषेक दुबे ने महाराष्ट्र भाजपा विधायक के तौर पर
चंद्रशेखर राव बाबनकुल और चरण सिंह का नाम लिया है। दरअसल, 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जीते विधायकों की सूची में कामथी विधानसभा सीट से जीत दर्ज करने वाले भाजपा विधायक के तौर पर चंद्रशेखर बावनकुल का नाम है। ऐसे में, चाहे विपक्ष यह कहे कि सरकार पुलिस को टूलकिट के रूप में इस्तेमाल कर रही है। भाजपा नेता बाबू लाल मरांडी ने यह बात स्वयं कही है। उन्होंने यह भी दंभ भरा कि सरकार बदलने पर ऐसे अधिकारियों की जांच की जाएगी, जो सरकार के टूलकिट के रूप में काम कर रहे हैं। विपक्ष के बड़े नेता को इस तरह पुलिस पर सवाल नहीं उठाना चाहिए। अगर, अपने बचाव में वह ऐसा कर रहे हैं तो यह कब तक चलेगा, क्योंकि जांच में सारी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी। लगभग बहुत सी बातें स्पष्ट भी हो गईं हैं कि सरकार गिराने की कोशिश हुई है। लिहाजा, आरोप-प्रत्यारोपों के बीच जांच मायने रखेगी, जिसमें साफ हो ही जाएगा कि कौन सच और कौन झूठ।