Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
      • दैनिक ई-पेपर
      • ई-मैगजीन
      • साप्ताहिक ई-पेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » यह लोकसभा चुनाव नहीं महाभारत है, कौन पांडव और कौन कौरव?
    संवाद विशेष

    यह लोकसभा चुनाव नहीं महाभारत है, कौन पांडव और कौन कौरव?

    Devanand SinghBy Devanand SinghMarch 19, 2019No Comments10 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

    अनिरुद्ध जोशी
    भारत भारत की यह विडंबना रही है कि वह अपनी ही भूमि पर हजारों वर्षों से युद्ध को झेलता रहा है। महाभारत तो हर काल में होती रही है। बस पात्र और परिणाम बदलते रहे हैं। यह भी एक कटु सत्य है कि कभी कौरव जीत गए तो कभी पांडव और कभी ऐसा भी हुआ कि पांडव जीतकर भी हार गए, उस वक्त जब अश्‍वत्थामा ने सोए हुए द्रौपदी के सभी पुत्रों की हत्या कर दी थी और अंत में ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। ऐसे में पांडव सबकुछ खो बैठे थे। आओ 2019 चुनाव के में कौन पांडव और कौन कौरव है यह जानने का प्रयास करते हैं। महाभारत से लेकर राजा दाहिर, पृथ्‍वीराज चौहान, रानी लक्ष्मीबाई और वीर सावरक तक भारतीय मूल्यों और विचारों की लड़ाई चलती रही जो अब तक जारी है। आजादी के आंदोलन के बाद अंग्रेजों की सोची-समझी रणनीति के तहत भारत का विभाजन हुआ और फिर शुरू हुई एक नई महाभारत, जो अभी तक चल रही है। अधिकतर लोग जहां भारत के विभाजन से दुखी थे, वहीं कुछ लोग इस बात से भी दुखी थे कि सत्ता उन लोगों के हाथ में थी जो कि अंग्रेजी और वामपंथी सोच के थे। ऐेसे में भारतीय मुल्यों और विचारों के लिए फिर से एक नया संघर्ष शुरू हुआ। कभी जेपी के आंदोलन, कभी राममनोहर लोहिया के आंदोलन तो कभी डॉ. हेडगवार की विचारधारा के लोगों के आंदोलन के रूप में नए भारत के भीतर भी एक नई महाभारत चलती रही। इस दौरान कई सरकारें बनीं, बिगड़ी और लोग सुखी एवं दुखी होते रहे। इसी वैचारिक संघर्ष में भारत में कई दंगे हुए, जातिवादी संघर्ष बड़ा, जातिवाद की राजनीति बढ़ी, सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठ और अलगाववाद का एक नया अध्याय शुरू हुआ। इस बीच अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने राष्ट्रवादी विचारों का सत्ताम में आगाज कर दिया था लेकिन यह एक आश्चर्य ही था कि सभी संघर्षों के बीच से धूमकेतु की तरह निकलकर एक आदमी आज सत्ता के शीर्ष पर बैठ गया जिसका नाम है नरेंद्र दामोदरराव मोदी। यह दक्षिणपंथी या कहना चाहिए कि राष्ट्रवादी सोच की पहली ऐसी बड़ी जीत थी जिसे हिन्दुत्व की जीत कहा गया। रामराज्य के आगमन की घोषणा की गई। सचमुच ही 2014 का लोकसभा चुनाव किसी महाभारत से कम नहीं था। संपूर्ण भारत के विपक्षी दल और वैश्विक शक्तियां सिर्फ एक शख्स को सत्ता में आने से रोकने में लग गई थी। नई पार्टियां बनी, नए नेताओं का जन्म हुआ। दल बदले जाने लगे, आरोप और प्रत्यारोप के साथ ही षड़यंत्रों का दौर चला। नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने साथ छोड़ दिया। लालकृष्ण आठवाणी को हाशिये पर धकेल दिया गया। बहुत से तबकों में घबराहट थी कि न जाने अब क्या होगा यदि यह आदमी देश का प्रधानमंत्री बन गया तो? लोगों में आशंका के साथ ही उत्साह भी था। बहुत समय बाद ऐसा चुनाव हुआ था जिसके परिणाम को लेकिन विश्वभर के न्यूज चैनलों की नजर लगी हुई थी।