नई राजनीतिक दिशा तय करेंगे ये चुनाव
बिशन पपोला
पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव भविष्य की राजनीतिक परिदृय को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं, क्योंकि ये चुनाव न केवल केंद्र व अधिकांश राज्यों में सत्तासीन बीजेपी के लिए अपनी धाक बचाने की चुनौती साबित होने वाले हैं, बल्कि अन्य पार्टियों की साख बचेगी या नहीं, इसकी भी स्थिति साफ होने वाली है। कुल मिलाकर उनके लिए यह चुनाव अग्नि परीक्षा से कम नहीं हैं। ऐसे में, जिस तरह इन चुनावों को लेकर पार्टियों के नेता धुआंधार प्रचार कर रहे हैं, उससे लगता है कि कोई भी पार्टी कसर छोड़ना नहीं चाहती है, क्योंकि जब अधिकांश राज्यों में चुनाव होते हैं, तो उसका एक बड़ा राजनीतिक संदेश जनता के बीच जाता है।
बीजेपी अभी केंद्र की सत्ता में है और वह सभी राज्यों में अपनी सरकार बनाने का सपना देखती है, जबकि विपक्षी पार्टियों का टारगेट यही है कि आखिर बीजेपी की हवा को कैसे कम किया जाए। बीजेपी स्वयं इसे हल्के में नहीं लेना चाह रही है, क्योंकि चुनौती उसके सामने भी कम नहीं है। कहीं सत्ता बचाने की चुनौती है तो कहीं सत्ता में आने की चुनौती। पश्चिम बंगाल में टीएमसी को सत्ता से उखाड़कर सत्ता में आने की चुनौती है तो वहीं, असम में उसके समक्ष सत्ता बचाने की चुनौती है। अगर, बात दक्षिण भारत की करें तो यहां कांग्रेस के लिए केरल में सत्ता में आना एक बड़ी चुनौती है, यही चुनौती लेफ्ट पार्टी को अपने गढ़ को बचाने की भी है। यानि हर तरफ से सत्ता में आने और उसे बचाने की होड़ लगी हुई है।
पर इस चुनावी मौसम में जिस तरह पश्चिम बंगाल की चर्चा सबसे अधिक हो रही है, वह राजनीतिक रूप से सबसे अधिक महत्वपूर्ण बिंदु बनाने वाला है। बंगाल के रण को लेकर अभी तो घमासान चल ही रहा है, जब दो मई को चुनाव परिणाम आएंगे, उसके बाद भी राजनीतिक मंच भी शायद इसी मुद्दे पर सबसे अधिक चर्चा होते दिखे। यहां सवाल सिर्फ बीजेपी के सत्ता में आने की चुनौती का नहीं है, बल्कि उसके खिलाफ सबसे अधिक बुलंद रहने वाली ममता बनर्जी के लिए सत्ता को बचाने की चुनौती भी है। वह इसीलिए, क्योंकि कुछ अंतराल में राज्य में बीजेपी ने मजबूत पकड़ बनाई है। अगर, बीजेपी चुनावों तक इस पकड़ को परिणामों में बदलने में सफल रहती है तो ममता का लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री का ताज पहनने का सपना चकनाचूर हो जाएगा। पर ममता जिस तरह राजनीति के गुणा-भाग को समझती हैं, उससे नहीं लगता है कि वह स्वयं को कमजोर पड़ने देगी।
उन पर कथित हमले की बात या फिर बीजेपी के कभी दिग्गज रहे यशवंत सिन्हा को अपने खेमे में शामिल करने की बात। इन दोनों ही घटनाक्रम से यही लगता है कि ममता हर वह कसक पूरा करना चाहती है, जिससे बीजेपी को बंगाल की सत्ता तक पहुंचने से हर हाल में दूर रखा जाए। उधर, बीजेपी भले ही टीएमसी के बागियों को टिकट देकर ममता की इस कसक को तोड़ने की कोशिश कर रही हो, लेकिन वह इस मुद्दे को लेकर जिस तरह अपनों के अंदर ही घिर रही है, ममता उसका राजनीतिक लाभ लेने से बिल्कुल भी नहीं चूकना चाहेगी। ममता के लिए एक और अडवांटेज यह है कि चुनाव सर्वेक्षण उनके पक्ष हैं, ऐसे में चुनाव जीतने को लेकर उनके अंदर आत्मविश्वास न हो, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है। पर सर्वेक्षण कुछ भी कह रहे हों और हवा किसी भी पार्टी की चल रही हो, लेकिन हकीकत क्या सामने आती है, इसके लिए नतीजों का इंतजार तो करना ही पड़ेगा। यह स्थिति केवल बंगाल पर ही लागू नहीं होती बल्कि देश के अन्य चार राज्यों पर भी लागू होती है। इसीलिए चुनाव संपन्न होने तक चुनावी माहौल में कई और ट्विस्ट भी देखने को मिलते रहेंगे। राजनीतिक पार्टियां वोटर्स को अपनी तरफ खींचने की हर संभव कोशिश करेंगी, इसीलिए आगामी दिनों में माहौल न बने, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। पर यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजनीतिक पार्टियों को सत्ता की लालसा में जनमुद्दों को पीछे नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि वोटर्स भी अब जागरूक हो चुका है, उसे पता है कि कौन-सी पार्टी वास्तव में उनका हित चाहती है। इसीलिए राजनीतिक पार्टियां कोई भी उम्मीद क्यों न लगा लें, लेकिन परिणाम जनता जो चाहेगी, उसी अनुरूप आएंगे।