जागतिक क्षेत्र में प्रमा संवृद्धि, मानसिक क्षेत्र में प्रमा ऋद्धि एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रमा सिद्धि की अत्यंत आवश्यकता है
प्रमा है भारसामय या संतुलन जिसे गुण ,त्रिकोण एवं लोक त्रिकोण द्वारा समझा जा सकता है
जमशेदपुर 16 जुलाई 2021
जमशेदपुर, एवं आसपास के लगभग 4,000 से भी ज्यादा आनंद मार्गी घर बैठे ही वेब टेलीकास्ट से मोबाइल, लैपटॉप एवं अन्य माध्यमों से भी सेमिनार का आनंद लिया
आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय, द्वितीय चरण प्रथम संभागीय सेमिनार के प्रथम दिन के अवसर पर आनंद मार्ग के वरिष्ठ आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने *प्रमा (भारसाम्य, गति साम्य, शक्ति साम्य या संतुलन)* विषय पर ऑनलाइन क्लास में बोलते हुए कहा कि प्रमा है भारसामय या संतुलन जिसे गुण त्रिकोण एवं लोक त्रिकोण द्वारा समझा जा सकता है। गुणत्रिकोण है सतोगुण का रजोगुण में, रजोगुण का तमोगुण में और तमोगुण का रजोगुण में सीमाहीन रूप में रूपांतरित होते हुए चलना और लोकत्रिकोण है जागतिक मानसिक एवं अध्यात्मिक में भार सामने कायम होना । मनुष्य अब तक भौतिक ,मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रमा त्रिकोण स्थापित करने में असफल रहा है। तीनों स्तरों में प्रमा के अभाव के अलग-अलग परिणाम देखने को मिलते हैं । भौतिक क्षेत्र में प्रमा के अभाव का परिणाम है – चरम दारिद्र्य, शिल्प तथा कृषि में अनग्रसरता का अभाव, वस्त्राभाव, निरक्षरता, चिकित्सा का अभाव एवं गृह विहीन जीवन का अभिशाप इत्यादि। मानसिक स्तर मे प्रमा के अभाव का परिणाम है साहित्य शास्त्र एवं ज्ञान विज्ञान के शाखाओं प्रसाखाओ में भूल-भ्रांति, नृत्य में छंद पतन, चित्रांकन में परीनीति बोध का अभाव, संगीत में सूर लय ताल में रस भंग, भावहीन एवं रसहीन साहित्य सृजन, गीत के भाव भाषा सूर एवं छंद के एकतान में अभाव, दर्शन में आपेक्षिक जगत के साथ परमार्थिक जगत के सेतुबंध रचना का अभाव । आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रमा के अभाव का परिणाम है – जीव का शिव के साथ ,जीवात्मा का परमात्मा के साथ महामिलन का अभाव | आज उसका जगह ले लिया है तिर्थाटन। अाचार्य जी ने जीवन के तीनों स्तरों में भार में बनाये रखते हुए आगे बढ़ने पर जोर दिया और कहा कि जागतिक क्षेत्र में प्रमा संवृद्धि, मानसिक क्षेत्र में प्रमा ऋद्धि एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रमा सिद्धि की अत्यंत आवश्यकता है। ऐसा होने पर ही मानव जीवन सार्थक होगा। इनके अभाव होने पर समाज का पतन 4 अवस्थाओं से गुजरते हुए पतन के अंतिम बिंदु तक पहुंचता है ।सामाजिक पतन की चार अवस्थाएं निम्नलिखित है-: विक्रान्तावस्था, विकृतावस्था, विपर्यावस्था एवं विनस्तावस्था।