और जब परिणाम आए तो भारत के इतिहास ने फिर करवट ली। यह करवट कोई छोटी-मोटी करवट नहीं थी। यह बहुत ही उथल-पुथल भरी करवट थी। इससे महाभारत खत्म नहीं हुई बल्कि महाभारत का विस्तार हो गया। आरोप-प्रत्यारोप और षड़यंत्रों का नया दौर चला। नोटबंदी और जीएसटी के बीच चीन और पाकिस्तान की सीमा पर कोहराम मचने लगा। कश्मीर में नया दौरा शुरू हो गया। लोकसभा 2014 जीतने के बाद एक और जहां भाजपा ने अन्य कई नए राज्यों पर फतह हासिल की, वहीं उसके हाथ से राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जाते रहे। इस बीच नीतीश कुमार पुन: एनडीए में लौट आए जिसके चलते समूचे विपक्ष में हड़कंप मच गया। इस घबराहट भरी हड़कंप ने विपक्ष को कुछ हद तक जहां एकजुट किया, वहीं राहुल गांधी ने खुद को एक परिपक्व नेता बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और वे अंत: कांग्रेस अध्यक्ष बन गए।इस बीच ऐसी कई घटनाएं हुई जिसके चलते विश्‍वपटल पर भारत का नाम चमका। चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों सहित आतंकवादी गतिविधियां बड़ गई। पड़ोसी देशों में हलचल और कोहराम मचने लगा। आग, भूकंप, भयानक बाढ़, दुर्घटना और एयर स्ट्राइक तक चरम को छूने वाली घटनाओं का दौर शुरू हो गया। अब एक अकेला शख्स दो-दो मोर्चों पर लड़ रहा था। समचमुच नरेंद्र दामोदरराव मोदी के पांच साल में से एक भी ऐसा महीना नहीं रहा होगा जबकि लोगों ने टीवी पर कोई रोचक, रोमांचक या धमाकेदार खबर नहीं सुनी हो। इससे पहले के 10 साल के शासन में घोटाले और महंगाई की ही गूंज टीवी चैनलों पर होती थी।सभी झंझावतों से निकलके के बाद अब लो आ गया वह समय जबकि अब यह तय होना है कि नरेंद्र दामोदरराव मोदी का कार्यकाल सही था या गलत। इस बार के लोकसभा चुनाव भी 2014 के लोकसभा चुनाव से कम नहीं है। कहना चाहिए कि यही असली महाभारत का चुनाव है। अब जनता को तय करना है कि कौन कौरव और कौन पांडव है। क्या मोदी ने कौरवों से सत्ता छीली थी? क्या पांडवों से मोदी ने सत्ता छीन ली है? इस सवाल का जवाब ढूंढना होगा। आओ ढूंढते हैं।बहुत से अखबारों ने तो यह टैग चला रखा है #2019-महाभारत, #महाभारत-2019 । आप यूट्यबू पर जाएं और सर्च करेंगे तो पता चलेगा की कोई मोदी और उनकी टीम को पांडव बता रहा है तो कोई राहुल और उनकी टीम को। 2019 का महाभारत देखना बहुत ही रोचक होगा।अरविंद केजरीवाल की जंतर-मं‍तर पर आयोजित एक रैली में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएमा) नेता सीताराम येचुरी ने महाभारत के किरदारों की तुलना बीजेपी नेताओं से की थी। उन्होंने कहा, “100 कौरवों में से लोग केवल दुर्योधन व दुशासन को ही जानते हैं। इसी तरह बीजेपी में से हम केवल (नरेंद्र) मोदी और (अमित) शाह को ही जानते हैं।” आरएसएस पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, “वे महाभारत की राजनीति कर रहे हैं। बीजेपी की राजनीति दुशासन की राजनीति है। राष्ट्र को बचाने के लिए इस महाभारत के शकुनी मामा को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए, जो कि नागपुर में बैठे हैं।”इस रैली में हिस्सा लेने वालों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सीपीआई के डी. राजा, एनसीपी के शरद पवार, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, डीएमके नेता कनिमोई और समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव शामिल थे।महागठबंधन के 22-23 दलों में लगभग 100 प्रमुख नेता हैं जो कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट हुए हैं। महाभारत के युद्ध के पहले दाशराज्ञ का युद्ध हुआ था। इसमें एक अकेले राजा सुदास के खिलाफ 10 राजाओं ने गठबंधन बनाकर युद्ध लड़ा था। लेकिन इस युद्ध में राजा सुदास की ही जीत हुई थी।

