नियमित पेंशन भुगतान की मांग को लेकर अंध दिव्यांग मिले डीसी से
तीन-चार माह से नहीं मिल रहा पेंशन, भूखमरी की स्थिति
गांव देहात में एक कहावत प्रचलित थी की “आंख नहीं तो फिर आस नहीं ” लेकिन आज के इस वैज्ञानिक और भौतिकवादी युग में “आंख नहीं तो निराश नहीं ” वाली कहावत कहीं जाने लगी है. क्योंकि अंध दिव्यांगता पूर्ण विकलांगता की श्रेणी में आता है. जिसे सरकार की ओर से काफी सुविधाएं और अनुदान दिए जाते हैं . चाहे वह उनके इलाज का खर्च हो तो अथवा पढ़ाई लिखाई और प्रतिमाह मिलने वाली विकलांगता पेंशन. हर तरह की सुविधाएं सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जाती है. लेकिन सरकारी लापरवाही की वजह से पिछले तीन-चार माह से अंधे दिव्यांगों को उनके पेंशन का पैसा नहीं मिल पा रहा है. जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन उनका सरकार की ओर से मिलने वाला प्रतिमाह का पेंशन ही है . भले ही यह मात्र ₹1000 का होता है . इन अंधे लोगों को अपने जीविकोपार्जन में इस रकम की बड़ी महत्ता रहती है . पिछले कुछ माह से पेंशन से वंचित दिव्यांग सोमवार को डीसी से मिलने पहुंचे और पेंशन का भुगतान नियमित किए जाने की मांग की. डीसी से मिलने आए अंध दिव्यांगों सुदामा सिंह 30 वर्ष सीतारामडेरा स्लैग रोड के रहने वाले हैं . उनके साथ बिरसानगर का राजू 18 वर्ष और 10 वर्षीय साईं मछुआ भी थे . उन लोगों का कहना था की प्रति माह सरकार की ओर से मिलने वाला ₹1000 का पेंशन पिछले तीन-चार माह से नहीं मिला है . जिसकी वजह से उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है . आंख नहीं होने की वजह से कोई बड़ा काम भी वे लोग नहीं कर पाते हैं. छोटे छोटे काम अथवा सरकारी नौकरी के लिए अपनी ओर से प्रयास करते हैं. लेकिन उसके दरवाजे भी बंद हैं . ऐसे में ₹1000 ही उनकी जिंदगी में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है . वे डीसी से मिलकर अपने पेंशन का नियमित भुगतान किए जाने की मांग करेंगे. सुदामा सिंह ने बताया कि वह मैट्रिक पास है और काम की तलाश में है . वह दो भाई हैं और दोनों आंख से अंधे हैं . परिवार में और दूसरा कोई नहीं है जो उनके लिए कुछ अर्जित करें . ऐसे में पेंशन उनका मुख्य आधार है . वही 18 वर्षीय राजू कुमार का कहना है कि वह डीबीएमएस स्कूल से मैट्रिक पास करने के बाद काम की तलाश में है. आंख नहीं होने की वजह से उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उसका कहना था कि उनका जिस बैंक की शाखा में पेंशन आता है, वह उनके घर से काफी दूर है . उन्हें बैंक जाकर रुपए निकालने में काफी दिक्कत होती है . उनकी यह भी मांग है कि उनका खाता घर के आसपास के किसी बैंक के ब्रांच में स्थानांतरित कर दिया जाए , ताकि उन्हें अनावश्यक परेशानी से जूझना नहीं पड़े. एक अन्य अंध दिव्यांग किशोर उम्र का लड़का है. उसके पिता साफ सफाई का काम करते हैं. मां भी दूसरे के घरों में चौका वर्तन करती है .किसी तरह परिवार का गुजर-बसर होता है. उनकी जिंदगी में लड़के को मिलने वाला ₹1000 पेंशन काफी महत्वपूर्ण है. साईं मछुआ बाराद्वारी में स्थित अंध स्कूल में पढ़ाई करता है . साथ आई उसकी मां का कहना है कि पेंशन के नियमित भुगतान नहीं होने से उन लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन में ना तो पति के पास और ना ही उसके पास कोई स्थाई और नियमित रोजगार है. ऐसे में बेटे को मिलने वाली पेंशन की रकम से कम से कम उसका तो खर्च चलता है. उन लोगों की सरकार से मांग है कि पेंशन का नियमित भुगतान किया जाए.