    महागठबंधन के दल एक-दूसरे के साथ नहीं-
    महागठबंधन भी अजीब तरह का बना है क्योंकि यह सभी दल भाजपा को रोकने के लिए निकले हैं लेकिन आपस में भी एक दूसरे को रोकने में लगे हैं। जैसे कि महाभारत में शल्य तो पांडवों के मामा थे लेकिन उन्होंने कौरवों की ओर से लड़ाई-लड़ते हुए पांडवों को ही फायदा पहुंचाया था। इसी तरह महागठबंध में शामिल ऐसे कई दल या नेता है जोकि अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को ही फायदा पहुंचाएंगे। यह ना समझे कि यहां महागठबंधन को कौरव दल माना जा रहा है। दरअसल, भाजपा और उसके गठबंधन में भी कमोबेश यही स्थिति है। उस दल में भी शल्य मौजूद है। खैर…

    महागठबंधन में शामिल मायावती भाजपा के साथ ही कांग्रेस को भी रोकना चाहती है। लेफ्ट (वामपंथी) भी कांग्रेस से गठबंधन करके भाजपा के साथ ही उस तृणमूल कांग्रेस को भी रोकना चाहता है जो कि भाजपा के विरुद्ध बने अनधिकृत महागठबंधन में शामिल है। दूसरी ओर कांग्रेस भाजपा के अलावा उस आम आदमी पार्टी को भी रोकना चाहती है जोकि मोदी के खिलाफ महागठबंधन में शामिल है। यह बहुत ही अजीब और रोचक है कि एक बड़े महाभारत के भीतर ही दब कई छोटी-छोटी महाभारत भी होगी। शायद इसी लिए हमारे प्रधानमंत्री ने इसे महामिलावटी गठबंधन कहा होगा।

    महाभारत की तरह तटस्थ दल-
    दूसरी ओर कई पार्टियां ऐसी है जो कि न कांग्रेस के साथ है और न बीजेपी के साथ। जैसे नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, चंद्रशेखर राव की टीआरएस आदि। यह उसी तरह है जैसा कि महाभारत युद्ध में विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने हिस्सा नहीं लेकर तटस्थ रहे।

    छल, कटप और झूठ-
    महाभारत युद्ध में जिस तरह छल, कटप और झूठ का सहारा लिया गया था उसी तरह महाभारत-2019 में भी लिया जा रहा है। अभिमन्यु को जब चक्रव्यू में घेरकर नियम के विरूद्ध मार दिया गया था तब श्रीकृष्ण ने मान लिया था कि अब जबकि विरोधी पक्ष ने नियम तोड़ ही दिया है तो हम भी कोई नियम नहीं मानेंगे। ऐसे में फिर द्रोण, कर्ण, जयद्रथ और भीष्म सभी महारथियों को एक-एक करके मरना पड़ा था। आज की महाभारत में भी इसी तरह का शह और मात का शाही खेल चल रहा है।

    इस बीच एक पक्ष जातियों को अस्त्र-शस्त्र की तरह इस्तेमाल कर रहा है। वही अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति अपनाकर चुनावी गणित साधा जा रहा है। हर दल उस जाति को साधना चाहता है जिसके पास अधिक संख्‍याबदल है। जैसे दुर्योधन ने शल्य, कलिंग, मगथ और काम्बोज आदि अन्य राजाओं को इसलिए साधा था क्योंकि उनके पास सैन्यबल अधिक था। यहां एक मजेदार बात यह भी है कि किसी भी जाति के वोट का बंटवारा कर देने के लिए जातिवादी दल बनाकर मैदान में उतारे गए हैं। इन दलों का काम में बस वोट काटना। कहते हैं कि यह बड़ी पार्टियों को फायदा पहुंचाने के लिए काम करते हैं।

    अपने होकर भी पराए हो गए और दल-बदलू योद्धा-
    यह भी रोचक है कि महाभारत के युद्ध में शल्य कौरवों की ओर से नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन उन्होंने दुर्योधन को वचन दे दिया था इसलिए मजबूरी में वे शर्त के साथ लड़े थे। शर्त यह थी कि में शरीर से तुम्हारे साथ ही रहूंगा लेकिन मेरी वाणी स्वतंत्र है। वर्तमान में ऐसे कई नेता है जो अपनी ही पार्टी के खिलाफ बोलकर पार्टी को हतोत्साहित करते रहते हैं। शल्य कर्ण के रथी थे और वे पूरे समय अर्जुन की तारीफ करके कर्ण को हतोत्साहित करते रहते थे। ऐसी ही कुछ दल और नेता भी है।

    युयुत्सु तो कौरवों की ओर से थे। वे कौरवों के भाई थे लेकिन उन्होंने चीरहरण के समय कौरवों का विरोध कर पांडवों का साथ दिया था। बाद में जब युद्ध हुआ तो वह ऐन युद्ध के समय युधिष्ठिर के समझाने पर पांडवों के दल में शामिल हो गए थे। इसी तरह ऐसे कई दल है जो चुनाव के पहले एनडीए को छोड़कर महागठबंधन में चले गए जैसे चंद्रबाबू नायडू। दूसरी ओर ऐसे भी कई दल हैं जो यूपीए या महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए जैसे दिवंगत जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके। नीतीश कुमार की पार्टी को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।

    हालांकि ऐसे भी कई लोग हैं जिन्होंने अपने ही पक्ष को नुकसान पहुंचाया और वे अंत में दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो गए। ऐेसे में एक प्रसिद्ध क्रिकेटर और एक अभिनेता का नाम लोग लेते हैं। इस तरह के बहुत से नेता हैं जो यूपीए छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए।

    इस चुनावी महाभारत में भी कई तरह के लाव-लश्कर, ध्वज, शंख और हथियारों के साथ ही छल, कपट, षड़यंत्र और मिथ्‍या प्रचार छुपे हुए हैं। आप इस चुनावी महाभारत की प्रचीनकाल की महाभारत से तुलना कर सकते हैं। इसमें कौरव और पांडव पक्ष को ढूंढा जा सकता है। जब यह तय हो जाए तो आप ढूंढ सकते हैं कि कौन अर्जुन, कर्ण, भीम, दुर्योधन, दुशासन, भीष्म पितामह, जयद्रथ, सहदेव, नुकल, अभिमन्यु, युधिष्ठिर, युयुत्सु, कुन्तिभोज, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, कृतवर्मा और कलिंगराज है। लेकिन यह ढूंढना बहुत ही मुश्किल होगा कि कौन कृष्‍ण है। यह भी तय है कि जिस ओर कृष्ण होंगे जीत उसी की होगी। #महाभारत 2019.

    sabhar

    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleलोजपा के प्रत्याशी तय, 25 को चिराग का नामांकन
    Next Article बिजय खॉ राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस ( इंटक ) दुबारा राष्ट्रीय संगठन सचीव बने

    Related Posts

    ऑपरेशन सिंदूर की पूरी कहानी सेना की जुबानी

    May 7, 2025

    ऑपरेशन सिंदूर:भारत ने लिया पहलगाम आतंकी हमले का बदला, पाकिस्तान, पीओके में नौ आतंकी ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई

    May 7, 2025

    अपने बड़बोले मंत्री पर आखिर क्यों चुप्पी साधे है कांग्रेस हाईकमान ?

    May 7, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    अभी-अभी

    सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स जमशेदपुर की 75वीं वर्षगांठ और प्लेटिनम जुबली जयंती को चेंबर के सदस्यों के द्वारा तैयारी जोर-जोर से

    सड़क हादसे के शिकार लोगों को अब डेढ़ लाख तक का मिलेगा निशुल्क इलाज, स्वास्थ्य विभाग ने सभी CMHO को दिए ये निर्देश

    मकान तोड़ने की धमकी, पुलिस से की शिकायत

    ज्योति मल्होत्रा : बेगुनाह या गद्दार?

    सड़क दुर्घटना में मृतकों के परिजनों को दी गई आर्थिक सहायता

    जिला स्तरीय संविधान बचाओ रैली में प्रदेश प्रभारी के राजू, प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश, वरिष्ठ नेता संबोधित करेंगे – आनन्द बिहारी दुबे

    कांग्रेस प्रवक्ताओं से खरगे की अपील : जाति जनगणना का विषय जनता के बीच ले जाएं

    झारखंड में अगले कुछ दिन आंधी-तूफान और बारिश का अनुमान

    अरुणाचल प्रदेश की राज्य स्तरीय टीम ने बहरागोड़ा प्रखंड के पाथरा पंचायत का किया भ्रमण, भारत सरकार द्वारा सुपोषित ग्राम पंचायत के रूप में किया गया है चयनित

    दुष्कर्म का आरोपी युवक 12 घंटे के अंदर पुलिस के शिकंजे में 

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.